Labor reform bills : श्रम सुधार बिलों को संसद ने दी मंजूरी, कंपनियों को कर्मचारियों की छंटनी की मिली छूट

बिजनेस
भाषा
Updated Sep 23, 2020 | 16:48 IST

संसद ने तीन प्रमुख श्रम सुधार विधेयकों को मंजूरी दे दी है। 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की इजाजत के बिना हटाने की अनुमति होगी।

Parliament approves 3 labor reform bills, companies can remove employees without government's permission
श्रम सुधार बिल संसद से पास 

नई दिल्ली : संसद ने बुधवार को तीन प्रमुख श्रम सुधार विधेयकों को मंजूरी दे दी, जिनके तहत कंपनियों को बंद करने की बाधाएं खत्म होंगी और अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की इजाजत के बिना कर्मचारियों को हटाने की अनुमति होगी। राज्यसभा ने बुधवार को उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता 2020, औद्योगिक संबंध संहिता 2020 और सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया। इस दौरान आठ विपक्षी सांसदों के निलंबन के विरोध में कांग्रेस सहित विपक्ष के ज्यादातर सदस्यों ने सदन की कार्रवाई का बहिष्कार किया। लोकसभा ने इन तीनों संहितों को मंगलवार को पारित किया था और अब इन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।

श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने तीनों श्रम सुधार विधेयकों पर एक साथ हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि श्रम सुधारों का मकसद बदले हुए कारोबारी माहौल के अनुकूल पारदर्शी प्रणाली तैयार करना है। उन्होंने यह भी बताया कि 16 राज्यों ने पहले ही अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना फर्म को बंद करने और छंटनी करने की इजाजत दे दी है। गंगवार ने कहा कि रोजगार सृजन के लिए यह उचित नहीं है कि इस सीमा को 100 कर्मचारियों तक बनाए रखा जाए, क्योंकि इससे नियोक्ता अधिक कर्मचारियों की भर्ती से कतराने लगते हैं और वे जानबूझकर अपने कर्मचारियों की संख्या को कम स्तर पर बनाए रखते हैं।

उन्होंने सदन को बताया कि इस सीमा को बढ़ाने से रोजगार बढ़ेगा और नियोक्ताओं को नौकरी देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि ये विधेयक कर्मचारियों के हितों की रक्षा करेंगे और भविष्य निधि संगठन तथा कर्मचारी राज्य निगम के दायरे में विस्तार करके श्रमिकों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेंगे। सरकार ने 29 से अधिक श्रम कानूनों को चार संहिताओं में मिला दिया था और उनमें से एक संहिता (मजदूरी संहिता विधेयक, 2019) पहले ही पारित हो चुकी है।

चर्चा की शुरुआत करते हुए भाजपा के विवेक ठाकुर ने कहा कि स्थायी संसदीय समिति ने इन तीनों विधेयकों पर विस्तृत चर्चा की। बाद में श्रम मंत्रालय ने भी विभिन्न पक्षों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि एक बड़ा तबका इन विधेयकों के दायरे में आएगा। उद्योगों में श्रम की अहम भूमिका का जिक्र करते हुए उन्होंने इसे प्रगतिशील श्रम सुधार बताया।

ठाकुर ने कहा कि श्रमिक देश की आत्मा हैं और उनके योगदान के बिना उद्योग की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार श्रमिकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए ये विधेयक लाए गए हैं। इसके प्रावधानों से कारोबार करने में आसानी होगी।

जद (यू) के आरसीपी सिंह ने तीनों विधेयकों का समर्थन करते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक कदम है जिसमें 25 कानूनों को एक संहिता में समाहित किया गया है। उन्होंने कहा कि पहले सबकी अलग अलग परिभाषा, अलग प्राधिकार आदि होते थे लेकिन अब सबको समाहित किया जाएगा जिससे अच्छा प्रभाव पड़ेगा।

भाजपा के राकेश सिन्हा ने भी इन विधेयकों को ऐतिहासिक बताया और कहा कि इससे सामाजिक समावेशीकरण को बढ़ावा मिलेगा और लैंगिक भेदभाव समाप्त होगा। सिन्हा ने कहा कि कुल श्रमिकों में महिलाएं की भी खासी संख्या है अब उन्हें भी समान अधिकार, समान अवसर, समान पारिश्रमिक मिलेगा जिससे महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलेगा।

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि आजादी के 73 साल बाद मजदूरों को अब न्याय मिल रहा है जिसकी वे प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इन विधेयकों के प्रावधानों के तहत श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी, समय से मजदूरी की गारंटी होगी। इन विधेयकों के तहत श्रमिकों को वेतन, सामाजिक व स्वास्थ्य सुरक्षा मिल सकेगी। इसके अलावा महिलाओं और पुरुषों के बीच के भेद खत्म होगा और उन्हें समान वेतन मिल सकेगा।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने इन विधेयकों को क्रांतिकारी बताते हुए कहा कि इनसे श्रमिकों को न्याय मिल सकेगा जो अब तक उन्हें नहीं मिल सका है। आठवले ने सुझाव दिया कि नियमित प्रकृति वाले काम में ठेके पर कर्मचारी नहीं रखे जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायालय ने भी इस संबंध में फैसला किया है। उन्होंने कहा कि ठेका पद्धति को समाप्त करने के लिए कानून लाना चाहिए। चर्चा में बीजद के सुभाष चंद्र सिंह, अन्नाद्रमुक के एस आर बालासुब्रमण्यम, तेदपा के के रवींद्र कुमार आदि ने भी भाग लिया और श्रमिकों के कल्याण की जरूरत पर बल दिया।

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