प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने मार्केटिंग सत्र 2021-22 के लिए सभी रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में बढ़ोतरी को स्वीकृति दे दी है। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के क्रम में ही यह बढ़ोतरी की गई है। पोषण आवश्यकताओं और खुराक पैटर्न में बदलाव को देखते हुए तथा दालों और तिलहन के उत्पादन में आत्म निर्भरता हासिल करने के लिए सरकार ने इन फसलों के लिए तुलनात्मक रूप से ज्यादा MSP तय किया है।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ट्वीट किया किसानों के हित में मोदी सरकार का एक और निर्णय। रबी मार्केटिंग वर्ष 2021-22 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित। आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने दी मंजूरी। किसानों को लागत मूल्य पर 106 प्रतिशत तक लाभ। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद जारी रहेगी।
नरेंद्र सिंह तोमर ने ट्वीट किया वर्ष 2013-2014 में गेहूं की MSP 1400 रुपये थी, जो 2020-2021 में बढ़कर 1975 रुपये हो गई। यानि MSP में 41 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। धान के लिए 2013-2014 में धान की MSP 1310 रुपए थी, जो 2020-2021 में बढ़कर 1868 रुपए हो गई। यानी एमएसपी में 43 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। मसूर के लिए 2013-2014 में इसकी MSP 2950 रुपए थी, जो 2020-21 में बढ़कर 5100 रुपए हो गई। यानी MSP में 73 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। उड़द के लिए 2013-2014 में उड़द की MSP 4300 रुपये थी, जो 2020-21 में बढ़कर 6000 रुपए हो गई। यानी MSP में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
MSP में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी मसूर दाल (300 रुपए प्रति क्विंटल) में की गई है, इसके बाद चना और रेपसीड तथा सरसों (225 रुपए प्रति क्विंटल) और कुसुम (112 रुपए प्रति क्विंटल) के लिए MSP बढ़ाया गया है। जौ और गेहूं के लिए MSP में क्रमशः 75 रुपए प्रति क्विंटल और 50 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है। प्रतिफल में अंतर का उद्देश्य फसल विविधीकरण को प्रोत्साहन देना है।
मार्केटिंग सत्र 2021-22 के लिए रबी फसलों के MSP में बढ़ोतरी अखिल भारतीय भारित उत्पादन लागत की कम से कम 1.5 गुनी के स्तर पर MSP के निर्धारण के सिद्धांत के क्रम में किया गया है। इस सिद्धांत की घोषणा की 2018-19 के आम बजट में की गई थी। उत्पादन लागत की तुलना में किसानों को सबसे ज्यादा रिटर्न गेहूं (106 प्रतिशत) पर होने का अनुमान है, जिसके रेपसीड और सरसों (93 प्रतिशत), चना और मसूर (78 प्रतिशत) पर रिटर्न मिलेगा। जौ पर लागत की तुलना में किसानों को 65 प्रतिशत और कुसुम पर 50 प्रतिशत अनुमानित रिटर्न मिलेगा।
समर्थन MSP के साथ ही खरीद के रूप में है। अनाज के मामले में, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और नामित राज्य एजेंसियां किसानों को मूल्य समर्थन उपलब्ध कराती रहेंगी। सरकार ने दालों के एक बफर स्टॉक की स्थापना की है और मुख्य रूप से ग्राहकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के अंतर्गत दालों की घरेलू खरीद की जा रही है।
दालों और तिलहन की खरीद में अम्ब्रेला योजना “प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान” (पीएम- आशा) के साथ ही मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस), मूल्य न्यूनता भुगतान योजना (पीडीपीएस) और निजी खरीद और स्टॉकिस्ट योजना (पीपीएसएस) की पायलट योजना को जोड़ा जाएगा।
वर्तमान महामारी के संकटपूर्ण हालात में, किसानों की समस्याएं दूर करने के लिए सरकार द्वारा चौतरफा प्रयास के जा रहे हैं। सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदम इस प्रकार हैं :-
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अध्यादेश, 2020 और कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अध्यादेश, 2020 जारी कर दिया गया है, जिससे किसानों को पारम्परिक एपीएमसी मंडी व्यवस्था के बाहर अपनी उपज बेचने के लिए वैकल्पिक चैनल उपलब्ध हो सकेंगे और कृषि कारोबार में निजी भागीदारी को प्रोत्साहन मिलेगा। कुशल कृषि- खाद्य आपूर्ति श्रृंखला के निर्माण और मूल्य वर्धन, वैज्ञानिक भंडारण, वेयरहाउसिंग और विपणन आधारभूत ढांचे में निजी क्षेत्र से ज्यादा निवेश आकर्षित करने के लिए आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020 जारी कर दिया गया है। कृषि आधारभूत ढांचा कोष योजना के अंतर्गत बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा वार्षिक ब्याज पर 3 प्रतिशत की छूट के साथ 1 लाख करोड़ रुपये के कर्ज उपलब्ध कराए जाएंगे और सीजीटीएमएसई (सूक्ष्म एवं लघु उपक्रमों के लिए क्रेडिट गारंटी कोष ट्रस्ट) के अंतर्गत 2 करोड़ रुपये तक के कर्ज पर क्रेडिट गारंटी कवरेज उपलब्ध कराया जाएगा। योजना से किसानों, पीएसीएस, एफपीओ, कृषि उद्यमियों आदि को सामुदायिक कृषि संपदा और फसल बाद कृषि बुनियादी ढांच के निर्माण में सहायता मिलेगी।
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