कुंदन सिंह
आजादी की 75वीं सालगिरह के मौके पर लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में निर्मित 75 सेमी हाई स्पीड ट्रेन वंदेभारत एक्सप्रेस चलाने की घोषणा तो कर दी। पर साथ ही साथ भारतीय रेलवे और उनके नए मंत्री के लिए एक बड़ी चुनौती भी दे डाली। आखिरकार ये टारगेट पूरा कैसे होगा। मौजूदा प्रोडक्शन टाइमलाइन प्लान और पुराने ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए वर्तमान में संभव होता नहीं दिख रहा। अभी तक रेलवे के तरफ से इसको लेकर कोई रोडमैप भी जारी नहीं किया गया है पर रेल मंत्रालय के सूत्रों की माने पर जल्द इसके प्रोडक्शन प्लान को रिव्यू कर नए टारगेट सेट किए जाएंगे।
इधर एक बार फिर से प्रधानमंत्री के घोषणा के बाद उम्मीदें जगी हैं कि वंदेभारत एक्सप्रेस के निर्माण में तेजी आएगी। फिलहाल 44 नई ट्रेंनो के लिए जारी किए गए टेंडर के टाइमलाइन के मुताबिक अगले साल मार्च तक नए बदलाव के साथ दो प्रोटो टाइप ट्रेनें बनकर तैयार होगी। जिनका 3 से 4 महीने तक करीब 1लाख किलोमीटर का ट्रायल होगा। जिसके बाद सितंबर 2022 से प्रोडक्शन शुरू हो जाएगी। उसके बाद 3 महीने के अंतराल में 6 रैक निर्मित हो पाएगी। हालांकि इस बार इनका निर्माण केवल आईसीएफ यानी इंटगरल कोच फैक्ट्री के साथ एमसीएफ रायबरेली और आरसीएफ कपुरथला में भी किया जाएगा। 22 रैक चेन्नई आईसीएफ में वहीं 10-10 रैक आरसीएफ और एमसीएफ में होनी हैं। इसके साथ ही बोर्ड 59 नई ट्रेनों के लिए एक बार से टेंडर करने जा रहा है जिससे बाद इनकी संख्या 101 के करीब हो जाएगी।
वंदेभारत के नए बदले स्वरूप के निर्माण में भी एक बार फिर से वही पुरानी मेधा सर्वो सोर्स ने बाजी मारी हैं पर जिसे नए बदले हुए डिजाइन के मुताबिक अगले साल मार्च से अप्रैल के बीच तक अपनी दो प्रोटोटाइप ट्रेने ट्रायल के लिए उपलब्ध कराने हैं। जिसके बाद नए सेफ्टी टर्म के मुताबिक 1 लाख किलोमीटर ट्रायल के बाद उसके प्रोडक्शन की प्रक्रिया शुरू हो पाएगी। सबकुछ ठिकठाक रहा तो अगले साल जुलाई अगस्त से नई रैक निकलनी शुरू हो जाएगी। वही नई रैक के बाद अगर मौजूदा प्रोडक्शन लाइन में हर महीने अगर 4 से 6 ट्रेनें भी निर्मित हो पाई तो पहले 44 रैक के बनने में ही 2023 मार्च पार कर जाएगा। इधर प्रधानमंत्री के 75 नई ट्रेनें चलाने का टाइमलाइन अगले डेढ़ साल हैं। नई रैक में इमरजेंसी विंडो से लेकर इमरजेंसी लाइट्स, के साथ ही इमरजेंसी पुश बटन, सेंट्रलाइज मॉनिटरिंग सिस्टम, वेंटिलेशन सिस्टम बिजली नहीं रहने पर। हाइ फ्लड प्रोटेक्शन कोटिंग सिस्टम में बदलाव होंगे।
2019 के चुनावों से ठीक पहले दिल्ली में अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी के लिए जब पहली बार प्रधानमंत्री ने वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई थी तभी इसको लेकर प्रधानमंत्री ने बड़ी घोषणा की थी कि देश में बनी पहली सेमी हाई स्पीड ट्रेन है और 100 ऐसी ट्रेनें जल्द भारतीय रेल की पटरियों पर दौड़ेंगी। पर उनको क्या पता कि उनकी घोषणाओं को अमल करने की गति को भारतीय रेल के आंतरिक कलह ने धीमा कर दिया। 2021 में लाल किले के प्राचीर से एक बार फिर प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि अगले 75 सप्ताह यानी ढेड़ साल के अंदर देश में 75 नई वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनें चलेंगी।
रेल मंत्रालय की मौजूदा तैयारी और वंदे भारत के इतिहास को देखते हुए ये लक्ष्य भी कहीं घोषणा बनकर न रह जाए इसकी संभावना ज्यादा दिख रही है। अगर ऐसा हुआ तो न केवल सरकार के लिए किरकिरी होंगी पर नए रेल मंत्री के तौर पर आसीन अश्विन वैष्णव के लिए भी एक चुनौती होगी।
ट्रेन सेट का निर्माण की बात आती है तो रेलवे की दो अलग-अलग विभाग मैकेनिकल और इलेकट्रिकल के लोग आमने-सामने हो जाते हैं। नतीजा मामला फाइलों में फंस कर रह जाता। पर पहली बार सुरेश प्रभु बतौर रेल मंत्री ने ट्रेन सेट बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी और रेलवे के सबसे पुराने रेल कारखाने आईसीएफ चेन्नई को जिम्मेदारी दी गई। उस वक्त के तत्कालीन जीएम सुधांशु मनी के सामने दो लक्ष्य रखे गए थे। साल 2017 के जनवरी में इसको लेकर प्रोजेक्ट तैयार किया गया वहीं अप्रैल में इस प्रस्ताव पर काम शुरू हो गया। टारगेट रखा गया साल 2018 का और नाम रखा गया टी18 एक शताब्दी टाइप चेयर कार जिसे टी18 ट्रेन 18 का नाम दिया गया वही और दूसरी स्लीपर ट्रेन को टी20 नाम दिया गया। जिसकी कोशिश थी की राजधानी जैसी लंबी दूरी के ट्रेनों को रिप्लेस किया जाए।
जब पहली ट्रेन बनकर सामने आई उसे नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के लिए चलाई गई। दिल्ली से वाराणसी के लिए प्रधानमंत्री ने झंडी दिखाकर रवाना किया जिसके बाद देश में 100 नई वंदे भारत एक्सप्रेस चलाने की घोषणा की गई। पर शायद रेलवे की आंतरिक झगड़े ने ट्रेन को चलने से पहले ही बदनाम करना शुरू कर दिया। आरोप लगा कि बाकी ट्रेनों की तुलना में पॉवर कंन्जप्शन ज्यादा है। ट्रेन की सीटे कंपफर्ट नहीं हैं। ट्रेन निर्माण की प्रकिया में अनिमियतता के आरोप भी लगे। जांच शुरू की गई इधर ट्रेन की फिर से टेक्निकल रिव्यू करने के लिए कमेटी बनाई गई। इससे ट्रेन निर्माण की प्रक्रिया में देरी हो गई नतीजा अपने घोषणा के 3 साल बीत जाने के बाद भी दो रैक के अलावा एक भी नई वंदे भारत ट्रेन नहीं आई।
(इस लेख के लेखक टाइम्स नाउ नवभारत के विशेष संवाददाता कुंदन सिंह हैं)
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