अपनी मेहनत की कमाई को एक बैंक के हाथ में सौंपने के बावजूद उसे खो देना किसी बुरे सपने से कम नहीं है। महाराष्ट्र के एक कोऑपरेटिव बैंक की वजह से लोगों को इस तरह की संकट का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि RBI ने उसे अगले छः महीने तक किसी व्यवसाय में संलग्न न होने का निर्देश दे डाला। बैंक से पैसे निकालने की रकम पर भी एक निर्धारित सीमा लगा दी गई है। पता चला है कि बैंक ने अपने NPA की सही-सही घोषणा नहीं की थी और वह नियामक सीमा से बाहर जाकर एक रियल एस्टेट डेवलपर को पैसे उधार दे रहा था।
कोऑपरेटिव बैंक, कोऑपरेटिव सोसाइटीज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड संस्थान होते हैं। चूंकि वे बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1966 के दायरे में आते हैं, इसलिए RBI उनके रेगुलेशन की देखभाल करता है, लेकिन उनके मैनेजमेंट से संबंधित मामलों पर राज्य सरकार का नियंत्रण होता है। RBI ने छः महीने के लिए बैंक से होने वाले नियमित लेनदेन पर प्रतिबन्ध लगा दिया है, और उसके ग्राहकों को सिर्फ 40,000 रुपए निकालने की इजाजत दी गई है। पैसे निकालने से जुड़ा यह प्रतिबन्ध सभी जमाकर्ताओं पर लागू होता है जिसमें करंट अकाउंट, सेविंग्स अकाउंट, और डिपोजिट अकाउंट होल्डर्स भी शामिल हैं।
बैंकों को अपना पैसा रखने के लिए सबसे सुरक्षित स्थान माना जाता है लेकिन इसके बावजूद, इस तरह के संकट से एक सबक यह भी मिलता है कि बैंकिंग भी आखिरकार एक व्यवसाय ही है और यह भी असफल हो सकता है। अपने पैसे को कैसे सुरक्षित रखने के साथ-साथ उसे कैसे मैनेज करना चाहिए, इसके बारे में कुछ जानकारी हासिल करने के लिए, आइए इस संकट के बारे में थोड़ी और गहराई से जानने की कोशिश करते हैं।
किसी भी बैंक में जमा की गई रकम पर 1 लाख रुपए तक का इंश्योरेंस मिलता है और यह इंश्योरेंस, डिपोजिट इंश्योरेंस ऐंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (DICGO) द्वारा दिया जाता है। इसलिए, यदि एक बैंक दिवालिया हो जाता है तो आपको अपनी जमा रकम में से सिर्फ 1 लाख रुपए तक ही मिल सकता है। दुर्भाग्य से, इंश्योरेंस कंपनी द्वारा इससे ज्यादा नुकसान को कवर नहीं किया जाता है। लेकिन, कुछ मामलों में, केंद्र सरकार एक बैंक को इस संकट से बाहर निकलने और उसे दिवालिया होने से बचाने का उपाय कर सकती है।
पैसे निकालने पर RBI के प्रतिबन्ध के कारण, कस्टमर द्वारा दिए गए मैंडेट के अनुसार अकाउंट्स से ऑटो-डेबिट वाली सुविधा काम नहीं करेगी। उदाहरण के लिए, यदि आपके म्यूच्यूअल फंड्स के SIP के लिए ऑटो-डिडक्शन, प्रभावित बैंक अकाउंट के माध्यम से होता है तो यह काम नहीं करेगा, और इसलिए इसे जारी रखने के लिए आपको इसके बजाय किसी दूसरे बैंक अकाउंट का इस्तेमाल करना चाहिए।
यदि आपने उसी बैंक से कोई लोन लिया है और कुछ EMI का पेमेंट कर दिया है तो आपके अकाउंट से अमाउंट कट जाएगा लेकिन यदि बैलेंस काफी नहीं है तो आपको समय पर ऐसे लोन की EMI जमा करनी पड़ेगी। इसी तरह, अपने इंश्योरेंस प्रीमियम के पेमेंट और अन्य इन्वेस्टमेंट ऑप्शंस के लिए अपना बैंक विवरण बदलना जरूरी है।
यदि किसी प्रभावित कोऑपरेटिव बैंक में आपका कोई अकाउंट है तो आपको कुछ महीने इंतजार करना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि RBI क्या करना चाहता है। अपनी मेहनत की कमाई को मुसीबत में पड़ते देखना बहुत मुश्किल होता है, अभी थोड़ा धैर्य रखने और सबसे अच्छे परिणाम की उम्मीद करने का समय है। इसके अलावा, अपनी बैंकिंग सम्बन्धी जरूरतों के लिए सिर्फ एक बैंक के भरोसे न रहें। अपने ऑप्शंस के बारे में अच्छी तरह खोजबीन करें और उसी बैंक में अपना पैसा रखें जहाँ आपका रिटर्न और पैसे की सुरक्षा अधिक हो।
(इस लेख के लेखक, BankBazaar.comके CEO आदिल शेट्टी हैं) (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं।)
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