Power Crisis : बिजली का संकट क्या बढ़ने वाला है, क्या फिर देश में कोयले की किल्लत हो जाएगी और लोगों को लंबी बिजली कटौती का सामना करना पड़ेगा ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो फिर से उठने लगे हैं। और उसकी वजह पावर मिनिस्ट्री का वह लेटर है, जिसमें राज्यों को आने वाले संकट से आगाह किया गया है। मंत्री आर.के.सिंह द्वारा राज्यों को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि अगर अभी से जरूरी तैयारी नहीं की गई तो मानसून में फिर से पावर प्लांट के पास कोयले की किल्लत हो सकती है।उन्होंने हरियाणा, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल को खास तौर पर कहा है कि उनकी तरफ से या तो कोयला आयात की प्रक्रिया ही नहीं शुरू की गई या फिर प्रक्रिया की रफ्तार धीमी है। ऐसे में कदम तुरंत उठाएं जाएं नहीं तो मुश्किल पैदा हो सकता है।
मानसून में किस बात का है डर
असल में केरल, कर्नाटक और पूर्वोत्तर भारत में प्री-मानसून बारिश शुरू हो गई है। और एक जून के बाद मानसून देश के मैदानी इलाकों की तरफ बढ़ने लगेगा। इस बीच अगर खदानों से कोयले की पहले ही सप्लाई नहीं की गई, तो बारिश के समय खदानों से कोयले को निकालना नामुमकिन हो जाएगा। जिसका असर बिजली आपूर्ति पर पड़ सकता है। इसलिए राज्यों को अभी से कोयले की पर्याप्त उपलब्धता के लिए तैयारी करनी होगी। लेटर में यह भी कहा गया है कि जरूरत पड़ने पर बिजली कंपनियां,घरेलू कोयले में 10 फीसद तक आयातित कोयला मिलाने के लिए बाहर से कोयला मंगाए।
यही नहीं मंत्रालय ने यह भी कहा कि अगर राज्य केंद्र के निर्देश के मुताबिक कोयले का स्टॉक नहीं लेते है तो उन्हें जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त कोयला नहीं दिया जाएगा और उनके हिस्से का कोयला दूसरे राज्यों को आवंटित कर दिया जाएगा। राज्यों को 31 मई, 2022 तक कोयला आयात करने का आर्डर देना होगा ताकि 30 जून तक 50 फीसद कोयला आयात किया जा सके। और 31 अगस्त तक 40 फीसद , इसी तरह बचा 10 फीसदी कोयला 31 अक्टूबर तक आयात किया जा सके।
मंत्रालय के लेटर से यह भी स्पष्ट है कि मांग पूरी करने के लिए आने वाले समय में केवल घरेलू कोयले से आपूर्ति संभव नहीं हो पाएगी। ऐसे में मिश्रण के लिए बिजली कंपनियां कोयले का आयात करें। हालांकि हो इसके उलट रहा है और 2021-22 में मिश्रण के लिए कोयले का आयात करीब एक तिहाई रह गया है।
साल | मिश्रण के लिए कोयले का आयात |
2018-19 | 21.4 मिलियन टन |
2019-20 | 23.8 मिलियन टन |
2021-22 | 8.3 मिलियन टन |
20 दिन में क्या बदला
अगर भारत में बिजली की स्थिति की बात की जाय तो आज से करीब 20 दिन पहले 29 अप्रैल को देश में बिजली की मांग अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी। उस वक्त पीक डिमांड 2,07,111 मेगावॉट पहुंच गई थी। पॉवर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड की 29 अप्रैल की रिपोर्ट के अनुसार उस समय पीक डिमांड के समय 10778 मेगावॉट बिजली की कमी थी। और अभी 17 मई की स्थिति देखी जाय तो उस दिन पीक डिमांड 1,92,601 मेगावॉट थी। और बिजली की कमी केवल 1510 मेगावॉट थी। यानी 20 दिन पहले की तुलना में मांग और आपूर्ति का अंतर कम हुआ है।
सबसे ज्यादा बिजली संकट वाले राज्य में अभी क्या हाल
पॉवर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड के अनुसार 29 अप्रैल को सबसे ज्यादा बिजली कि किल्लत पंजाब,हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार में थी। जहां मांग की तुलना में 13.72 मेगा यूनिट से लेकर 43.59 मेगा यूनिट तक बिजली की कमी थी। लेकिन अब स्थिति काफी सुधरी है। और इस समय राजस्थान में सबसे ज्यादा 15.21 मेगा यूनिट और यूपी में 7.0 मेगा यूनिट बिजली की कमी है।
राज्य | बिजली की कमी (मेगा यूनिट) 29 अप्रैल | बिजली की कमी (मेगा यूनिट) 17 मई |
राजस्थान | 43.59 | 15.21 |
हरियाणा | 33.72 | 2.26 |
पंजाब | 30.65 | 0.0 |
यूपी | 29.52 | 7.0 |
बिहार | 15.90 | 4.86 |
मध्य प्रदेश | 13.72 | 0.0 |
दिल्ली | 0.0 | 0.0 |
जून में पीक डिमांड 2.15-2.20 लाख मेगावॉट तक पहुंच सकती है
पावर मिनिस्ट्री के आंकलन के अनुसार भले ही अभी मांग और आपूर्ति का अंतर कम है। लेकिन अगर राज्यों ने कोयले की आपूर्ति की व्यवस्था समय पर नहीं की तो यह अंतर बढ़ सकता है। इसकी वजह यह है कि ऐसी संभावना है कि मई के आखिरी या जून के महीने में बिजली की पीक डिमांड 2.15-2.20 लाख मेगावॉट तक पहुंच सकती है। और अगर ऐसा होता है तो बिजली का संकट खड़ा हो सकता है।
अभी 80 प्लांट में कोयले की गंभीर किल्लत
अगर अप्रैल के आखिरी हफ्ते से तुलना की जाय तो इस समय प्लांट के पास कोयले की उपलब्धता बेहतर स्थिति में है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (CEA)की 27 अप्रैल की रिपोर्ट के अनुसार, उस वक्त देश के 165 थर्मल पॉवर प्लांट में से 106 पॉवर प्लांट में कोयले की स्थिति गंभीर (क्रिटिकल) थी। यानी इन प्लांट में 25 फीसदी से कम कोयले का स्टॉक बचा हुआ थी।
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जबकि 17 मई की स्थिति के अनुसार इस समय 165 की जगह 173 थर्मल पॉवर प्लांट में बिजली का उत्पादन हो रहा है। और उसमें 106 की जगह 98 प्लांट में कोयले की उपलब्धता क्रिटिकल स्तर पर है। आंकड़ों से साफ है कि 20 दिनों में हालात तो सुधरे हैं, लेकिन वह सामान्य नहीं हुए हैं। ऐसे में अगर केंद्र और राज्यों ने मिलकर कोयले का इंतजाम नहीं किया तो फिर से बिजली का संकट खड़ा हो सकता है। खास तौर पर यह देखते हुए कि अभी पीक डिमांड आना बाकी है।
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