कुन्दन सिंह, विशेष संवाददाता
तमाम प्रयासों और घोषणाओं के बीच भारतीय रेलवे में प्राइवेट ट्रेन ऑपरेटर आखिर दिलचस्पी क्यों नहीं दिखा रहे हैं ये सवाल न केवल भारतीय रेलवे के अधिकारी बल्कि निजी सेक्टर पर नजर रखने वाले जानकारों के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है। सरकार के बजट घोषणायों से लेकर तमाम इंटरमिनिस्ट्रीयल कमेटी गठन के बाद भी निजी निवेश के नाम पर एक दो स्टेशन डेवलेपमेंट के अलावा कोई खास प्रगति नहीं हुई न ही बड़ा प्लेयर ट्रेन चलाने के लिए आगे आया। जिन दो क्लस्टर के लिए 2 कम्पनीयॉ आई भी उसमें से एक रेलवे की खुद की पीएसयू आईआरसीटीसी और दुसरी मेघा। जिसे इस सेक्टर को कोई बड़ा अनुभव नहीं हैं, ऐसे में रेलवे के पास ट्रेन ऑपरेशन के टेंडर में बदलाव कर फिर से जारी करने के आलावा कोई और विकल्प नहीं हैं।
निजी प्लेयर्स को आम ट्रेनों में क्यों नहीं है रुचि
अब सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह हैं क्या रेलवे की पॉलिसी में कोई गड़बड़ी हैं या फिर निजी सेक्टर से लिए ट्रेन ऑरपेट करना घाटे का सौदा हैं जिसमें वो हाथ डालना नहीं चाहती। पर ऐसा नहीं हैं रेलवे में आज से नहीं सालो से ट्रेन ऑपरेंशन में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी रही हैं। हॉलकि ये सेक्टर आम यात्रियों का नहीं बल्कि सुपर लक्जरी और हाई प्रमियम सेक्टर की ट्रेने रही हैं। साथ ही टुरिस्ट डेस्टिनेशन वाले हिल और माउंटन ट्रेनो में निजी सेक्टर की पुरानी दिलचस्पी रही है। शायद यही वजह हैं की रेलवे एक बार फिर से अपनी पॉलिसि में बदलाव कर हिल और माउंटेन ट्रेनो रुट को लीज पर देने के विकल्प पर साथ ही पैंसेजर सेक्टर पॉलिसि को और ल्यूकरेटिव और लचिला बनाने पर विचार कर रही हैं।
आइये देखते है कि कैसे प्रिमियम सेक्टर में कैसे निजी सेक्टर पहले से ट्रेनें चलाती रही हैं।
लक्जरी और प्रीमियम सेक्टर की पॉपुलर ट्रेने
पर्यटक ट्रेनें खास पसंद
पैलेस ऑन व्हील्स जैसी ट्रेनें दुनिया भर के विदेशी पर्यटको की पहली पसंद रही हैं, जिनका एक दिन का किराया लाखों रुपये में हैं वही आईआरसीटीसी की पहली और सबसे महंगी लक्जरी ट्रेन महाराजा एक्सप्रेस के एक ट्रिप का किराया 5 से 6 लाख रुपये हैं। ज्यादतर ट्रेन इंटरनेशनल टुरिस्ट को टारगेट कर के चलाई जाती हैं जिसको चलाने वाली ऑपरेटर अच्छा खासा मुनाफा भी कमाती हैं और रेलवे को रेवेन्यू भी देती हैं। वही इन बडें टुर ऑरपेटरों के द्वारा कई बार हिल माउंटेन ट्रेनों के संचालन के लिए भी इनक्वारी आई जिसके बाद रेलवे में 2017 में इसको लेकर एक पॉलिसि भी बनाई थी। जिसे एक बार फिर से उसको लाने की बात चल रही हैं
माउंटेन रेल भी पसंद
गौरतलब हैं कि देश में कई माउंटेन रेलवे यूनेस्को के द्वारा हेरिटेज साइट घोषित की जा चुकीं हैं जिनकी कारण साथ ही नैरो गेज में चलने की वजह से देशी विदेशी पर्यटको की पहली पसंद होती हैं। माउंटन रेलवे पहले से ही देश के पॉपुलर टुरिस्ट डेस्टिनेशन पर हैं मौजूदा समय की बात करे तो कालका शिमला से लेकर दार्जलिंग हिमालयन और माथेरान रेलवे सभी से सभी वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल हैं। निजी सेक्टर को लगता है कि टुरिज्म के लिहाज से अच्छा स्कोप हैं वही रख ऱखाव से लेकर इसके संचालन के लिहाज से रेलवे के बाकि ट्रेन ऑरपेशन से अलग हैं इन ट्रेनो में डिमांड के मुताबिक कॉस्मेटिक बदलाव करके साथ ही डिमांड के मुताबिक किराये में उतार चढ़ाव कमाई का एक बेतहर विकल्प हो सकता हैं। वही बाकि के रुट में इंटर कनेक्टिवीटी के लिहाज से अगल अगल मंडल, जोन से कोर्डिनेशन करना मुशकिल होगा।
देश में चलने वाली माउंटेन रेलवे
प्राइवेट इन्वेस्टमेंट न आने की मुख्य वजह
वैसे तो इससे पहले भी रेलवे ले कई बार निजी सेक्टर के द्वारा निवेश लाने की कोशिश की गई पर कुछ के सेक्टर को छोड़ दें तो नतीजा संतोषजनक नहीं रहा। लेकिन पहली बार इतना मुखर होकर ट्रेन संचालन में निजी सेक्टर को ऑन बोर्ड लाने की कोशिश की गई पर इस बार भी सफलता हाथ नहीं लगी। आखिरकार इसकी वजह क्या हैं ट्रांसपोर्ट पॉलिसि पर नजर रखने वाले रजत अरोड़ा बताते है कि इसके पीछे की मुख्य वजह पैसेंजर सेक्टर में निजी सेक्टर को इकोनॉमी वायविलिटी नजर नहीं आती। सबसे पहली वजह आज भी निजी क्षेत्र रेलवे को इनवेस्टर फ्रैंडली नहीं मानता।
रेलवे के खुद के ढांचे मल्टीपल पॉवर सेंटर जिसमें रेलवे बोर्ड से लेकर जोनल सिस्टम फिर डिविजन का अपना अधिकार है। निजी सेक्टर को लगता है की रोजमर्रा के काम में इससे डील करना आसान नहीं है। वही लोग ज्यादा किराया देने वाले पैंसेंजर उड़ान जैसी योजनाओं की वजह से एयर पर शिफ्ट कर चुके हैं। रेलवे से यात्रा में ज्यादा समय का लगना भी यात्रा न करने की एक बड़ी वजह हैं। आज भी निजी सेक्टर को पयर्टन वाले सेक्टर में निवेश मिलने की संभावना है जैसे दिल्ली कटरा- मुंबई सिरडी जैसे देश में कई रुट हैं इसके अलावा निजी सेक्टर को ज्यादा इंसेटिव देना होगा। वही सिंगल विंडो सिस्टम बनाना होगा । पुराने नियमों में बदलाव लाना होगा। पॉलिसि में महंगे हॉलेज चार्ज और सस्तें रोलिंग स्टॉक मुहैया कराने जैसी सुविधायों के साथ नीति में बदलाव करना पड़े तब जाकर कही निजी निवेश रेलवे को अपना पसंदीदा विकल्प चुने।
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