नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) एक खास टैक्स-सेविंग तथा वैल्थ-क्रिएटिंग निवेश इंस्ट्रुमेंट है जिसमें अन्य अनेक नियमित गैर-टैक्स सेविंग निवेश प्रोडक्ट्स की तुलना में बेहतर रिटर्न मिलने की संभावना होती है। एनपीएस एक दीर्घकालिक निवेश प्रोडक्ट है जिसके साथ आप अपने रिटायरमेंट फंड को बना सकते हैं और साथ ही साथ टैक्स भी बचा सकते है। लेकिन, इससे पहले कि आप अपने एनपीएस यात्रा शुरू करें, आपके लिए अपने निवेश की सावधानी से योजना बनाना महत्वपूर्ण है। यहां पर उन कुछ महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया गया है जिनका आपको एनपीएस में निवेश करते समय ध्यान रखना चाहिए।
एनपीएस दीर्घकालिक निवेश इंस्ट्रुमेंट है, इसलिए आपको इसमें निवेश करने से पहले अपने वित्तीय लक्ष्यों और उद्देश्यों को जरूर समझ लेना चाहिए। एनपीएस से रिटायरमेंट के बाद नियमित आय प्राप्त करने में सहायता मिलती है, और साथ ही धारा 80-सी के अंतर्गत 1.5 लाख रुपए तक की राशि के लिए टैक्स छूट के साथ आयकर अधिनियम की धारा 80 सीसीडी के अंतर्गत 50,000/- रुपए तक की कर कटौती के लाभ की भी अनुमति दी जाती है। 60 वर्ष की आयु पर पहुंचने के बाद निवेशक को अपनी मैच्योरिटी पूंजी के 40% हिस्से को अनिवार्य रूप से किसी पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट ऑथोरिटी (पीएफआरडीए) द्वारा रजिस्टर्ड एन्यूटी स्कीम में आंवटित करना होता है। मैच्योरिटी पर मिलने वाली कुल पूंजी का शेष 60% हिस्सा टैक्स-फ्री बना रहता है। इस प्रकार, एनपीएस से जोखिम से बचने वाले निवेशकों को एक शानदार विकल्प मिलता है जो अपनी रिटायरमेंट के लिए एक बड़ी पूंजी का सृजन करना चाहते हैं और साथ ही अपने रिटायरमेंट के बाद के वर्षों के दौरान आय का एक नियमित स्रोत सुरक्षित करना चाहते हैं।
एनपीएस एक मार्केट-लिंक्ड निवेश प्रोडक्ट है और इसके साथ मध्यम से उच्च जोखिम जुड़ा रहता है। निवेशकों को दोनों डेट और ईक्विटी एसेट क्लास के लिए फंड्स आवंटित करने का विकल्प मिलता है। निवेश के समय, निवेशक को एक्टिव मोड या ऑटो मोड दोनों में से किसी एक के साथ निवेश करने का विकल्प भी मिलता है। ऑटो एस्सेट आवंटन को निवेशक की आयु के साथ लिंक किया जाता है, और जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, तो डेट पोर्शन के लिए धीरे-धीरे फंड आंवटन को बढ़ाया जाता है। एक्टिव विकल्प के अंतर्गत निवेशक को अपने जोखिम उठाने की क्षमता के अनुसार डेट और ईक्विटी पोर्शन में आवंटन रेशो को चुनने की स्वतंत्रता प्रदान की जाती है। दोनों मोड्स के तहत अधिकतम ईक्विटी आवंटन कुल निवेश का 75% से अधिक नहीं हो सकता है- लेकिन यह सीमा एक्टिव मोड के अंतर्गत 50 वर्ष के सब्स्क्राइबर्स तक लागू होती है और ऑटो मोड के अंतर्गत यह 35 वर्ष तक लागू होती है। इसलिए, यदि आप खुद फंड आवंटन का प्रबंधन कर सकते हैं, तो आप एक्टिव विकल्प को चुन सकते हैं। लेकिन आपको एक्टिव विकल्प में अपने वित्तीय लक्ष्य और जोखिम उठाने की क्षमता के अनुसार आदर्श आवंटन रेशो को सावधानी से चुनना चाहिए।
एनपीएस में दो प्रकार के अकाउंट्स उपलब्ध हैं। टियर- I तथा टियर-II एनपीएस में अनिवार्य निवेश के लिए, निवेशकों को टियर –I अकाउंट खोलना पढता है, जबकि टियर-II स्वैच्छिक अकाउंट होता है और इसे टियर-I के साथ ही खोला जा सकता है। टियर –I अकाउंट्स पर विदड्रावल, मैच्योरिटी और मैच्योरिटी पर पुन:निवेश संबंधी प्रतिबंध होते हैं। दूसरी तरफ, टियर –II अकाउंट्स में टियर –I अकाउंट जैसे कोई प्रतिबंध नहीं होते हैं, लेकिन उनसे कोई कर लाभ भी नहीं मिलता है। इस प्रकार, यदि आप रिटायरमेंट के लिए निवेश करने पर विचार नहीं कर रहे हैं, आपको कर लाभ नहीं चाहिए, और विदड्रावल फ्लेक्सिबिलिटी चाहिए, तो आप एनपीएस टियर –II अकाउंट में निवेश कर सकते हैं, नहीं तो दीर्घकालिक वैल्थ सृजन के लिए आपको टियर –I अकाउंट के माध्यम से निवेश करने पर विचार करना चाहिए|
2020 में पीएफआरडीए द्वारा एनपीएस में निवेश करने के लिए एसआईपी विकल्प की अनुमति प्रदान की गयी थी। इसे डी-रेमिट (D-REMIT) सुविधा कहा जाता है। एनपीएस सब्स्क्राइबर्स इस सुविधा का उपयोग सीधे अपने बैंक अकाउंट से अपने एनपीएस में फंड्स को ट्रांसफर करने के लिए कर सकते हैं। वे अपने बैंक अकाउंट्स से नियमित अंतराल पर एनपीएस में एक पूर्वनिर्धारित राशि का निवेश करने के लिए डी-रेमिट सुविधा का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो म्यूचल फंड एसआईपी के समान ही है। जब एनपीएस सबस्क्राइर्स एसआईपी के माध्यम से निवेश करते हैं, तो उन्हें उसी दिन की एनएवी (NAV) मिलती है। डी-रेमिट के अंतर्गत न्यूनतम अंशदान 500/- रूपये है और बैंक के कार्य दिवस के अंतर्गत सुबह 9.30 से पहले प्राप्त अंशदान को उसी दिन का निवेश माना जाता है।
एनपीएस के अंतर्गत विदड्रावल नियम अन्य अंधिकांश टैक्स-सेविंग या दीर्घकालिक निवेश इंस्ट्रुमेंट्स की तुलना में कड़े हैं। विशिष्ट उद्देश्यों के लिए, निवेश के तीन वर्षों के बाद, निवेश राशि के 25% को विद्ड्रा करने की अनुमति दी जाती है। पूरी निवेश अवधि के दौरान न्यूनतम पांच वर्षों के अंतराल पर अधिकतम तीन विद्ड्रावल की अनुमति दी जाती है। 60 वर्ष पूरा करने के बाद, निवेश के कुल पूंजी का 60% हिस्सा टैक्स-फ्री दिया जाता है, जबकि शेष 40% राशि को निर्धारित एन्यूटी में निवेश करना होता है। लेकिन एन्यूटी आय पर निवेशक पर लागू होने वाली स्लैब दर के अनुसार कर लगाया जाता है।
अंत में, एनपीएस के साथ कुछ कड़े प्रतिबंध जुड़े हैं, लेकिन इन्ही प्रतिबंधों के कारण ही इसे रिटायरमेंट निवेश इंस्ट्रुमेंट के रूप में आवश्यक स्थिरता मिलती है। आपकी जोखिम उठाने की क्षमता और रिटर्न की उम्मीद के आधार पर आप अपने पोर्टफोलियो का एक हिस्सा एनपीएस में निवेश करके अपने रिटायरमेंट गोल्स को प्राप्त कर सकते हैं।
(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) ( ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)
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