Cheque Bounce Case : चेक बाउंस होने को अपराध की कैटेगरी से हटाने का कारोबार पर होगा बुरा असर- CAT

बिजनेस
भाषा
Updated Jul 21, 2020 | 13:39 IST

Cheque Bounce Case : कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने बाउंस को अपराध की श्रेणी से हटाने के प्रस्ताव को लेकर गहरी आपत्ति जताई हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लिखा पत्र।

Removing cheque bounce from crime category,  will bad affect on business: CAT
चेक बाउंस होने को अपराध की कैटेगरी से हटाने के प्रस्ताव पर आपत्ति  |  तस्वीर साभार: BCCL

Cheque Bounce Case : देशभर के व्यापारियों के संगठन ‘कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट)’ ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भेजे एक पत्र में चेक बाउंस को अपराध की श्रेणी से हटाने के प्रस्ताव को लेकर गहरी आपत्ति जताई हैं। संगठन ने कहा है कि इससे न केवल चेक की विश्वसनीयता में कमी आएगी बल्कि यह प्रधानमंत्री के देश में उचित और भरोसेमंद कारोबारी माहौल बनाने के प्रयासों को भी झटका लगेगा। कैट ने पत्र में कहा है कि देशभर का व्यापारिक समुदाय सरकार के इस प्रस्ताव से काफी विचलित हुआ है। सरकार के परक्राम्य लिखित कानून के तहत धारा 138 को गैर-अपराधिक बनाने के प्रस्ताव को लेकर बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। कानून की यह धारा जारी किए गए चेक के बाउंस होने को अपराधिक जुर्म की श्रेणी में लाती है।

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भारतोया एवं राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा की सरकार का यह कदम देश में छोटे मामलों को अदालत में न जाने एवं अदालतों पर से काम का बोझ कम करने के बारे में एक अच्छी सोच है किन्तु व्यापार से सम्बंधित एक महत्वपूर्ण धारा 138 को गैर-आपराधिक बनाने से उन लोगों के हौसलें बुलंद होंगे जो आदतन अपराधी हैं और चेक देकर व्यापारियों से सामान लेकर लापता हो जाएंगे और उनके चेक बाउंस हो जाएगे।

कैट ने कहा कि इससे न केवल व्यापार बल्कि आम लोगों को भी काफी परेशानी होगी। संगठन ने कहा है कि यदि इस धारा को गैर- आपराधिक बना दिया तो ईमानदार व्यापारी जो पोस्ट डेटेड चेक देकर माल लेता है उसके समक्ष बड़ी परेशानी खड़ी होंगी, वहीं दूसरी ओर आम लोग भी समान मासिक किस्तों (ईएमआई) पर कई सामान एवं घर खरीदते हैं। ईएमआई के रूप में पोस्ट डेटेड चेक देते हैं। लेकिन इस धारा को गैर आपराधिक बना दिये जाने के बाद कोई भी पोस्ट डेटेड चेक स्वीकार नहीं करेगा।

भरतिया और श्री खंडेलवाल ने कहा धारा 138 में बड़े कड़े प्रावधान्न होने के बावजूद भी देश भर की अदालतों में चल रहे मामलों में 20% से अधिक मामले केवल चेक बाउंस की जांच से संबंधित हैं। यदि इस धारा को गैर- आपराधिक बना दिया जाता है तो ऐसे मामले कई गुणा बढ़ सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार के इस तरह के कदम से देश में आपूर्ति श्रृंखला पर गंभीर असर पड़ सकता है क्योंकि ज्यादातर व्यापारी इन पोस्ट डेटेड चेक के आधार पर क्रेडिट पर कारोबार करते हैं।

वित्त मंत्रालय ने कई छोटे मोटे जुर्म को अपराध की श्रेणी से हटाने का प्रसताव किया है। इनमें चेक बाउंस और कर्ज की वापसी से जुड़े मामले में भी हैं। कोरोना वायरस महामारी के कारण संकट में फंसे कारोबारियों को इस स्थिति से उबरने में मदद के लिये ये कदम उठाने का प्रस्ताव है। इनमें कम से 19 कानून हैं जिनमें सरकार रियायत देने के बारे में सोच रही है। इनमें परक्राम्य लिखत कानून (चेक बाउंस से जुड़ा), बैंक कर्ज की वापसी से जुड़े सरफेसई कानून, जीवन बीमा निगम कानून 1956, पीएफआरडीए कानून 2013, रिजर्व बैंक कानून 1934, राष्ट्रीय आवास बैंक कानून 1987, बैंकिंग नियमन कानून 1949 और चिट फंड कानून 1982 सहित कुछ अन्य कानून शामिल हैं जिनमें रियायत देने के बारे में विचार किया जा रहा है।

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