2021-22 का केंद्रीय बजट 1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश करेंगी। यह बजट मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का तीसरा बजट होगा। अगर कहें कि यह बजट असामान्य परिस्थितियों में पेश किया जाएगा तो गलत ना होगा। दरअसल कोरोना महामारी के खिलाफ देश लड़ाई लड़ रहा है और आर्थिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए तरह तरह के ऐलान किए गए हैं। हालांकि इन सबके बीच हर किसी में उत्सुकता रही है कि वित्त मंत्री के पिटारे से क्या कुछ बाहर आएगा। इसके साथ ही आम आदमी किस तरह से बजट में किए गए ऐलानों से प्रभावित होता है उसके बारे में विस्तार से बताएंगे।
पिछले वर्ष विवाद से विश्वास की शुरुआत
अगर पिछले साल की बजट की बात करें तो टैक्स के पुराने विवादों को निपटाने के लिए विवाद से विश्वास स्कीम शुरू की गई थी जिसके तहत 31 मार्च 2020 तक के बकाए की केवल विवादित कर राशि को जमा करने की घोषणा की गई थी, खास बात यह थी कि जुर्माना और ब्याज माफी की बात भी कही गई।
नए टैक्स स्ट्रक्चर को किया गया शामिल
बजट से वैसे तो समाज के हर वर्ग को उम्मीद रहती है। लेकिन नौकरी पेशा लोगों की चाहत होती है कि टैक्स रिबेट के मामले में सरकार मेहरबान हो। अगले वित्तीय वर्ष में टैक्स स्लैब में इस तरह से बदलाव हो ताकि ज्यादा से ज्यादा टैक्स छूट हासिल हो। इसके साथ ही इस बात पर भी नजर लगी होती है कि निवेश के किन विकल्पों में सबसे ज्यादा छूट हासिल होगी या किन निवेशों को टैक्स छूट के दायरे में लाया जाएगा। पिछले बजट में आयकरदाता को इनकम टैक्स के मोर्चे पर राहत दी गई थी। लेकिन वो राहत सशर्त थी।
कुछ को राहत, कुछ पर आफत
बजट में 5 से 7.5 लाख रुपये तक की सालाना आय पर इनकम टैक्स रेट को घटाकर 10 फीसदी कर दिया गया था. 7.5 लाख से 10 लाख रुपये तक की सालाना इनकम वालों के लिए आयकर की दर को 15 फीसदी कर दिया गया था। इसके अलावा 10-12.5 लाख रुपये तक की आय वालों पर अब 20 फीसदी और 12.5 लाख रुपये से लेकर 15 लाख रुपये तक की आय वालों पर 25 फीसदी की दर से टैक्स किया गया था। लेकिन इस नए टैक्स स्लैब के साथ सरकार ने एक शर्त भी रखी।नया टैक्स स्ट्रक्चर आयकरदाताओं के लिए वैकल्पिक होगा। इसे अपनाने वाले आयकरदाता आयकर कानून के चैप्टर VI-A के तहत मिलने वाले टैक्स डिडक्शन और एग्जेंप्शन का फायदा नहीं ले पाएंगे।
ड्यूटी और सेस के बारे में होता है अहम ऐलान
एक्साइज ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी, इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाती या घटाती है और इसका सीधा असर महंगाई पर पड़ता है। किसी भी उत्पाद पर ड्यूटी अधिक लगने की वजह से निर्माण करने वाली फर्म सामानों को महंगा कर देते हैं और उसका असर कस्टमर की खरीद पर पड़ता है। लेकिन अगर ड्यूटी कम हो तो उत्पाद सस्ता हो जाता है और ग्राहक के लिए बल्ले बल्ले रहती है। सेस के मामले में भी ऐसा ही है। नए वित्त वर्ष में किसी भी चीज पर सेस के बारे में फैसला किया जाता है। सेस ज्यादा लगने का अर्थ यह है कि सामान महंगा मिलेगा जबकि कम सेस का मतलब सामान सस्ता यानी कि इसका सीधा असर लोगों की जेब पर पड़ता है।
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