कुछ दिनों पहले केंद्रीय कैबिनेट ने मोरेटोरियम वाले बैंकों को डिपॉजिट इंश्योरेंस के अधीन लाने का फैसला किया जिससे उन ग्राहकों को थोड़ी राहत मिलेगी जिन्होंने अपना पैसा आर्थिक रूप से दबावग्रस्त स्थिति का सामना कर रहे बैंकों में रखा हुआ है। इसका बैंकिंग इकोसिस्टम के साथ-साथ आम आदमी के लिए भी व्यापक निहितार्थ हैं। आइए, इस घोषणा के बारे में विस्तार से जानें।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की हालिया घोषणा के बाद, डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (डीआईसीजीसी) अधिनियम, 1961, में बदलाव की सिफारिश की गई है। इस अधिनियम के तहत, बैंक सेविंग्स यानी बचत और चालू खाते, फिक्स्ड और रिकरिंग डिपॉजिट का बीमा प्रति बैंक प्रति डिपॉजिटर 5 लाख रुपए तक नियम और शर्तों के अधीन किया गया है। डिपॉजिट इंश्योरेंस का दावा तब किया जाता है जब कोई दबावग्रस्त बैंक अपने डिपॉजिटर्स का पैसा चुकाने में असमर्थ होता है और उसका लाइसेंस रिजर्व बैंक द्वारा रद्द करके उसे लिक्विडेट कर दिया जाता है। डिपॉजिट इंश्योरेंस ऐसी किसी घटना में बैंक में रखे गए कम-मूल्य वाले अधिकांश खातों को सुरक्षा प्रदान करते हुए यह सुनिश्चित करता है कि डिपॉजिटर्स को पूरी तरह नुकसान न हो। हालिया घोषणाओं के साथ बीमा दावे तब भी किए जा सकते हैं जब किसी बैंक को मोरेटोरियम के तहत रखा गया हो जिसकी अवधि के दौरान संबंधित बैंक के कारोबारी संचालन न सिर्फ प्रतिबंधित होते हैं बल्कि इसके डिपॉजिटर्स अपना पैसा भी नहीं निकाल सकते हैं।
वित्तीय संकट के पहले संकेत और लिक्विडेशन की प्रक्रिया के बीच एक लंबा सफर होता है। हमने हाल में देखा है कि कुछ बैंकों को मोरेटोरियम के तहत रखा गया था, जिस दौरान उसके डिपॉजिटर्स अपनी गाढ़ी कमाई भी निकाल पाने में असमर्थ थे। बैंकों को डूबने से बचाने के लिए आरबीआई ये प्रतिबंध लगाता है और (प्रतिबंधों के) विस्तार से, वह उन डिपॉजिटर्स की भी रक्षा करता है जिन्हें बैंक के डूबने से नुकसान होगा। हालांकि, कुछ बैंक इन प्रतिबंधों से बाहर भी निकल आते हैं, और कुछ नहीं भी। इस तरह, उनके डिपॉजिटर्स की अपने पैसे तक पहुंच अनिश्चित काल के लिए नहीं रहती है, जबकि कभी-कभी उन्हें अपने पैसे के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता है। ऐसे अधर में फंसे डिपॉजिटर्स को थोड़ी राहत देने के लिए, वित्तमंत्री ने इस साल की शुरुआत में केंद्रीय बजट में घोषणा की थी कि मोरेटोरियम वाले बैंकों पर भी डीआईसीजीसी के प्रावधान लागू होंगे। अब, घोषणा को अमल में लाया जाएगा।
डीआईसीजीसी आरबीआई की एक सब्सिडियरी है। डीआईसीजीसी अधिनियम के तहत बैंकों को अपने डिपॉजिट पर डीआईसीजीसी को प्रीमियम का भुगतान करना होगा। सभी वाणिज्यिक, सहकारी और ग्रामीण बैंकों के साथ-साथ भारतीय शाखाओं वाले विदेशी बैंकों को भी इस आवश्यकता का पालन करना होगा। डीआईसीजीसी के अनुसार, इसके द्वारा 89 सरकारी, निजी, विदेशी और स्मॉल फाइनेंस बैंकों सहित 2053 बैंकों को बीमित किया गया है, जिसमें देश के कुछ सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक भी शामिल हैं। इन बैंकों में 1900 से अधिक सहकारी बैंक हैं। बड़े बैंकों के विफल होने या यूं कहें कि डूबने की संभावना बहुत कम होती है। आरबीआई उनकी स्थिरता को देखने के लिए मौजूद है। हालांकि, सहकारी बैंक अधिक असुरक्षित हैं। डीआईसीजीसी के अनुसार, अकेले 2021 में ही अब तक छह सहकारी बैंकों के खिलाफ मुख्य दावों का निपटारा किया गया है। 2020 में इनकी संख्या सात थी। इसलिए सहकारी बैंकों के साथ ऐसा चलन दिखना सामान्य है।
वित्तमंत्री ने टिप्पणी की कि हालिया निर्णय मौजूदा समय में मोरेटोरियम से गुजर रहे बैंकों पर भी लागू होगा। एक अन्य सहकारी बैंक, पीएमसी बैंक, की घटना से सब लोग अच्छी तरह वाकिफ ही होंगे। इसके मोरेटोरियम के चलते ही शायद नीतियों में बदलाव हुआ हो। बैंक के छोटे डिपॉजिटर्स को आखिरकार कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। हालांकि, कवरेज सीमा को सख्ती से लागू किया जाएगा। ऐसे बैंकों के डिपॉजिटर्स को बकाया मूलधन और ब्याज के लिए 5 लाख रुपए तक भुगतान होने की उम्मीद की जा सकती है। वित्तमंत्री ने सुझाव दिया है कि दावों के निपटान की प्रक्रिया समयबद्ध होगी, और यह 90 दिनों में पूरी हो जानी चाहिए। यदि डिपॉजिटर्स का बकाया 5 लाख रुपए से अधिक है, तो रिडेंप्शन के लिए अनिश्चित काल तक इंतजार करना पड़ सकता है।
हाल के समय तक डिपॉजिटर इंश्योरेंस की सीमा सिर्फ 1 लाख रुपए थी। पिछले साल इसे पांच गुना बढ़ाया गया। वित्तमंत्री द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के अनुसार, सभी डिपॉजिट खातों में से 98.3% तक इस नई सीमा के भीतर आते हैं। इसलिए, डिपॉजिटर्स आश्वस्त हो सकते हैं कि उनके बैंक के डूबने पर उनका पैसा इस सीमा तक सुरक्षित रहेगा। हालिया घोषणा से सहकारी बैंकों और स्मॉल फाइनेंस बैंकों में ग्राहकों की दिलचस्पी भी बढ़ेगी, जो अक्सर डिपॉजिटर्स को अधिक ब्याज दर देते हैं, लेकिन बावजूद इसके भी ग्राहक इन बैंकों के ट्रैक रिकॉर्ड, एनपीए, कॉर्पोरेट गवर्नेंस, स्थिरता, ग्राहक सेवा, आदि पर संदेह के कारण नहीं जाते हैं। हालिया घोषणाओं के साथ, डिपॉजिटर्स इन बैंकों से भी जुड़ने की कोशिश करेंगे। यह एक ऐसा समय है जब ब्याज दर कम है। अधिक ब्याज रिटर्न मिलने से डिपॉजिटर्स, खास तौर पेंशनभोगियों, को मदद मिलेगी।
हालांकि, डीआईसीजीसी का सुरक्षा चक्र केवल डिपॉजिटर्स के लिए है। जिन बैंकों का एनपीए ज्यादा और कॉर्पोरेट गवर्नेंस खराब है, उन्हें अभी भी जद्दोजहद करनी होगी। इसलिए, निवेश की तरह ही लोगों को न सिर्फ अपनी सेविंग्स को डाइवर्सिफाई करना चाहिए, बल्कि अपने बैंकों की गतिविधियों पर भी नजर रखनी चाहिए। डीआईसीजीसी अधिनियम के संशोधनों से आपके डिपॉजिट सुरक्षित रहेंगे, लेकिन केवल एक हद तक। इसलिए, आपको अधिक रिटर्न की चाह रखने के साथ ही जोखिमों को भी कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए।
(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) ( ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)
Times Now Navbharat पर पढ़ें Business News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।