स्टैंडर्ड डिडक्शन वह कटौती या छूट है जो निवेश या खर्च पर व्यक्तिगत तौर पर होती है। यह वह रकम होती है जो आपके आमदनी से सीधे-सीधे काटकर अलग कर दी जाती है। इसके बाद बची हुई आमदनी पर ही टैक्स स्लैब अप्लाई होता है। 2005 के बजट में इस प्रावधान को खत्म कर दिया गया था, लेकिन करीब 13 सालों के बाद 2018 में इसका लाभ फिर से लोगों को दिया गया।
बता दें कि साल 2019 के बजट में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने मानक कटौती पर बड़ी घोषणा की थी। वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने मानक कटौती सीमा (स्टैंडर्ड डिडक्शन) को 40,000 से बढ़ाकर 50,000 तक कर दिया था। इस घोषणा के बाद माना जाने लगा कि वेतनधारी नागरिकों को पहले से अधिक टैक्स सेविंग का फायदा मिलेगा।
गौरतलब है कि साल 2004-05 तक मानक कटौती की राशि आय का 40 फीसदी होता था। यह 75,000 से 5 लाख तक सालाना आय वालों के लिए बेहद कम राशि थी। इसके अलावा 5 लाख से कम सालाना आय वालों के लिए 20,000 तक की मानक कटौती का प्रावधान था।
2018 के बजट में स्टैंडर्ड डिडक्शन का लाभ कर्मचारियों को दिया गया था लेकिन इसके साथ ही सरकार ने ट्रांसपोर्ट अलावेंस और मेडिकल रीईंबर्समेंट की सुविधा खत्म कर दी थी। हालांकि बावजूद इसके सरकार के इस फैसले से लोगों को ज्यादा टैक्स छूट का लाभ नहीं मिल पाया। लेकिन जब 2019 में बजट पेश किया गया तो स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा को 40,000 से बढ़ाकर 50,000 कर दिया गया जिसके बाद लोगों को काफी राहत मिली।
अगर आप इसे इस तरह समझना चाहते हैं कि स्टैंडर्ड डिडक्शन के जरिए आप कितने पैसे टैक्स के रुप में बचा सकते हैं तो ये आपके वेतन पर निर्भर करता है। अगर आपकी सैलरी 10 लाख रुपए है तो आपको 9.5 लाख रुपए पर ही टैक्स देने होंगे। स्टैंडर्ड डिडक्शन का लाभ वेतनधारियों और पेंशनधारियों दोनों को मिलता है।
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