अमीर-गरीब की खाई कम करने के लिए सरकार देगी पैसा ! मोदी चलेंगे यूनिवर्सल बेसिक इनकम का दांव ?

बिजनेस
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated May 20, 2022 | 18:01 IST

Poverty and Inequality In India: अमीर और गरीब के बीच लगातार बढ़ती खाई कम करने के लिए प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यूनिवर्सल बेसिक इनकम को लागू करने की सिफारिश की गई है।

Inequality In India
भारत में अमीर-गरीब के बीच बढ़ी खाई, फोटो: IFC 
मुख्य बातें
  • 2021 में टॉप-10 फीसदी आबादी के पास देश की कुल राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी हिस्सा था।
  • वहीं टॉप-1 फीसदी आबादी के पास देश की कुल राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी हिस्सा था।
  • यूनिवर्सल  बेसिक इनकम के तहत हर साल एक तय अंतराल पर पात्र नागरिकों एक तय राशि दी जा सकती है।

Poverty and Inequality In India: करीब 5 साल बाद एक बार फिर से यूनिवर्सल बेसिक इनकम (Universal Basic Income) की बहस छिड़ गई है। और यह बहस  प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा जारी एक रिपोर्ट से छिड़ी है। जिसमें देश में बढ़ती अमीर और गरीब की खाई को कम करने के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम को शुरू करने का सुझाव दिया गया है। सवाल यही है कि 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने जब यूनिवर्सल बेसिक इनकम जैसी स्कीम लाने का सुझाव दिया था। तो सरकार इस बात से पीछे हट गई थी कि अभी भारत सब्सिडी सिस्टम को हटाने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में जब बीते 5 साल में अमीर और गरीब की खाई कम होने की जगह बढ़ी है तो क्या मोदी सरकार यह दांव चलेगी। खास तौर पर जब उसने किसान सम्मान निधि योजना से लेकर मनरेगा और दूसरी योजनाओं के लिए नकद राशि देकर उस दिशा में पहले ही कदम बढ़ा दिए हैं।

क्यों पड़ी यूनिवर्सल बेसिक इनकम की जरूरत

इंस्टीट्यूट फॉर कंपटिटिवनेस (Institute for Competitiveness) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट भारत में असमानता की स्थिति (The State Of Inequality in India)में बताया गया है कि भारत में कैसे असमानता की खाई बढ़ गई है। देश की 0.1 फीसदी आबादी के पास कुल नेशनल इनकम की 5-7 फीसदी हिस्सेदारी है। यानी 12-13 हजार लोगों के पास पूरे देश की 5-7 फीसदी इनकम में हिस्सेदारी है।

इसी तरह दिसंबर 2021 में आई विश्व असमानता रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि टॉप-10 फीसदी आबादी के पास देश की कुल राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी जबकि टॉप1 फीसदी के पास 22 फीसदी हिस्सा था। जबकि 50 फीसदी आबादी के पास केवल 13 फीसदी हिस्सेदारी थी। और यह अंतर बढ़ता जा रहा है।

इनकम रुपये में  वेतन भोगी श्रमिकों की संख्या अस्थायी श्रमिक की संख्या स्व रोजगार
5000 से कम 21.62 % 1.8 % 76.58 %
5000-10000 14.33% 13.12% 72.55%
10,000-15,000 13.86% 14.86% 71.29%
15,000-20,000 15.03% 20.11% 64.85%
20,000-50,000 19.35% 31.40% 49.26%
50,000-1 lakh 26.40 % 28.23% 45.37%
1 lakh से ज्यादा 41.59% 14.41% 43.99%

(2019-20 में PLS के आधार विभिन्न इनकम ग्रुप में श्रमिकों की संख्या, इनकम सालाना आधार पर हैं)

क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम

अब इसी चौड़ी होती खाई को कम करने के लिए रिपोर्ट में यूनिवर्सल  बेसिक इनकम को लागू करने की बात कही गई है। इसके तहत सोच यह है कि देश के  नागरिकों को एक तय राशि नकद रूप से हर साल एक तय अंतराल पर दी जाय। यानी परिवार नहीं व्यक्ति के आधार पर एक तय राशि समय-समय पर मिलती रहे। ऐसा करने से लोगों के पास नकदी बढ़ेगी और उनकी इनकम में इजाफा होगा। 2017 में अरविंद सुब्रमण्यन ने इकोनॉमिक सर्वे में देश के उन लोगों को जो टॉप-25 फीसदी के इनकम के दायरे में आते हैं, उन्हें छोड़कर सभी लोगों को यूनिवर्सल बेसिक इनकम के दायरे में लाने का प्रस्ताव दिया था।

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हालांकि ऐसा करने के लिए सब्सिडी व्यवस्था खत्म करने की बात कही थी। उनके अनुसार ऐसा करने से देश में 0.5 फीसदी गरीबी घटाई जा सकती है। और उसका बोझ जीडीपी का 4-5 फीसदी ही पड़ेगा। जबकि अभी सरकार 3 फीसदी तक राशि सब्सिडी के रूप में खर्च कर देती है। 


 

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