मुंबई पहुंचा पंडित जसराज का पार्थिव शरीर, 20 अगस्‍त को राजकीय सम्‍मान के साथ होगा अंतिम संस्‍कार

Pandit Jasraj final rites: शास्‍त्रीय संगीत के पुरोधा और सुरों के रसराज कहे जाने वाले पंडित जसराज का पार्थ‍िव शरीर अमेरिका के न्‍यू जर्सी से मुंबई पहुंच गया है। 20 अगस्‍त को वह पंचतत्‍व में व‍िलीन हो जाएंगे।

Pandit Jasraj Last Rites
Pandit Jasraj Last Rites 

Pandit Jasraj final rites: शास्‍त्रीय संगीत के पुरोधा और सुरों के रसराज कहे जाने वाले पंडित जसराज का पार्थ‍िव शरीर अमेरिका के न्‍यू जर्सी से मुंबई पहुंच गया है। 20 अगस्‍त को वह पंचतत्‍व में व‍िलीन हो जाएंगे। मुंबई के विले पार्ले श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्‍कार होगा। पद्म विभूषण (2000) , पद्म भूषण (1990) और पद्मश्री (1975) जैसे सम्मानों से नावाजे जा चुके पंडित जसराज का राजकीय सम्‍मान के साथ अंतिम संस्‍कार होगा। 90 साल के पंडित जसराज को 21 बंदूकों की सलामी दी जाएगी। 

बता दें कि 28 जनवरी 1930 को हरियाणा के हिसार में जन्मे पंडित जसराज का 17 अगस्‍त को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। कोरोना वायरस महामारी के कारण लॉकडाउन के बाद से पंडित जसराज न्यूजर्सी में ही थे। पंडित जसराज ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते थे, जो 4 पीढ़ियों से शास्त्रीय संगीत की परंपरा को आगे बढ़ा रहा था। पंडित जसराज के परिवार में बेटे सारंग, बेटी दुर्गा, पोते-पोती स्वर शर्मा, अवनि जसराज, मेहरा, ऋषभ देव पंडित और ईश्वरी पंडित हैं।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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शास्त्रीय गायन के इतर पंडित जसराज ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी गाने गाए थे। उन्होंने पहली बार साल 1966 में आई फिल्म 'लड़की सह्याद्रि' में अपनी आवाज दी थी। डायरेक्टर वी शांताराम की इस फिल्म में उन्होंने 'वंदना करो अर्चना करो' भजन को राग अहीर भैरव में गाया था। उन्होंने दूसरा गाना साल 1975 में आई फिल्म 'बीरबल माय ब्रदर' में गाया था। इसमें उन्होंने और भीमसेन जोशी ने राग मालकौन में जुगलबंदी की थी। पंडित जसराज ने 'फिल्म 1920' के लिए भी एक गाना गया था। फिल्म का मशहूर गाना 'वादा तुमसे है वादा' पंडित जसराज की ही आवाज में था। यह फिल्म साल 2008 में आई थी। इनके अलावा उन्होंने दो भक्ति सॉन्ग श्री मधुराष्टकम् और गोविन्द दामोदर माधवेति भी गाए, जिन्हें बेहद पसंद किया गया।

पंडित जसराज का सबसे बड़ा योगदान शास्त्रीय संगीत को जनता के लिए सरल और सहज बनाना रहा जिससे उसकी लोकप्रियता बढी। उन्होंने ख्याल गायकी में ठुमरी का पुट डाला जो सुनने वालों के कानों में मिसरी घोल जाता था। वह बंदिश भी अपने जसरंगी अंदाज में गाते थे। शास्त्रीय संगीतकार होने के बावजूद उन्हें नये दौर के संगीत से गुरेज नहीं था। वह दुनिया भर का संगीत सुनते थे और सराहते थे। जगजीत सिंह की गजल 'सरकती जाये रूख से नकाब' उनकी पसंदीदा थी और एक बार दिन भर में वह सौ बार इसे सुन गए थे।

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