जानिए, जिंदादिल शायर राहत इंदौरी के बारे में, मुफलिसी से गुजरकर हासिल की शोहरत की बुलंदियां

Poet Rahat Indori passes away: 70 वर्षीय राहत इंदौरी जिंदादिल शख्सियत के मालिक थे। उन्होंने मुफलिसी से गुजरकर शोहरत की बुलंदियां हासिल की।

Rahat Indori
राहत इंदौरी  |  तस्वीर साभार: Twitter
मुख्य बातें
  • जाने-माने शायर राहत इंदौरी नहीं रहे
  • वह कोरोना वायरस पॉजिटिव पाए गए थे
  • उनका अस्पताल में इलाज चल रहा था

हर दिल अजीज शायर राहत इंदौरी ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। उनका दिल का दौरा पड़ने से मंगलवार को निधन हो गया। उन्हें कोरोना से संक्रमित होने के बाद सोमवार को इंदौर के अरबिंदो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके अचानक चले जाने से शायरी के दीवानों में शोक की लहर है। किसी को यकीन नहीं हो रहा कि अकेले ही मुशायरों की महफिल में छा जाने वाला शायर उनसे जुदा हो गया। 70 वर्षीय राहत इंदौरी शायरी का जो खजाना छोड़कर गए हैं, वो आने वाली पीढ़ियों के लिए नायाब विरासत है। उनका अपनी शायरी और खास लहजे की वजह से अलग मुकाम था। 

'शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम 
आंधी से कोई कह दे कि औकात में रहे'

राहत इंदौरी ने कई मशहूर हिंदी फिल्मों में गाने भी लिखे, जिन्हें काफी पसंद किया गया। हालांकि, उन्हें फिल्मों में गीत लिखने की बंदिशें ज्यादा रास नहीं आई। उन्होंने फिल्मी गीतों से किनारा कर सारा ध्यान अपनी शायरी पर ही दिया। उन्होंन एक मर्तबा कहा था कि मंचों पर शायरी सुनाना ही मुझे पसंद है। वहां जो प्यार मिलता है, कहीं और नहीं मिल सकता। 

उन्होंने जहां एक तरफ मोहब्बत की शायरी की वहीं दूसरी तरफ वह सामाजिक कुरीतियों और बदहाल सरकारी व्यवस्था पर तंज कसने में कभी पीछे नहीं रहे। उन्होंने जिंदगी के तजुर्बों को शब्दों में इस तरह पिरोया कि वो बात हर किसी को अपनी ही लगने लगी। मुश्किल ज्जबातों को आसान शब्दों में ढालने की जादूगरी ने ही उन्हें बेहद पॉपुलर शायर बनाया।

'आंख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो 
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो'

राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी 1950 इंदौर में हुआ था। उनके बचपन का नाम कामिल था, जिसे बाद में बदलकर राहत उल्लाह कर दिया गया। उनके पिता रिफअत उल्लाह कपड़ा मिल में कर्मचारी थे और 1942 में सोनकछ देवास जिले से इंदौर आए थे। राहत का बचपन मुफलिसी में गुजरा, लेकिन उन्हें पढ़ने लिखने का शौक शुरू से ही रहा। राहत के परिवार ने काफी मुश्किल दिनों का सामना किया और जब वह थोड़े समझदार हुए तो उन्होंने चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया।

'हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं 
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं'

उनकी प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और फिर बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया। वह लंबे समय तक उर्दू के प्रोफेसर भी रहे। उन्होंने कॉलेज के दिनों में ही मुशायरों में जाना शुरू कर दिया था, जिसकी वजह से धीरे-धीरे अपनी पहचान कायम करने में मदद मिली। राहत की शायरी का असर लोगों पर कुछ ऐसा हुआ कि शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचने में कामयाब हुए। उनकी शायरी के साथ-साथ उनकी शख्सियत में भी जिंदादिली थी।

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