अखिलेश को अंबेडकर, मायावती को याद आई अयोध्या, चुनावों के लिए नेताओं ने बदला चोला !

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Oct 13, 2021 | 20:49 IST

UP Election 2022: यूपी विधान सभा चुनावों के लिए विपक्षी दलों ने बिगुल फूंक दिया है। इस बार सबसे ज्यादा बदले हुए बसपा प्रमुख मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव नजर आ रहे हैं।

Akhilesh yadav Vijay Yatra
अखिलेश यादव दलित वोटर वोटरों को साधने की कोशिश में हैं।  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • लखनऊ की रैली में मायावती ने कहा कि बसपा की सरकार बनने पर अयोध्या, काशी और मथुरा में विकास कार्य पूरे कराए जाएंगे।
  • अखिलेश यादव के 'रथ' पर राम मनोहर लोहिया, मुलायम सिंह यादव के साथ डॉ भीम राव अंबेडकर की भी तस्वीर है।
  • प्रियंका गांधी यह संदेश देने की कोशिश में हैं कि भाजपा के खिलाफ जमीन पर केवल कांग्रेस संघर्ष कर रही है।

नई दिल्ली:  उत्तर प्रदेश में चुनावी दंगल की शुरूआत हो गई  है। लखीमपुर खीरी हिंसा के साये में विपक्षी दलों ने अपनी रणनीति के खुलासे करने भी शुरू कर दिए हैं। जहां कांग्रेस प्रियंका गांधी के नेतृत्व में अपनी खोई हुई जमीन तलाशनी की कोशिश में लगी हुई है। वहीं अखिलेश यादव ने 'विजय यात्रा' शुरू कर दी हैं। जबकि मायावती इस बार काफी बदली हुई नजर आ रही हैं। और वह सॉफ्ट हिंदुत्व पर दांव खेल रही हैं। अब देखना यह है कि विपक्ष की रणनीति पर भाजपा क्या दांव खेलती हैं। लेकिन  ये साफ है कि चुनावों को देखते हुए नेताओं ने अपना नया रुप दिखाना शुरू कर दिया है।

अखिलेश के रथ पर इस बार अंबेडकर

12 अक्टूबर को समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने 2022 के चुनावों के लिए कानपुर से 'विजय यात्रा' की शुरूआत कर दी है। 'विजय यात्रा'  में इस्तेमाल होने वाली बस से अखिलेश यादव दो अहम संदेश दे रहे हैं। एक तो बस पर इस बार राम मनोहर लोहिया, मुलायम सिंह यादव के साथ डॉ भीम राव अंबेडकर की भी तस्वीर है। इसी तरह उस पर यह भी संदेश लिखा है 'नयी हवा है नयी सपा है'। जाहिर है अखिलेश बदली हुई समाजवादी पार्टी का संदेश दे रहे हैं। क्योंकि भाजपा, पार्टी पर हमेशा गुंडा राज का आरोप लगाती रही है। वहीं डॉ अंबेडकर की तस्वीर से साफ है कि अखिलेश यादव, प्रदेश की 22 फीसदी दलित आबादी को लुभाने की कोशिश में हैं। जहां पर मायावती का बड़ा वोट बैंक हैं। 

रणनीति से साफ है कि अखिलेश इस बार उम्मीदवारों के ऐलान में दलित नेताओं को तरजीह दे सकते हैं। प्रदेश में 85 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। ऐसे में 403 सीटों वाली विधानसभा में दलित सीटों काफी मयाने  रखती हैं। और अखिलेश इस बार 2017 और 2019 की गलतियां नहीं दोहराना चाहते हैं। इसलिए वह बार-बार कह रहे हैं कि बड़े दलों से गठबंधन कर देख लिया। इस बार छोटे दलों से गठबंधन करेंगे। हालांकि महान दल को छोड़कर उन्होंने अभी तक राष्ट्रीय लोक दल और चाचा शिवपाल यादव के प्रजसपा  से गठबंधन को लेकर पत्ते नहीं खोले हैं। जाहिर है अखिलेश अभी मोल-भाव के मूड में हैं। और दूसरे दलों खास तौर से बसपा के नेताओं को सपा में शामिल करने पर जोर लगाए हुए हैं। खास तौर से पूर्वांचल के असंतुष्ट बसपा नेताओं पर  उनकी खास नजर है। 

सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर मायावती

इस बार के चुनावों में मायावती भी बदली हुई नजर आ रही हैं। उन्होंने लखनऊ में 9 अक्टूबर की रैली में सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेल दिया है। बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि बसपा की सरकार बनने पर अयोध्या, काशी और मथुरा में विकास कार्य पूरे कराए जाएंगे। उन्होंने कहा कि वह केंद्र और  राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं (अगर इससे लोगों को लाभ होता है) को राजनीतिक बदले की भावना से नहीं रोकेंगी। और अयोध्या, वाराणसी और मथुरा जैसे धार्मिक शहरों में  शुरू किए गए कार्य पूरे होंगे। साफ है कि मायावती इस बार केवल दलित वोटरों के भरोसे नहीं रहना चाहती हैं। इसलिए उन्होंने 2007 के अपने सफल प्रयोग को दोबारा अपना लिया है। पार्टी की लगातार कोशिश है कि वह ब्राह्मण मतदाताओं को अपनी ओर खीचें। 

Mayawati Soft Hindutva Card

इसके पहले सितंबर में ब्राह्मण सम्मेलन में कहा था  कि इस बार हमारी सरकार बनेगी तो हम महापुरुषों के पार्क, प्रतिमा या संग्रहालय बनाने में नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की सूरत बदलने में अपनी ताकत लगाएंगे। जाहिर है मायावती को अच्छी तरह पता है कि बिना गठबंधन  के चुनाव लड़ने में उन्हें सभी मतदाताओं को लुभाना पड़ेगा।

प्रियंका की जमीन पर ज्यादा दिखने की कोशिश

3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के बाद प्रियंका गांधी ने जैसी सक्रियता दिखाई है। उससे यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या वह उत्तर प्रदेश में कांग्रेस में जान फूंक पाएंगी। वह जिस तरह से घटना के दिन रात में ही लखीमपुर खीरी पीड़ितों से मिलने निकल पड़ीं और उसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया। और फिर उन्हें सबसे पहले लखीमपुर खीरी जाने की इजाजत मिली, उसमें उन्होंने अखिलेश यादव और मायावती से जरूर बाजी मार ली। उनकी पूरी कोशिश है कि जमीन पर सक्रिय दिखकर पार्टी कार्यकर्ताओं में जान फूंकी जाय। इसीलिए वह बीच-बीच विपक्ष पर हमलाकर यह दिखाने की कोशिश करती है कि असल में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस ही संघर्ष कर रही हैं। उन्होंने सीतापुर में हिरासत के दौरान कहा था 'समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी मैदान में संघर्ष करती नहीं दिखती हैं।' जाहिर है चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक दल नए चोले में नजर आने लगे हैं। लेकिन उनकी यह कवायद जनता को कितना लुभाएगी, यह तो चुनाव के परिणाम ही बताएंगे।

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।

अगली खबर