बेगूसराय के रचियारी गांव से उठी थी 'बूथ कैप्चरिंग' की चिंगारी, 1957 से पहले इससे अनजान था देश

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आलोक राव
Updated Sep 23, 2020 | 08:34 IST

स्थानीय लोगों का कहना है कि चुनावों में कामदेव की दबंगई इतनी बढ़ गई थी कि 1972 के चुनाव में मिथिला क्षेत्र से आने वाले एक केंद्रीय मंत्री ने चुनाव जीतने के लिए सिंह की दंबगई का सहारा लिया।   

Booth capturing first reported in Bihar Begusarai Rachiri village in 1957 election
बेगूसराय के रचियारी गांव से उठी थी 'बूथ कैप्चरिंग' की चिंगारी।  |  तस्वीर साभार: PTI
मुख्य बातें
  • 1957 के आम चुनाव में बेगूसराय के रचियारी गांव में हुई बूथ कैप्चरिंग की पहली घटना
  • पहली बार दंबगों ने एक नेता के लिए बूथ कैप्चर किया, इसके बाद शुरू इसका सिलसिला
  • किसी एक पार्टी के नहीं होते थे ये दबंग, जो ज्यादा पैसा देता था उसके लिए करते थे काम

नई दिल्ली : देश 1957 से पहले बूथ कैप्चरिंग क्या होती है, इस शब्द से पूरी तरह अनजान था लेकिन इस साल हुए आम चुनाव में इस शब्द ने जनमानस में अपनी पहचान बना ली। देश में बूथ कैपचरिंग की पहली घटना 1957 के आम चुनाव में बिहार के बेगूसराय जिले के रचियारी गांव में सामने आई। इसके बाद बिहार के चुनावों में बूथ कैप्चरिंग की घटना आम बात हो गई। नेता स्थानीय दंबंगों की मदद से मत पेटियों को लूटकर, उन्हें नुकसान पहुंचाकर चुनाव जीतते आए। बूथ कैप्चरिंग ने बिहार की राजनीति में नेता और माफिया का गठजोड़ तैयार किया और आगे चलकर यह गठजोड़ चुनाव जीतने का एक सफल फार्मूला बन गया। रचियारी गांव की घटना ने भविष्य के लिए एक ट्रेंड सेट कर दिया। बिहार में धन, बल और माफिया का एक ऐसा कॉकटेल तैयार हुआ जिसका राजनीतिक पर दशकों तक दबदबा बना रहा। 

रचियारी गांव के कचहरी टोला में हुई बूथ कैप्चरिंग
बताया जाता है कि 1957 के आम चुनाव में सरयू प्रसाद सिंह के लिए रचियारी गांव के कचहरी टोला में स्थानीय लोगों ने बूथ कैप्चर किया। वरिष्ठ कम्यूनिस्ट नेता चंद्रशेखर सिंह पहली बार  यह से चुने गए। रचियारी गांव में बूथ कैप्चरिंग की बाद से राज्य के चुनावों में इसकी धमक देखी जाने लगी। हर चुनाव में इसे आजमाया जाने लगा। चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक पार्टियां बेगूसराय के डॉन कामदेव सिंह का सहारा लेने लगीं। नेता बूथ कैप्चर करने के लिए सिंह की मदद लेने लगे। स्थानीय लोगों का कहना है कि चुनावों में कामदेव की दबंगई इतनी बढ़ गई थी कि 1972 के चुनाव में मिथिला क्षेत्र से आने वाले एक केंद्रीय मंत्री ने चुनाव जीतने के लिए सिंह की दंबगई का सहारा लिया।   

बूथ कैप्चरिंग ने खराब की राज्य की छवि
दुनिया के सबसे पुराने गणतंत्र के रूप में अपनी पहचान रखने वाले वैशाली बिहार में ही स्थित है लेकिन राज्य के चुनावों में जिस तरह से अपराध, हिंसा और लूट का बोलबाला शुरू हुआ उसने राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर राज्य की छवि धूमिल की। बिहार का चुनाव एक तरह से 'गन, गोली और गून्स' का पर्याय बन गया। 1970 के दशक में बूथ कैप्चरिंग एक आम शब्द बन गया। बिहार से शुरू हुआ बूथ कैप्चरिंग का सिलसिला उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल होते हुए अन्य राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया। 

एक धंधे और कारोबार का रूप लिया
आगे 1980 के दशक में बूथ कैप्चरिंग का खेल और भयावह रूप में सामने आया। राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ने के साथ चुनावों में बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं भी बढ़ने लगीं। खास बात यह है कि बूथ कैप्चरिंग एक 'धंधे' की तरफ बढ़ने और फलने-फूलने लगा। बूथ कैप्चरिंग करने वाले पूरी तरह प्रोफेशनल होते थे जो भारी रकम लेकर किसी नेता के पक्ष में घटनाओं को अंजाम देते थे। बूथ कैप्चरिंग करने वाले दबंगों की किसी एक पार्टी के प्रति निष्ठा नहीं रहती थी। पैसा ही इनके लिए सब कुछ होता था। चुनाव में जो भी इन्हें ज्यादा पैसा देता था ये उनके लिए बूथ कैप्चरिंग करते थे।  

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