नई दिल्ली। पहले 50 दिन में भारत में 200 से कम केस थे और मई में अब तक हर दिन औसतन 2 हजार मामले सामने आ रहे हैं। अगर 1 मई से 8 मई तक के आंकड़ों को देखें तो 16 हजार मामले दर्ज हुए हैं। भारत में 30 जनवरी को केरल के त्रिशुर शहर में वुहान से मेडिकल का छात्र आया था जो कोरोना पॉजिटिव था। यह भारत में पहला केस था। उसके बाद अगर देखें तो फरवरी और मार्च के शुरुआती दिनों में केस ज्यादा नहीं आए। लेकिन उसके बाद से कोरोना मामलों की संख्या में बढ़त देखी जाने लगी।
भारत में अप्रैल के महीने में कोरोना केस में आई तेजी
पहले पचास दिन यानि 30 जनवरी से 15-16 मार्च तक यह संख्या 200 से कम थी। पीएम नरेंद्र मोदी इस खतरे को भांप चुके थे और देश के नाम संबोधन में कहा कि इस बीमारी को हल्के में लेने की जरूरत नहीं है,खतरा बहुत बड़ा है। उसके बाद 24 मार्च को 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान किया गया। हालांकि 27 मार्च के बाद कोरोना संक्रमितों की रफ्तार तेज हो गई। अप्रैल में इस संख्या में बढ़ोतरी हुई। लेकिन एक अच्छी बात यह रही कि डबलिंग रेट में भी इजाफा हुआ। कोरोना के खिलाफ लड़ाई को और धारदार बनाने के लिए 15 अप्रैल को 19 दिन के लिए और 4 मई से दो हफ्ते के लिए पूरा देश लॉकडाउन में है।
अमेरिका में 100 दिन में कोरोना संक्रमितों की संख्या 12 लाख के पार
अब अगर वैश्विक स्तर पर देखें और अमेरिका के साथ साथ ब्रिटेन से तुलना करें तो पाएंगे कि भारत में हालात उतने खराब नहीं हुए जितना अमेरिका और ब्रिटेन में हुआ। अमेरिका ने 21 जनवरी को कोरोना केस के बारे में जानकारी दी और फरवरी के अंत में यह संख्या 86 हुई जो बहुत नहीं थी। लेकिन मार्च में यह ग्राफ तेजी से बढ़कर दो लाख के पार चला गया और 100 दिन होते होते यह संख्या 12 लाख के पार है। इसका अर्थ है कि अमेरिका की तुलना में भारत ने कोरोना संक्रमण की बेलगाम रफ्तार पर रोक लगाने में कामयाब रहा।
ब्रिटेन में 2 लाख के पार
अब बात ब्रिटेन की करते हैं, वहां 31 जनवरी को पहला कोरोना केस रिपोर्ट हुआ, फरवरी के आखिर में कुल संख्या 23 थी लेकिन मार्च के समाप्त होने पर यह संख्या 25 हजार हुआ और 100 दिन पूरा होने के बाद 2 लाख से ज्यादा केस सामने हैं। ब्रिटेन के पीएम बोरिस जानसन बार बार अपील कर रहे हैं कि लोग कोरोना के खतरे को हल्के में न लें। ब्रिटेन में स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी नहीं है। लेकिन ब्रिटेन, भारत की तरह शायद सोशल डिस्टेंसिंग पर अमल नहीं कर पाया। इसके साथ ही समय रहते ब्रिटेन में लॉकडाउन पर फैसला देर से लिया गया था।
भारत में लॉकडाउन कामयाब !
इन आंकड़ों पर नजर डालें तो हमें पता चलता है कि पूरे देश में एक साथ लॉकडाउन का फैसला लेना बेहतर रहा। अमेरिका में कोरोना मरीजों की संख्या इतनी ज्यादा होने पर भी टुकड़ों में ही लॉकडाउन का फैसला किया गया था। यही हाल ब्रिटेन का भी था और उसका नतीजा दोनों देशों के सामने है। अब सवाल उठता है कि अगर भारत ने लॉकडाउन का फैसला समय पर लिया तो भी कोरोना के मामले तेजी से बढ़े।
क्या है जानकारों की राय
इस सवाल के जवाब में जानकार कहते हैं कि ऐसा नहीं हो सकता है कि एक ही साथ हर एक शख्स में कोरोना के लक्षण नजर आएं। अगर किसी शख्स में कोरोना का लक्षण 6वें दिन दिखाई देता है तो पांच दिन पहले जिन जिन लोगों से मिला है उन लोगों के भी कोरोना संक्रमित होने की संख्या बढ़ जाएगी। लॉकडाउन का मकसद कोरोना के ट्रांसमिशन को रोकना था और नतीजे इस बात की गवाही देते हैं कि भारत को कामयाबी मिली है। लेकिन अभी भी ट्रेसिंग और टेस्टिंग पर काम करने की आवश्यकता है।
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