नई दिल्ली: देश में कोरोना वायरस के मामले 2 लाख से ज्यादा हो गए हैं। 1 लाख से ज्यादा मामले अभी सक्रिय हैं, हालांकि अच्छी बात है कि 1 लाख से ज्यादा लोग ठीक भी हो गए हैं। दुखद ये है कि 5815 लोगों की जान इस वायरस के संक्रमण से जा चुकी है। हमारे देश में कोरोना केस बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। कहा ये भी जा रहा है कि जून-जुलाई में इसमें और तेजी आएगी। यानी कि हाल-फिलहाल में कोरोना के प्रकोप से राहत मिलती नहीं दिख रही है। चिंता की बात ये है कि जब देश लॉकडाउन से बाहर आ रहा है, अर्थव्यवस्था को फिर से शुरू किया जा रहा है तब कोरोना के मामले और तेजी से बढ़ रहे हैं। यानी की इसका संक्रमण और ज्यादा फैल रहा है।
ऐसे में सवाल है कि जब लॉकडाउन हट रहा है, लोगों को छूट दी जा रही है, बाजार खोला जा रहा है, गतिविधयां शुरू हो रही हैं तो फिर कोरोना के बढ़ते कहर से कैसे बचा जाएगा? कई लोग सवाल भी उठाते हैं कि सरकार ने लॉकडाउन लगाने में जल्दबाजी की थी और अब जब मामले लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं तब लॉकडाउन हटा क्यों रही है? एक सवाल ये भी है कि क्या अब सरकार ने लोगों के ऊपर छोड़ दिया है कि वो अपनी सुरक्षा का खुद ध्यान रखें?
क्या पूरा हो पाया लॉकडाउन का मकसद?
दरअसल, सरकार के लिए लॉकडाउन लगाना आसान था, लेकिन अब उससे बाहर निकलना कठिन है। देश में 25 मार्च को जब लॉकडाउन लगाया गया था तब कोविड 19 के करीब 500 मामले थे, लेकिन अब 1 जून से अनलॉक 1 लागू हुआ है तो मामले 2 लाख से ऊपर पहुंच गए हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या लॉकडाउन जिस मकसद से लगाया गया था कि कोरोना से प्रसार को रोका जाए, हम उसमें सफल नहीं हुए? या ये इसलिए था कि इस वायरस से लड़ने की तैयारियों के लिए हमें कुछ समय चाहिए था, क्योंकि जब तक इसका इलाज नहीं मिल जाता या कोई वैक्सीन या दवा नहीं आ जाती तब तक इसे खत्म नहीं किया जा सकता या हराया जा सकता।
जान और जहान दोनों जरूरी
वास्तव में हमारी सरकारें भी कहने लगीं कि आप हमेशा के लिए सबकुछ बंद नहीं रख सकते। हमें जीवन को सामान्य करना होगा, लॉकडाउन से बाहर आना होगा और अब हमें कोरोना के साथ जीना होगा। शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि जान है तो जहान है, लेकिन 21 दिनों के लॉकडाउन 1 के बाद उन्होंने कहा कि जान भी और जहान भी। यानी सरकार लोगों की जान के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी फिर से पटरी पर लाना चाहती हैं। ऐसे ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ज्यादातर चीजों को फिर से शुरू करने के पक्ष में रहे। उन्होंने कई रियायतें भी दीं। और इन रियायतों के बाद जब दिल्ली में मामले बढ़ने लगे तो उन्होंने कहा कि हां, लॉकडाउन में छूट देने से कोरोना के मामले बढ़े हैं, लेकिन चिंता की बात नहीं है। चिंता की बात तब तक नहीं है, जब तक लोग ठीक हो रहे हैं और मृत्यु दर कम है।
अनलॉक में खुद से ज्यादा संयम बरतने की जरूरत
ऐसे में हमें ये समझना होगा कि देश के लिए लॉकडाउन से ज्यादा मुश्किल समय अनलॉक वाला रहने वाला है। यानी कि आपको पहले की तरह सब चीजें भी करनी है, जैसे- दफ्तर जाना, जरूरत के लिए बाहर निकलना, वाहनों में सफर करना। लेकिन ये सब करते हुए हमें अब अपने आपको संक्रमित होने से भी बचाना है, वो भी तब जब ये ज्यादा फैल गया है। पहले की तुलना में अब लोगों की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ गई है। उन्हें समझना होगा कि लॉकडाउन खत्म हो रहा है, लेकिन वायरस का खतरा और बढ़ रहा है। ऐसे में उन्हें और सावधानियां बरतनी होंगी, ज्यादा सतर्क रहना होगा। बिना सरकार के कहे खुद पर और ज्यादा प्रतिबंध लगाने होंगे। बहुत ज्यादा जरूरी ना हो तो बाहर न निकलें और निकलें तो बहुत सावधानी बरतते हुए निकलें। ऐसा सोचना गलत है कि सरकार ने छूट दे दी है तो हम वापस से पुरानी लाइफ जी सकते हैं, ऐसा सोचना आप पर, आपके परिवार पर और समाज पर भारी पड़ सकता है। ये समय खुद से और ज्यादा संयम बरतने का है। खुद को, अपने परिवार को और अपने समाज को बचाने का है। इसी सोच के साथ कोरोना के खिलाफ लड़ा जा सकता है।
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