नई दिल्ली : कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी रफ्तार के कमजोर पड़ने के बीच चिंता तीसरी लहर को लेकर जताई जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि देश में कोविड-19 की तीसरी लहर सितंबर-अक्टूबर में आ सकती है। इस बीच कोरोना वायरस का एक नया वैरिएंट भी चिंता का सबब बन रहा है, जिसे वैज्ञानिकों ने डेल्टा प्लस वैरिएंट कहा है। दुनिया के कई देशों में इसका असर देखा जा रहा है।
डेल्टा प्लस वैरिएंट, कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट से ही जुड़ा है, जिसे भारत में संक्रमण की दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार समझा जाता है। कोरोना वायरस का डेल्टा वैरिएंट B.1.617.2 सबसे पहले भारत में मिला था, जिसके बाद दुनिया के 85 देशों में इसका प्रभाव देखा गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर यह चलन इसी तरह जारी रहा तो इसके हावी होने की आशंका है।
कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट को लेकर सामने आईं चिंताएं अभी थमी भी नहीं कि डेल्टा प्लस वैरिएंट ने भारत सहित कई देशों में दस्तक दी है। भारत के अतिरिक्त जिन देशों में कोरोना वायरस संक्रमण के डेल्टा प्लस वैरिएंट सामने आए हैं, उनमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, रूस और जापान शामिल हैं। भारत के महाराष्ट्र में इस वैरिएंट से शुक्रवार को पहली मौत दर्ज की गई है, जबकि 20 लोग बीमार हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस का यह वैरिएंट बेहद संक्रामक व घातक है और अगर इसके प्रसार को नहीं रोका गया तो यह बड़ी आबादी में फैल सकता है। भारत सरकार ने पहले ही कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस वैरिएंट को 'वेरिएंट ऑफ कंसर्न' घोषित किया है। कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट की तरह ही डेल्टा प्लस वैरिएंट को भी सुपर-स्प्रेडर के तौर पर देखा जा रहा है।
विशेषज्ञ कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस वैरिएंट को बेहद खतरनाक बताते हैं। उनका कहना है कि यह न सिर्फ शरीर में बनी हुई एंटीबॉडी को खत्म करता है, बल्कि फेफड़ों की कोशिकाओं को भी बहुत जल्दी संक्रमित कर उन्हें नष्ट कर देता है। ऐसे में आशंका इस बात को लेकर भी जताई जा रही है कि इस पर वैक्सीन का असर होगा या नहीं? हालांकि कई वैक्सीन कंपनियों ने इस वैरिएंट पर भी टीकों को असरदार बताया है।
दुनियाभर में एक बड़ी स्वास्थ्य चिंता के रूप में सामने आया कोरोना वायरस का डेल्टा प्लस वैरिएंट सबसे पहले यूरोप में पाया गया। इसके बाद इसने कई देशों में पांव पसार लिए। यह स्पाइक प्रोटीन के जरिये शरीर की कोशिकाओं से चिपक जाता है और इसलिए इस वायरस में बदलाव का बेहद नकारात्मक असर शरीर पर पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका सामना करने के लिए इसकी उत्पत्ति को लेकर विस्तृत जानकारी जरूरी है।
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