नयी दिल्ली: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शनिवार को कहा कि आकार और प्रभाव को देखते हुए भारत और चीन पर दुनिया का काफी कुछ निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच संबंधों का भविष्य 'किसी तरह की समतुल्यता या समझ' पर पहुंचने पर ही निर्भर करता है।सीआईआई शिखर सम्मेलन में ऑनलाइन वार्ता के दौरान जयशंकर ने कहा कि दोनों देशों के बीच 'समस्याएं' हैं जो 'अच्छी तरह परिभाषित' हैं। वह एक सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या भारत और चीन अगले दस-बीस वर्षों में दोस्त बन सकते हैं जैसे फ्रांस और जर्मनी ने अपने अतीत को छोड़कर नये संबंध स्थापित किए।
जयशंकर ने सीधा जवाब नहीं दिया बल्कि संक्षिप्त रूप से संबंधों के ऐतिहासिक पहलू बताए।उन्होंने कहा, ‘‘हम चीन के पड़ोसी हैं। चीन दुनिया में पहले से ही दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हम एक दिन तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनेंगे। आप तर्क कर सकते हैं कि कब बनेंगे। हम जनसांख्यिकीय रूप से काफी अनूठे देश हैं। हम केवल दो देश हैं जहां की आबादी एक अरब से अधिक है।’’उन्होंने कहा, 'हमारी समस्याएं भी लगभग उसी समय शुरू हुईं जब यूरोपीय समस्याएं शुरू हुई थीं।'
विदेश मंत्री ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दोनों देशों के काफी मजबूत तरीके से उभरने के समय में भी बहुत ज्यादा अंतर नहीं है।उन्होंने कहा, 'हम दोनों देशों के समानांतर लेकिन अलग-अलग उदय को देख रहे हैं। लेकिन ये सब हो रहा है जब हम पड़ोसी हैं। मेरे हिसाब से दोनों देशों के बीच किसी तरह की समानता या समझ तक पहुंचना बहुत जरूरी है।’’उन्होंने कहा, ‘‘यह न केवल मेरे हित में है बल्कि बराबर रूप से उनके हित में भी है और इसे कैसे करें यह हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है...।'
जयशंकर ने कहा, 'और मैं अपील करता हूं कि हमारे आकार और प्रभाव को देखते हुए दुनिया का काफी कुछ हम पर निर्भर करता है। इस सवाल का जवाब देना आसान नहीं है। समस्याएं हैं, समस्याएं तय हैं। लेकिन निश्चित रूप में मैं समझता हूं कि यह हमारी विदेश नीति के आकलन का केंद्र है।' क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी, मुक्त व्यापार समझौते पर जयशंकर ने कहा कि आर्थिक समझौते से राष्ट्रीय आर्थिक वृद्धि का उद्देश्य पूरा होना चाहिए और कहा कि इस तरह के समझौते करने के लिए यह भारत की मुख्य शर्त होगी।
उन्होंने कहा, 'आर्थिक समझौते आर्थिक गुण-दोष पर आधारित होने चाहिए।' उन्होंने कहा कि पिछले 20 वर्षों में जो आर्थिक समझौते हुए हैं उनके विश्लेषण से पता चलता है कि उनमें से कई देश के लिए मददगार नहीं हो सकते हैं। उभरते भू- राजनैतिक परिदृश्यों का हवाला देते हुए विदेश मंत्री ने बताया कि किस तरह भारत और चीन जैसे देशों के उभरने से वैश्विक शक्तियों के पुन: संतुलन में पश्चिमी प्रभुत्व का जमाना खत्म होता जा रहा है।
भारत की विदेश नीति के बारे में विदेश मंत्री ने कहा कि देश उचित एवं समानता वाली दुनिया के लिए प्रयास करेगा क्योंकि अंतरराष्ट्रीय नियमों और मानकों की वकालत नहीं करने से 'जंगल राज' हो सकता है।उन्होंने कहा कि अगर हम कानून एवं मानकों पर आधारित विश्व की वकालत नहीं करेंगे तो ‘‘निश्चित रूप से जंगल का कानून होगा।’’ विदेश मंत्री ने कहा कि भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी के संदेशों को अब भी पूरी दुनिया में मान्यता मिलती है। जयशंकर ने कहा कि पहले भले ही सैन्य एवं आर्थिक ताकत वैश्विक शक्ति का प्रतीक होते थे लेकिन अब प्रौद्योगिकी और संपर्क शक्ति और प्रभाव के नए मानक बनते जा रहे हैं।उन्होंने कहा, 'प्रौद्योगिकी कभी भी राजनीतिक रूप से तटस्थ नहीं रहा।' उन्होंने कहा कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत को नयी हकीकत से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।
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