ऐम्सटर्डैम : चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर विवाद के बाद भारत के कड़े रुख से पड़ोसी मुल्क भी हैरान है। यूरोप के एक थिंक टैंक के मुताबिक, चीन से मुकाबले के लिए अमेरिका ने भारत को मदद की पेशकश भी किया, लेकिन नई दिल्ली ने इसे ठुकराते हुए जता दिया है कि वह अकेले ही पड़ोसी देश के खिलाफ मोर्चा लेने में यकीन रखता है। भारत जिस मजबूती से चीन के सामने खड़ा है, उससे वह सकते में है।
चीन के साथ हालिया विवाद के बीच भारत के कड़े रुख को लेकर यह बात यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (EFSAS) ने कही है। यह बात ऐसे समय में सामने आई है, जबकि जून में भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच कई दौर की वार्ताओं के बावजूद आपसी संबंधों में सामान्य स्थिति अब तक बहाल नहीं हो सकी है। EFSAS के मुताबिक, भारत एक बार फिर उसी दृढ़ता के साथ चीन के समक्ष खड़ा है, जैसा कि उसने 2017 के डोकलाम विवाद के दौरान किया था।
भारतीय रक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए EFSAS ने कहा है कि हालांकि दोनों पक्षों के बीच इसके लिए सैन्य व कूटनीतिक स्तर की बातचीत जारी है कि किसी सर्वमान्य नजीते पर पहुंचा जा सके, लेकिन फिलहाल यथास्थिति बनी नजर आ रही है। भारत ने सीमावर्ती इलाके में बड़ी ताकत जुटा ली है और उसके कड़े रुख को देखते हुए लगता है कि सर्दी में मुश्किल मौसम के बावजूद इस ऊंचाई वाले क्षेत्र में भी तनाव कम नहीं होने जा रहा। भारत हर साल की तरह इस बार भी सियाचीन ग्लेशियर में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अभ्यास की तैयारियों में जुटा है।
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, यूरोपीय थिंक टैंक का कहना है कि चीन भले ही विवाद के समाधान के लिए बार-बार द्विपक्षीय संबंधों का हवाला दे रहा है, लेकिन भारत अच्छी तरह से समझ रहा है कि चीन जिस तरह समय-समय पर सीमावर्ती क्षेत्रों में आक्रामक रुख अपनाता है, उसका मुकाबला दृढ़ निश्चय और मजबूत इरादों से ही किया जा सकता है। इसलिए भारत चीन की ओर से पेश आने वाली ऐसी अप्रत्याशित आक्रामक गतिविधियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है और यही वजह है कि उसने इस क्रम में अमेरिकी मदद की पेशकश भी खारिज कर दी है।