नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन बिल 2019 को जब लोकसभा में सोमवार को सदन के पटल पर रखा गया तो विरोध शुरू हो गया। इस विषय पर मतविभाजन हुआ और 293-82 के अंतर से बिल को पेश किए जाने पर सहमति जताई। इस बिल पर लोकसभा में करीब सात घंटे तक गरमागरम बहस हुई और 311-80 के समर्थन से बिल को लोकसभा ने पारित भी कर दिया। दरअसल जानकारों का कहना भी था कि लोकसभा में बीजेपी के पास संख्याबल की कमी नहीं है लिहाजा वहां से बिल पारित कराने में दिक्कत नहीं आएगी। बीजेपी या यूं कहें की एनडीए की असली परीक्षा राज्यसभा में है जहां वो अल्पमत में है।
राज्यसभा की मौजूदा तस्वीर ये है कि कुल 240 सांसद है। नागरिकता संशोधन बिल को पारित कराने के लिए एनडीए को कुल 120 सांसदों का समर्थन चाहिए। लेकिन शिवसेना के अलग होने के बाद एनडीए के पास कुल 109 सांसद हैं जो आवश्यक आंकड़े से 11 कम है। लेकिन लोकसभा में शिवसेना, बीजेडी और वाईएसआरसीपी के रुख से लगता है कि मोदी सरकार को इस बिल को पास कराने में दिक्कत नहीं आएगी।
इन तीनों दलों के संयुक्त सांसदों की संख्या 18 है और इसे एनडीए के 109 में जोड़ने के बाद कुल संख्या 127 हो जाती है, अगर यही तस्वीर राज्यसभा में बनती है तो नागरिकता संशोधन बिल राज्यसभा से भी पारित हो जाएगा। लोकसभा में शिवसेना ने कुछ सुझाव के साथ बिल का समर्थन किया। शिवसेना का कहना था कि जिन शरणार्थियों को नागरिकता देने का फैसला लिया जा रहा है उन्हें कम से कम 25 साल तक वोटिंग राइट नहीं मिलनी चाहिए।
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