नई दिल्ली : लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासियों को उनके गृह राज्य पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई गई हैं, लेकिन इससे उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। रेलवे स्टेशनों पर बड़ी संख्या में ऐसे मजदूर उमड़ रहे हैं, जिन्हें सिर्फ इतना पता है कि अब ट्रेनें चलने लगी हैं। टिकट बुकिंग से लेकर यात्रा कैसे हो सकेगी, इन सबके बारे में किसी को आधी-अधूरी जानकारी है तो उन्हें यहां पुलिस व प्रशासन का सहयोग भी नहीं मिल रहा। रेलवे स्टेशन पहुंचे कई प्रवासियों ने अपनी पीड़ा बयां की है कि कैसे पुलिस उनके साथ सख्ती से पेश आ रही है।
'मेरी गलती सिर्फ इतनी है कि मैं गरीब हूं'
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचे ऐसे ही एक शख्स का गला उस वक्त रुंध आया, जब उसने कहा, 'मेरी गलती सिर्फ इतनी है कि मैं गरीब हूं। मैं नहीं जानता कि मैं बिहार में अपने घर कब और कैसे पहुंच पाऊंगा। प्रशासन हमारी मदद करने की बात करता है, पर सच्चाई यही है कि हम सड़क पर हैं और लोगों से मदद की भीख मांग रहे हैं।' रेलवे स्टेशन पर ऐसे ही कई अन्य लोग पहुंच रहे हैं, जो दिल्ली में काम-धंधा बंद हो जाने के बाद अपने गांव-घरों की ओर रुख कर रहे हैं। उनकी जेबें खाली हैं और कोई जमा-पूंजी नहीं रह गई है।
पैदल रेलवे स्टेशन पहुंच रहे हैं लोग
इनमें से बहुत से लोग हैं, जो घंटों कई किलोमीटर की दूरी तय कर रेलवे स्टेशन पर पहुंच रहे हैं, लेकिन यहां आने के बाद उन्हें पता चलता है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में सिर्फ उन्हें जाने दिया जा सकता है, जिनके पास वैध टिकट है। टिकटों की बुकिंग भी इनके लिए बड़ी समस्या है, जिसके लिए सिर्फ ऑनलाइन बुकिंग ही हो सकती है। वे रेलवे स्टेशन पहुंचने वाले हर शख्स से गुहार लगा रहे हैं, 'ट्रेन में हमें भी एक सीट दिला दो', पर कोई शायद ही उनकी मदद कर पाने की स्थिति में है। ऊपर से प्रशासन का रवैया उन्हें और हताश व परेशान कर रहा है।
महिलाएं, बच्चे भी परेशान
घर जाने की बेचैनी और छटपटाहट के बीच इस हताशा, निराशा को झेलने वालों में महिलाएं, बच्चे भी शामिल हैं, जिन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वे आखिर क्या करें। ऐसी ही एक महिला अपनी तीन साल की बच्ची और मानसिक तौर पर विकलांग पति के साथ गुड़गांव से पैदल ही नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंची, लेकिन जब उसने पुलिस से पूछा कि टिकट कैसे मिलेगा तो उसे सहयोग के बजाय दुत्कार मिली। कुंदन देवी नाम की इस महिला का आरोप है कि पुलिसकर्मी ने बुरी तरह डांटा और उसके पति को धक्का भी दे दिया।
अपने हालात पर सुबकते हुए वह सिर्फ इतना कह पाती हैं कि यहां गरीबों के लिए कोई जगह नहीं है। इस तरह तिल-तिल कर जीने से तो मर जाना अच्छा है। रेलवे स्टेशनों पर ऐसे बहुत से प्रवासी हैं, जो बस एक ही सवाल कर रहे हैं, 'हम क्या करें?'
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