इस देश की मूल सोच है - सत्यमेव जयते। मुंडक उपनिषद से लिया गया ये मंत्र अशोक स्तंभ पर लिखा गया। और आजादी के बाद भारत के संविधान ने ना सिर्फ इस मंत्र को अपनाया, बल्कि अशोक स्तंभ पर बने सिंह को राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर स्वीकार किया।
लेकिन आज सवाल पब्लिक का उठा है...इस राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर सत्य-असत्य की राजनीति पर। LION CAPITAL OF INDIA को निर्माणाधीन संसद भवन के ऊपर स्थापित किया गया है। कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन किया। लेकिन विपक्ष ने ये कहकर हंगामा खड़ा कर दिया है कि संसद भवन पर लगा सिंह और अशोक स्तंभ वाला सिंह अलग-अलग है।विपक्ष के मुताबिक मोदी युग में गुस्से वाले सिंह को राष्ट्रीय प्रतीक बना दिया गया। जबकि अशोक स्तंभ वाला सिंह ऐसा नहीं है।
विपक्ष आरोप लगा रहा है कि ये राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि नए सिंह की आक्रामकता ही मोदी सरकार का सच है।
ऐसे में सवाल पब्लिक का है कि राष्ट्रीय प्रतीक के स्वरूप पर विवाद क्यों हो रहा है?क्या ये हंगामा सिर्फ और सिर्फ इसलिए है क्योंकि नई संसद को लेकर विपक्ष पहले ही सवाल उठा चुका है, और अब उसे नया बहाना मिला है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब संसद भवन की नई इमारत पर राष्ट्रीय प्रतीक सिंह का उद्घाटन किया, तो सवालों की बौछार हो गई-
पहला सवाल - इस कार्यक्रम में विपक्ष क्यों नहीं बुलाया गया?
दूसरा सवाल - संसद का कार्यक्रम था तो प्रधानमंत्री ने उद्घाटन क्यों किया?
तीसरा सवाल - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां पूजा क्यों की?
लेकिन इन सवालों पर आरोप-प्रत्यारोप खत्म हुआ ही नहीं था कि विपक्ष ने एक और तीर छोड़ दिया।कांग्रेस के कम्यूनिकेशन विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने ट्वीट किया -"सारनाथ के अशोक स्तंभ पर सिंह का चरित्र और प्रकृति बदलना कुछ और नहीं बल्कि भारत के राष्ट्रीय प्रतीक का सीधा अपमान है।"
हाल ही में देवी काली पर बयान से सुर्खियों में आयी TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट करके कहा -"सच जरूर बताया जाना चाहिए, सत्यमेव जयते को सिंहमेव जयते में बदल दिया गया है।"
इसके बाद महुआ ने एक और ट्वीट किया और कहा -" सॉरी मेरा मतलब था सत्यमेव जयते से संघीमेव जयते में बदलाव पूरा हुआ। शेरों को शामिल ना करें। "
सिर्फ कांग्रेस या TMC ही नहीं, मोदी के हर प्रोजेक्ट का हर हाल में विरोध करने के लिए जाने-जाने वाले तमाम नेता अपनी-अपनी तलवार निकाल चुके हैं।
अशोक स्तंभ वाले सिंह और नई संसद पर स्थापित सिंह में अंतर होने के विपक्ष के दावे आपने सुने।लेकिन मैं आप दर्शकों के लिए दोनों सिंह की तस्वीरों को आमने- सामने रखती हूं। और आप दर्शकों से कहती हूं कि आप तय करें कि क्या ये विवाद का विषय होना चाहिए?
क्या वाकई सिंह के स्वरूप में बदलाव हुआ है? और अगर ऐसा है तो क्या ये ऐसा बदलाव है जिसे राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान माना जाए? और संसद भवन पर जिस सिंह को लगाया गया उस पर जरूर किसी एक्सपर्ट कमिटी की मुहर लगी होगी, ऐसे में क्या राजनीति गैरवाजिब है?
विपक्ष की राजनीति के बीच हाउसिंग और शहरी विकास विभाग के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने ट्वीट किया। उन्होंने कहा - अनुपात और नजरिये का विवेक। सुंदरता देखने वाले की आंखों में बसती है।यही शांत भाव और गुस्से पर भी लागू होता है।असली सारनाथ प्रतीक 1.6 मीटर ऊंचा है जबकि नई संसद की छत पर लगा प्रतीक 6.5 मीटर ऊंचा है।
अगर नई इमारत की छत पर हूबहू Replica रखी जाती तो नहीं दिखती। 'विशेषज्ञों' को जानना चाहिए कि सारनाथ में रखा असली प्रतीक जमीन के स्तर पर रखा है और नया प्रतीक जमीन से 33 मीटर ऊंचाई पर है। दो स्ट्रक्चर की तुलना करने में एंगल, ऊंचाई और स्केल का ध्यान रखना होगा।
Times Now नवभारत ने संसद भवन पर लगे सिंह को डिजाइन करने वाले मूर्तिकार सुनील देवड़े से बात की। राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर हो रहा ये विवाद संसद की नई इमारत को लेकर हो रहे विवादों की नई कड़ी है।
जिस सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत संसद की बिल्डिंग बन रही है, उस प्रोजेक्ट की लागत पर हंगामा हुआ। इस प्रोजेक्ट को मोदी महल बताकर सवाल उठाने की कोशिश हुई। पर्यावरण के नाम पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर निर्माण रोकने की कोशिश हुई। कोरोना लॉकडाउन में काम जारी रखने को लेकर विपक्ष ने हंगामा किया। और तो और PM मोदी जब सितंबर 2021 में निर्माण के कामों का जायजा लेने पहुंचे तो विपक्ष को एतराज हुआ।
सवाल पब्लिक का-
1. क्या राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर मोदी के खिलाफ असत्य की राजनीति हो रही है?
2. संसद पर लगे प्रतीक को आक्रामक बताना न्यू इंडिया वाली सोच का विरोध है?
3. क्या राष्ट्रीय प्रतीक बस बहाना है, मोदी का सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट निशाना है?
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