आखिर कोटा का जे के लोन अस्पताल बार बार चर्चा में क्यों आ जाता है

कोटा का जे के लोन अस्पताल एक बार फिर चर्चा में इसलिए है क्योंकि पिछले 100 बच्चों की मौत के बाद अस्पताल तो संवारने के वादे और दावे किए गए थे। लेकिन 24 घंटे में 9 बच्चों की मौत के बाद गहलोत सरकार निशाने पर है।

आखिर कोटा का जे के लोन अस्पताल बार बार चर्चा में क्यों आ जाता है
कोटा के जे के लोन अस्पताल में 24 घंटे में हुई थी 9 नवजातों की मौत 
मुख्य बातें
  • कोटा के जे के लोन अस्पताल में 24 घंटे में 9 बच्चों की हुई थी मौत
  • जांच के लिए बनाई गई समिति, तीन दिन में रिपोर्ट देने के आदेश
  • अस्पताल के अधीक्षक ने बच्चों की मौत के पीछे की वजह बताकर पल्ला झाड़ा

जयपुर। कोटा का जे के लोन अस्पताल एक बार फिर चर्चा में है। पिछले साल जब इस अस्पताल में करीब 100 बच्चों की मौत हुई थी तो गहलोत सरकार ने बेहतरीन इंतजाम के दावे किए थे। लेकिन जिस तरह से  पिछले 24 घंटों में कोटा के जेके लोन अस्पताल में 9 नवजात शिशुओं की मौत हो गई उसके बाद दावों की पोल खुलती नजर आ रही है। हंगामे के बाद कोटा के जिला कलेक्टर एक जांच समिति बना दी है जो अपनी रिपोर्ट तीन दिन में पेश करेगी। उससे पहले जेके लोन अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक एस सी दुलारा कहते हैं, "9 नवजात शिशुओं में से 3 को मृत लाया गया, 3 को जन्मजात बीमारियाँ और 2 मामले थे।"

नवजातों की मौत पर अब रिपोर्ट
राजस्‍थान सरकार ने कोटा के जे.के लोन चिकित्सालय में कई शिशुओं की मौत मामले की जांच के लिए समिति गठित की है जो तीन दिन में अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश करेगी।एक सरकारी बयान के अनुसार चिकित्सा मंत्री डा. रघु शर्मा ने जांच समिति का गठन किया है, जो अपनी रिपोर्ट तीन कार्य दिवस में राज्य सरकार को पेश करेगी।

सरकार गंभीर, हाल बेहाल
चिकित्सा मंत्री ने मामले को गंभीरता से लेते हुए चार सदस्यीय दल का गठन कर जांच करने के आदेश दिए हैं। इसमें चिकित्सा शिक्षा आयुक्त शिवांगी स्वर्णकार, आरसीएच के निदेशक डा. लक्ष्मण सिंह ओला, शिशु रोग विभाग के वरिष्ठ आचार्य डॉ अमरजीत मेहता, एसएमएस मेडिकल कॉलेज के आचार्य डा. रामबाबू शर्मा को शामिल किया गया है।डा. शर्मा ने बताया कि यह टीम तुरन्त कोटा जाकर जेके लोन चिकित्सालय में हुई शिशुओं की मृत्यु के प्रत्येक मामले की जांच करेगी।

मैदान में कूदा विपक्ष
नेता प्रतिपक्ष जी सी कटारिया ने कहा कि यह दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि समस्या का समाधान कभी भी पहले से खोजा नहीं जाता है। पिछली ऐसी घटनाओं की भी जांच नहीं की गई है लेकिन उनका राजनीतिकरण किया गया है। डिफॉल्टरों के खिलाफ केवल सुधार की सख्त कार्रवाई हो सकती है।

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