Rajasthan Heritage Village: जयपुर की तर्ज पर बसा है ये गांव, हवेलियों की खूबसूरती देख आप भी रह जाएंगे दंग

Rajasthan Heritage Village: अपने गर्विले इतिहास के अतीत को समेटे इस गांव की पहचान है, करीब पौने दो सौ साल पहले जयपुर की तर्ज पर हुई इसकी बसावट। यहां की खूबसूरत हवेलियां देखते ही बनती है। हवेलियों में मुरालको व फ्रेसको पद्धति से बेहतर चित्रकारी की गई है।

Rajasthan Heritage Village
इस गांव में है खुबसूरत हवेलियां 
मुख्य बातें
  • गांव की पहचान है करीब पौने दो सौ साल पहले जयपुर की तर्ज पर हुई इसकी बसावट
  • तोपों से दिन में दो बार दी जाती थी सलामी
  • यहां की खूबसूरत हवेलियों में मुरालको व फ्रेसको पद्धति से चित्रकारी की गई है

Rajasthan Heritage Village: राजस्थान के रेगिस्तान में तपते धोरों की पहचान वाले शेखावाटी इलाके में बसा है गांव रतनगर। अपने गर्विले इतिहास के अतीत को समेटे इस गांव की पहचान है, करीब पौने दो सौ साल पहले जयपुर की तर्ज पर हुई थी इसकी बसावट। यहां की खूबसूरत हवेलियां देखते ही बनती है। हवेलियों में मुरालको व फ्रेसको पद्धति से बेहतर चित्रकारी की गई है। गांव की सबसे बड़ी खासियत ये है कि, इसके चारों तरफ सुरक्षा के लिए जयपुर के जैसे ही चारों ओर परकोटा बनाया गया।

जिसे यहां की आमबोली में सफील या शहर पनाह की दीवार कहा जाता है। कस्बे के लोगों ने बताया कि, पांच फीट चौड़ी दीवार की ऊंचाई करीब 15 फीट है। क्षेत्र के इतिहास पर अनुसंधान कर रहे प्रोफेसर डा. खेमचंद्र सोनी ने बताया कि, शेखावाटी अंचल के गांव परसरामपुरा से आकर सेठ नंदराम केडिया ने विसं 1917 में गांव की स्थापना की। उन्होंने बताया कि, केडिया परिवार के जयपुर राजघराने से अच्छे संबंध होने के चलते कस्बे को जयपुर के जैसे वर्गाकार बसाया गया। उन्होंने बताया कि, उस समय गांव बसेने पर हर कौम के 72 परिवार साथ आए थे। 

तोपों से दिन में दो बार दी जाती थी सलामी

गांव की नींव बुजुर्ग महिला गंगाबाई के हाथों से चांदी की करणी से रखवाई। इसके बाद वास्तु के हिसाब से चार ब्लॉक में कस्बे को बसाया गया। गांव की सुरक्षा के लिए चार कोनों पर बुर्जें बनवाई गई। जिसमें दक्षिण - पश्चिम दिशा की बुर्ज सबसे बड़ी व उत्तरी - पूर्वी दिशा में सबसे छोटी बनाई गई। बुर्जों के नाम भी लोक देवाताओं के नाम पर रखे गए। उन्होंने बताया कि, दो बुर्जें तोप रखने के लिए बनवाई गई। जिनसे दिन में दो बार सुबह-शाम तापों से गोले दागकर सलामी दी जाती थी। 

ये है गांव की खास बसावट

पूर्वी-उत्तरी ब्लॉक में 14, पूर्वी - दक्षिणी ब्लॉक में 22, उत्तर पश्चिम में 8 व दक्षिण में 4 बेहतरीन कारीगरी से हवेलियां बनाई गई हैं। परकोटे सहित गांव के चारों ओर चार बड़े मुख्य प्रवेश द्वार बनाए गए। गांव की सीमाएं चूरू व झुंझनूं आदि जिलों से सटी है। खास बात यहां के चौराहे आपस में एक - दूसरे से मिलते हैं व सभी भूखंड 110 गुणा 220 साइज के हैं। सभी स्कावयरों व परकोटे की भीतरी दीवार के पास चारों तरफ खाली छोड़ी गई जमीन पर पीपल व नीम के पेड़ लगाए गए।

अनबन हुई तो सेठों ने बसाया गांव

भट्टी इलाके के इतिहास के जानकार खेमचंद सोनी बताते हैं कि, बिसाऊ मूल के सेठ नंदराम केडिया की बिसाऊ के ठाकुर श्यामसिंह ने अनबन हो गई थी। गांव का नाम बीकानेर रियाया के तत्कालीन राजा सरदारसिंह के पिता रतनसिंह के नाम पर रतनगर रखा गया था। उन्होंने बताया कि, राजा ने आस पड़ोस के गांवों से अधिग्रहित कर कस्बे के लिए 79 हजार बीघा जमीन आंवटित की थी। जिसमें से 6 हजार बीघा जमीन गोचर के लिए कायम की थी जो आज वन विभाग के अधीन है।

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