जयपुर। राजस्थान विधानसभा का सत्र शुरू हो चुका है और अशोक गहलोत सरकार के विश्वासमत पर चर्चा चल रही है। अगर संख्या बल की बात करें तो कांग्रेस सरकार पर खतरा नहीं है। लेकिन गुरुवार से शुक्रवार तक दो ऐसे बयान आए जिससे पता चलता है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के हाथ तो मिले। लेकिन दिल शायद नहीं मिले। अशोक गहलोत ने कहा कि वो बिना 19 विधायकों के समर्थन के भी विश्वासमत हासिल कर लिए होते। लेकिन उनकी खुशी और अधिक बढ़ गई जब सभी लोग एक साथ आ गए। इसके साथ ही सचिन पायलच के बयान पर गौर करने लायक है।
विधानसभा में सचिन पायलट को मिली पीछे वाली सीट
राजस्थान विधानसभा में बहस के दौरान सचिन पायलट को जो सीट अलॉट की गई है वो सबसे पीछे वाली सीट है। जबकि वो डिप्टी सीएम रहते हुए आगे की सीट पर बैठा करते थे। सचिन पायलट ने पीछे वाली सीट के बारे में कहा कि मैं जिस सीट पर बैठा हूं पहले भी बैठा करता था। लेकिन इस दफा मैंने सोचा कि अलग सीट क्यों आवंटित की गई। मैंने देखा कि वो सीमा पर हैं यानि एक तरफ सत्ता और दूसरी तरफ विपक्ष। आखिर किसको सीमा पर भेजा जाता है, सबसे मजबूत योद्धा को।
पायलट के बयान का क्या है अर्थ
मैं हो या मेरा कोई भी दोस्त, हमने 'डॉक्टर' से सलाह ली और हम सभी 125 लोग 'इलाज' के बाद आज सदन में खड़े हैं ... इस सीमा पर बमबारी हो सकती है, लेकिन हम कवच होंगे और इसे सब कुछ बनाए रखेंगे सुरक्षित। सवाल यह है कि आखिर इस तरह के बयान का मतलब क्या है। सवाल यह भी है कि कांग्रेस आलाकमान दोनों महत्वपूर्ण सियासी चेहरों को समझाने में कामयाब रहा। लेकिन क्या विश्वास के बंधन में ये दोनों शख्स बंधे रहेंगे। क्या अशोक गहलोत ने अपने बयान के जरिए यह संदेश दिया कि सचिन पायलट कांग्रेस के लिए अपरिहार्य नहीं हैं।
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