भारत में कुछ जगह ऐसी हैं, जिनके नाम बहुत अजीब और अटपटे हैं। बहुत बार इन नामों के पीछे दिलचस्प कहानी होती हैं, तो कई बार किसी परंपरा के चलते जगह को नाम दे दिया जाता है। ऐसी ही एक जगह कानपुर देहात में भी मौजूद है, जिसका नाम दमादनपुरवा है। यह एक गांव का नाम है। जिसके नाम के पीछे दिलचस्प कहानी है। दमादनपुरवा में कुल 70 घर हैं, जिसमें से 50 घर पड़ोस के गांव सरियापुर के दामादों के हैं। बताया जाता है कि यहां सरियापुर के दामादों ने एक-एक कर अपने घर बनाने शुरू किए, जिसके बाद आसपास मौजूद अन्य लोगों ने दामादों से भरे इस गांव को दमादनपुरवा नाम दे दिया। इतना ही नहीं अब सरकारी कागजों में भी इस नाम को मंजूरी मिल चुकी है।
ये है गांव का इतिहास
दमादनपुरवा गांव के इतिहास के बारे में बात करते हुए यहां के बुजुर्ग बताते हैं कि साल 1970 में सरियापुर गांव की राजरानी की शादी पास के जगम्मनपुर गांव के सांवरे कठेरिया से हुई थी। शादी के बाद सांवरे कठेरिया अपना घर छोड़ ससुराल में रहने लगे। गांव के पास ही उन्हें एक जमीन दे दी गई थी। सांवरे कठेरिया अब दुनिया में नहीं हैं, लेकिन ससुराल में रहने का जो सिलसिला उन्होंने शुरू किया था वह अभी तक जारी है। सांवरे कठेरिया के बाद झबैया अकबरपुर के भरोसे, जुरैया घाटमपुर के विश्वनाथ और अंडवा बरौर के रामप्रसाद सहित दामादों ने सरियापुर की बेटियों से शादी रचाई और उसी गांव पर अपना घर बनाते चले गए।
गांव में इतने लोगों की आबादी
साल 2005 तक आते-आते और जमीन बढ़ते-बढ़ते यहां 40 दामादों ने घर बना लिए। इसके बाद आसपास के लोग इसे दमादनपुरवा कहने लगे। हालांकि सरकारी कागजों में इसे कोई नाम नहीं मिला था। लेकिन इसके दो साल बाद गांव के अंदर एक स्कूल बना, जिसका पता दमादनपुरवा दर्ज किया गया। वहीं दूसरी ओर दामादों के बसने का सिलसिला जारी रहा। जिसके बाद कागजों में भी इस गांव को दमादनपुरवा नाम मिल गया। दमादनपुरवा के सबसे बुजुर्ग दामाद रामप्रसाद हैं, जिनकी उम्र करीब 78 साल है। वह 45 साल पहले पत्नी शशि के साथ यहां बसे थे। दमादनपुरवा की प्रधान प्रीति श्रीवास्तव बताती हैं कि इस गांव में कुल 500 लोग रहते हैं. जिसमें से करीब 270 लोग वोट देने वालों में से हैं।
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