दिवाली के त्योहार ने दस्तक दे दी है। घरों में इसकी तैयारियां जोरों पर है, ऐसे में इस बार ज्यादा से ज्यादा पारंपरिक या पुरानी चीजों को फिर से अपनाने की कोशिश हम सभी को करनी चाहिए। उत्तर प्रदेश में कुम्हार इन दिनों 'दीयों' को बनाने के लिए दिन-रात जुटे हुए हैं जो पिछले कई सालों से चाइनीज लैंप और झालरों के बीच कहीं न कहीं खो गए हैं, लेकिन लोग अब इन्हें फिर से अपना रहे हैं।
लखनऊ के पास स्थित चिनहट में रहने वाले कुम्हार रघु प्रजापति ने कहा - चूंकि लोग मिट्टी से निर्मित दीयों को खरीदने में रूचि दिखा रहे हैं, ऐसे में हम भी नए-नए डिजाइन और आकार के दिए बना रहे हैं। हम कई दीयों को एक साथ रखने वाले स्टैंड भी बना रहे हैं जिन्हें आप दीवाली के बाद भी घर की सजावट के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
चिनहट कभी मिट्टी से निर्मित चीजों का गढ़ हुआ करता था, लेकिन बाद में मांग में कमी के चलते धीरे-धीरे कारखानें और दुकानें बंद होती गईं, हालांकि अब यहां इस उद्योग को नए सिरे से शुरू करने के संकेत मिल रहे हैं। सदर लखनऊ में बिजली के सामान बेचने वाले राकेश अग्रवाल ने भी कहा कि इस साल चीनी लाइटों की मांग में भारी कमी आई है।
उन्होंने कहा - ग्राहक सस्ते चाइनीज एलईडी झालरों की जगह भारतीय एलईडी झालरों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। हमारे पास भारतीय झालरों की काफी विविधता है जिनमें स्टिक ऑन लाईट ट्रेल्स भी शामिल हैं। वॉटरप्रूफ पाइप्ड लाइट्स की भी काफी मांग है चूंकि ये ज्यादा समय तक चलते हैं।
मजे की बात तो यह है कि इस हफ्ते के अंत तक अयोध्या में आयोजित होने वाले आगामी 'दीपोत्सव' कार्यक्रम में लोगों को इलेक्ट्रिक लाइट्स के बजाय दीयों का इस्तेमाल करने को प्रेरित किया गया है। गृहिणी रुक्मिणी सिंहा ने कहा - हमने 'दीपोत्सव' की तस्वीरें देखी हैं और महसूस किया है कि इलेक्ट्रिक लाइट्स के बजाय दिए काफी खूबसूरत दिखते हैं। हमने दीयों को चुना है क्योंकि हमें लगता है कि हमें त्यौहारों को मनाने के पारंपरिक तरीकों से जुड़े रहना चाहिए।