Greater Noida GIMS Research on Diseases: ग्रेटर नोएडा के जिम्स में होगी इन दुर्लभ बीमारियों पर रिसर्च

Greater Noida GIMS Research on Diseases: जिम्स में दुर्लभ बीमारियों पर रिसर्च की जाएगी। इससे गंभीर मरीजों को बेहतर इलाज मिलेगा। इसके लिए संस्थान और सीएसआईआर इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी में एमओयू साइन हुआ है।

Greater Noida GIMS Research on Diseases
जिम्स में होगी दुर्लभ बीमारियों पर रिसर्च  |  तस्वीर साभार: Twitter
मुख्य बातें
  • संस्थान और आईजीआईबी में हुआ एमओयू साइन
  • गंभीर मरीजों का अब शहर में भी बेहतर इलाज
  • इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक संस्थान में आकर डॉक्टरों को प्रशिक्षण देंगे

Greater Noida GIMS Research on Diseases: जिम्स में दुर्लभ बीमारियों पर रिसर्च की जाएगी, जिससे गंभीर मरीजों को बेहतर इलाज मिल सकेगा। इसके लिए संस्थान और सीएसआईआर इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी में एमओयू साइन हुआ है। एमओयू के तहत इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक संस्थान में आकर डॉक्टरों को प्रशिक्षण देंगे। जिम्स के डॉ. विवेक गुप्ता ने कोविड के दौरान भी इंस्टीट्यूट के साथ हमारा एमओयू साइन हुआ था।

अब फिर से दुर्लभ बीमारियों पर रिसर्च के लिए एमओयू साइन हुआ है। थैलेसीमिया, ब्लड डिस्ऑर्डर समेत खून में इंफेक्शन की वजह से होने वाली बीमारियों पर रिसर्च होगी। कुष्ठ रोग और कैंसर के अलग-अलग मरीजों में कॉमन जिंस देखी जाएगी, ताकि इलाज में मदद मिल सके। वहीं, कई बार एक ही बीमारी के अलग-अलग मरीजों पर एक दवा काम नहीं करती है। उसको भी रिसर्च में शामिल किया गया है।  इस दौरान डॉ. सौरभ श्रीवास्तव, डॉ. अनुराग श्रीवास्तव, डॉ. विवेक गुप्ता और अन्य विभाग के एचओडी शामिल हुए।

सुप्रीम कोर्ट समेत अलग-अलग हाईकोर्ट ने जताई थी चिंता
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट और अलग-अलग हाईकोर्ट ने दुर्लभ बीमारियों के लिए एक राष्ट्रीय नीति की कमी के बारे में चिंता जताई थी। दुर्लभ बीमारियों के इलाज की प्रक्रिया को लेकर रिसर्च, उपलब्धता और दवाओं तक पहुंच मुश्किल है। इस पॉलिसी का मकसद देश को इन चुनौतियों से उबरने में मदद करना है। 13 जनवरी, 2020 को इस पॉलिसी का एक ड्राफ्ट पब्लिक सेक्टर में रखा गया था और इसके लिए हितधारकों, सामान्य जनता, संगठनों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से उनके सुझाव और विचार मांगे गए थे। मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि, स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से बनाई गई एक एक्सपर्ट कमेटी की ओर से मिले सुझावों की गहराई से जांच की गई है। 

हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स, डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर्स और काउंसलिंग की मदद से शुरुआती दौर में पॉलिसी का लक्ष्य दुर्लभ बीमारियों का पता लगाना और उनके मरीजों का पता लगाना है, जिससे ऐसी बीमारियों को रोकने और मरीजों के इलाज में मदद मिल सके। जो दुर्लभ बीमारियों (दुर्लभ बीमारी नीति में ग्रुप-1 के तहत लिस्टेड बीमारियां) से पीड़ित हैं, जिन्हें एक बार इलाज की जरूरत होती है, उन्हें राष्ट्रीय आरोग्य निधि के तहत 20 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता मिलेगी। ये योजना लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या को कवर करेगी, जो प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत पात्र हैं। 

दुर्लभ बीमारियां क्या हैं?
जिन बीमारियों से पीड़ित होने वाले लोगों की संख्या का प्रतिशत बहुत कम है, उन्हें दुर्लभ बीमारियां कहते हैं। 80 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियां मुख्य रूप से आनुवंशिक होती हैं, इसलिए बच्चों पर इसका विपरीत असर पड़ता है। दुर्लभ बीमारियों में आनुवंशिक रोग (Genetic Diseases), दुर्लभ कैंसर (Rare Cancer) और अपक्षयी (Degenerative Diseases) जैसे रोग शामिल हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग 60 मिलियन से ज्यादा लोग दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित हैं। 

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