पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के लिए चुनावी बिगुल बज गया है। राज्य में मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है। इस चुनाव की सबसे बड़ी बात है कि पहली बार राज्य में चुनाव लालू प्रसाद यादव की गैर मौजूदगी में लड़ा जा रहा है। ऐसे में राजद की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी तेजस्वी यादव के कंधों पर है। वहीं, एनडीए के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे कद्दावर नेता एवं प्रभावी चेहरा हैं। जाहिर है कि महागठबंधन पर एनडीए बढ़त लेता दिख रहा है। फिर भी दोनों गठबंधनों की अपनी ताकत और कमजोरियां हैं। महागठबंधन और एनडीए दोनों एक दूसरे की कमजोरियों को फायदा उठाने की कोशिश करेंगे।
बिहार की राजनीति जाति के दबाव से ऊपर नहीं उठ पाती है। यहां का चुनाव मोटे तौर पर जातियों के ईद-गिर्द सिमटकर रह जाता है। इसलिए सभी दल जातियों को अपने पक्ष में गोलबंद करने की कोशिश करते हैं। एनडीए की अगर बात करें तो उसके साथ अगड़ी, पिछड़ी और दलित बिरादरी में पकड़ कही जा जा रही है। जबकि महागठबंधन यादव, मुस्लिम समीकरण के साथ अगड़ी और दलित समुदाय को आकर्षित करने में जुटा है। उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा यदि महागठबंधन के साथ बनी रहती है तो दलित समुदाय तक उसकी पहुंच बनी रहेगी। एनडीए के पास पासवान और जीतन राम माझी के रूप में बड़े दलित चेहरा हैं। आइए एक नजर डालते हैं एनडीए एवं महागठबंधन की ताकत एवं कमजोरियों के बारे में-
एनडीए की मजबूती
कमजोरी
महागठबंधन की मजबूती
कमजोरी
बिहार में विधानसभा की 243 सीटों के लिए तीन चरणों 28 अक्टूबर, 3 और सात नवंबर को चुनाव होंगे। कोरोना संकट को देखते हुए चुनाव आयोग ने इस बार विशेष सुरक्षा उपाय किए हैं। इस बार मतदान केंद्रों पर 1000 से ज्यादा वोटरों के आने की अनुमति नहीं होगी। मतदान का समय सुबह सात बजे से शाम छह बजे तक रखा गया है। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को वर्चुअल रैलियां करने की इजाजत दी है।
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