नई दिल्ली: बेहाल बिहार के नौजवानों के मन-मस्तिष्क में इस बार अपनी आजीविका को लेकर मंथन चल रहा है। इसी का नतीजा है कि इस बार राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में भी नौकरी को लेकर बड़े-बड़े वादे किए गए हैं। बिहार दूसरा ऐसा राज्य है जहां से देश को सबसे अधिक आईएएस अधिकारी मिलते हैं, लेकिन सिक्के के दूसरे पहलू पर बेरोजगारी भी विद्यमान है। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में क्या सच में बिहार का युवा वर्ग अपनी नौकरी के लिए दलों को अपना कीमती वोट देगा? चलिए सबसे पहले बदहाल बिहार की दशा आपके सामने रखते हैं।
महागठबंधन का युवाओं से ये है वादा
महागठबंधन की ओर से सीएम पद के उम्मीदवार लालू के लाल तेजस्वी यादव ने बिहार चुनाव में सबसे पहले सरकारी नौकरी की बात करके बाकी दलों के होश उड़ाने के साथ ही युवाओं का भी ध्यान खींचा। तेजस्वी ने राज्य में दस लाख नौकरियों का वादा किया। तेजस्वी इस बार नया बिहार युवा बिहार का नारा भी दे रहे हैं।
NDA ने भी दिया सरकारी नौकरी का लालच
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब बीजेपी का घोषणापत्र जारी किया तो उसमें में युवाओं की नौकरी पर विशेष ध्यान दिया गया। बिहार को आईटी हब बनाने की बता कही गई, जिससे साफ है कि राज्य में नौकरियां बढेंगी। इसका मतलब ये है कि पार्टी चाहे जो हों सभी का ध्यान इस बार युवाओं की नौकरी पर है।
बेरोजगारी की सच्ची दशा आपके रोंगटे खड़ी कर देगी
नेताओं के घोषणापत्र और नारों से साफ हो गया कि इस बार बिहार के चुनाव में नौकरी अहम मुद्दा है। इसका मतलब ये है कि बिहार के युवाओं का पूरा ध्यान इस बार अपनी नौकरी को लेकर है। अब जान लेते हैं कि आखिर बिहार में बेरोजगारी की क्या दशा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में हर चार में से तीन युवा को लगता है कि उसे नौकरी नहीं मिलेगी। युवाओं ने अपने मन में गहरी धारणा बना ली है।
15 से 29 साल के व्यक्तियों के बीच बेरोजगारी का ये है आलम
LFPR यानी लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन बिहार के इस उम्र के युवाओं के बीच में बहुत कम है। इसका मतलब है कि इस उम्र के बीच के लोग न चाहते हुए भी खुद को जॉब के क्षेत्र से पूरी तरह से अलग कर लिया है। बिहार में बेरोजगारी की दर अधिक तो रोजगारी की बहुत कम है। राज्य में केवल 27.6 फीसदी युवा ही नौकरी के लिए सक्रीय हैं। बिहार की दशा बाकी राज्यों से बहुत ख़राब है।
मात्र 4.3 फीसदी महिलाएं नौकरी करती हैं
इस युग में जहां लड़कियां अब राफेल जैसे लड़ाकू विमान उड़ाने की तैयारी में हैं, वहीं आज भी बिहार की महिलाएं घर और घूंघट की आड़ में हैं। पंद्रह साल से ऊपर की केवल 4.3 फीसदी महिलाएं ही नौकरी कर रही हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं। राज्य में महिलाओं की सुरक्षा सबसे अहम कारण हो सकती है। चौंकाने वाली बात ये भी है कि बिहार की ही महिलाएं दूसरे राज्यों में नौकरी करके वहां की अर्थव्यस्था को ऊँचाई दे रही हैं।
केवल 10 प्रतिशत लोग ही सैलरी पर काम करते हैं
महीने की तनख्वा कितनी अहमियत रखती है ये सब जानते हैं। बात सरकारी और निजी कम्पनियों की नहीं होती बात हर महीने मिलने वाली सैलरी की होती है। हर महीने जो तनख्वा मिलती है, उससे इंसान अपने दैनिक जीवन को सुखमय बना सकता है। इससे राज्य में विकास भी होता है। जिस राज्य में केवल दस फीसदी लोग सैलरी पर काम करें उससे वहां की अर्थव्यवस्था की पूरी तस्वीर मालूम की जा सकती है। आलम तो ये है कि बिहार में शिक्षित वर्ग भी बेरोजगारी की मार से तबाह है। ग्रेजुएट होने के बाद भी नौकरी न मिलने से लोग निराश हैं।
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