पटना। भारतीय राजनीति में नेताओं और अपराधियों के बीच गठजोड़ नई बात नहीं है। ऐसा भी नहीं कि अपराधियों का सिर्फ किसी एक दल से नाता रहा हो। पहले अपराधियों की मदद से राजनीतिक दल और नेता अपनी जीत सुनिश्चित करते थे। लेकिन 90 के दशक के बाद अपराधी या बाहुबली खुद खद्दरधारी हो गए। उनमें से एक नाम राजन तिवारी का है,1995 से 1998 के बीच राजन तिवारी के नाम से पूर्वांचल और बिहार का पश्चिमांचल थर थर कांपता था। राजन तिवारी कुख्यात बदमाश श्री प्रकाश शुक्ला का दाहिना हाथ।
राजन के किस्मत की लकीर लंबी थी
श्रीप्रकाश शुक्ला ने जब यूपी के सीएम कल्याण सिंह को मारने की सुपारी ली उसके करीब तीन महीने बाद वो अपने गुर्गों के साथ मारा गया। लेकिन राजन तिवारी की किस्मत जिंदगी की लकीर लंबी थी। वो सिर्फ न जिंदा बचा रहा बल्कि बिहार की राजनीति में भद्र बन गया। यह बात अलग थी कि उसके माथे पर दर्जनों मुकदमे दर्ज थे जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बिहार सरकार में मंत्री बृजबिहारी प्रसाद का मर्डर था। राजन तिवारी के बारे में कहा जाता है कि उसके हाथ में एक के 47 हथियार तो होता था लेकिन वो दिमाग से काम करता था। जिस तरह से श्रीप्रकाश शुक्ला बिना सोचे विचारे फैसला करता था उससे इतर जाकर राजन तिवारी सोचता थ।
सोहगौरा टू गोरखपुर टू बिहार का सफर
गोरखपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दक्षिण में कौड़ीराम बाजार है, कौड़ीराम से करीब 4 किमी उत्तर सौहगौरा राजन तिवारी का गांव है। सोहगौरा गांव का जिक्र मौर्य कालीन इतिहास में मिलता है। लोग बताते हैं कि राजन तिवारी पढ़ने में होशियार था यह बात दीगर है कि उसे हाथ में कलम से अधिक बंदूक पसंद थी। 1995 के बाद गोरखपुर में अपराध जगत में एक नया नाम श्रीप्रकाश शुक्ला एंट्री ले रहा था। श्रीप्रकाश शुक्ला भी गोरखपुर का ही रहने वाला था। श्रीप्रकाश के खौफ के कारोबार में राजन तिवारी शामिल हुआ और वो खासमखास भी बन गया। समय के साथ श्रीप्रकाश गैंग अपराध की बुंलंदियों तक पहुंच गया तो खतरे भी बढ़ गए। उस खतरे को राजन तिवारी समझा और उसे लगा कि खद्दर वाली चादर ना सिर्फ उसके गुनाहों को ढंक देगी बल्कि वो पुलिस की गोली से भी महफूज हो जाएगा।
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