हिंदू धर्म में प्रदोष और एकादशी व्रत हर महीने आता है। हर महीने ये दोनों ही व्रत दो बार आते हैं। प्रदोष भगवान शिव को और एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित होती है। प्रदोष व्रत हर गृहस्थ को जरूर करना चाहिए , क्योंकि ये ऐसा व्रत है जिससे सभी तरह के सांसारिक सुखों की प्रापति होती है। शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत होने के कारण इसे बुध प्रदोष व्रत भी कहा जाता है। तो आइए आपको प्रदोष व्रत से जुड़ी कथा, महत्व और पूजा विधि के बारे में बताएं।
प्रदोष व्रत भगवान शिव निमित्त तो होता ही है, साथ ही ये चंद्रदेव से भी जुड़ा माना गया है। असल में चंद्रदेव ने ही सर्वप्रथम प्रदोष व्रत भगवान शिव के लिए रखा था। इसलिए इस व्रत को करने से शिवजी के साथ चंद्रदेव का भी आशीर्वाद मनुष्य को प्राप्त होता है। चंद्रदेव मन और भावनाओं पर नियंत्रण करने वाले होते हैं। यदि चंद्र कमजोर या नाराज हो तो मनुष्य मानसिक कष्ट बहुत झेलता है।
प्रदोष व्रत का महत्व (Pradosh Vrat Mahatva)
पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत करने वाले मनुष्य को जीवन के जीवन में आने वाले कष्ट को भगवान शिवजी हर लेते हैं। वैवाहिक जीवन या संतान से जुड़े कष्ट इस व्रत को करने से दूर होते हैं। इसलिए यदि मन में किसी भी तरह की आस हो तो प्रदोष व्रत को 11, 21 या 51 की संख्या में करना चाहिए। बिना किसी कामना के भी ये व्रत करना बहुत से संकटों से मुक्ति दिलाता है। भगवान शिव की कृपा दारिद्रता होने के साथ इस व्रत से कर्ज से मुक्ति भी मिलती है।
प्रदोष व्रत पूजा विधि (Pradosh Vrat Puja Vidhi)
प्रदोष व्रत करने के लिए जल्दी सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करें और भगवान शिव को जल चढ़ाकर भगवान शिव का मंत्र जपें। इसके बाद पूरे दिन निराहार रहते हुए प्रदोषकाल में भगवान शिव को शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि चढ़ाएं। इस दिन भगवान शिव के साथ उनके पूरे परिवार की पूजा जरूर करनी चाहिए और रात के समय चंद्रमा को जल देना चाहिए। चंद्र उदय के बाद फलहार किया जा सकता है। याद रखें शिवजी के साथ यदि देवी पार्वती या उनके पुत्रों की पूजा न की जाए तो व्रत की पूजा अधूरी रहती है।
अलग-अलग कामनाओं के लिए दिन का होता है महत्व (Budh Pradosh Vrat ka mahatva)
प्रदोष व्रत अलग-अलग मनोकामनाओं के साथ किया जाता है। ऐसे में प्रदोष व्रत का दिन इन कामनाओं की पूर्ति के लिए विशेष महत्व रखता है। जैसे, सुख सौभाग्य और धन लाभ के लिए हर माह की त्रयोदशी तिथि पर शुक्रवार के दिन व्रत रखना चाहिए। लंबी आयु के लिए रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत रखना चाहिए। वहीं, संतान प्राप्ति के लिए शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष के दिन उपवास रखना शुभ फलदायक रहता है। कर्ज से मुक्ति के लिए सोमवार प्रदोष व्रत रखना श्रेष्ठ माना गया है।
प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha in hindi)
बुध प्रदोष व्रत पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक व्यक्ति का विवाह हुआ और विवाह के कुछ दिन बाद ही उसकी पत्नी मायके चली गई। जब कुछ दिन बाद वह व्यक्ति अपनी पत्नी को लेने उसके मायके गया तो उसके ससुराल वालों ने यह कहकर उसे रोकने का प्रयास किया कि आज बुधवार का दिन है विदाई के लिए यह दिन शुभ नहीं, लेकिन वह नहीं माना और पत्नी को साथ घर ले कर निकल पड़ा। जैसे ही वो नगर के बाहर तक पहुंचा तो उसकी पत्नी को प्यास लगी तो उसने पत्नी को एक पेड़ के नीचे बिठा दिया और खुद पानी लेने आसपास निकल पड़ा। कुछ देर बाद वो पानी लेकर वापस लौटा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी हंस-हंसकर किसी से बात कर रही थी। वो उसी के साथ लोटे से पानी पी रही थी। यह देख उसे बेहद क्रोध आ गया। जब वह अपनी पत्नी के पास गया तो वह बेहद चकित रह गया। उसने देखा कि उसी की शक्ल का आदमी उसकी पत्नी के पास बैठा है।
अपने पति के दो रूप देख कर उसकी पत्नी हैरान हो गई। दोनों पुरुष झगड़ा करने लगे और देखते ही देखते भीड़ जमा हो गई और राजा के सिपाही भी आ गए। सिपाहियों ने स्त्री से पूछा कि वह बताए कि उसका पति कौन है, लेकिन वह भी ऐसा करने में सक्षम नहीं थी और तब उसने भगवान शिव से प्रार्थना की। तब उसके पति ने कहा कि उनसे बड़ी भूल हुई कि सास-ससुर के मना करने के बाद भी वो अपनी पत्नी को बुधवार को विदा करा लाया। भविष्य में ऐसा कभी नहीं होगा। इतना सुनते ही दूसरा व्यक्ति अंतर्ध्यान हो गया। पति-पत्नी दोनों ही सकुशल अपने घर पहुंच गए और उसके बाद से दंपति विधिपूर्वक बुध त्रयोदशी प्रदोष का व्रत करने लगे।
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