पितृ पक्ष की द्वादशी पर श्राद्ध से राष्ट्र कल्याण और अन्न की मात्रा में वृद्धि होने के बारे में भी शास्त्रों में लिखा है। मान्यता है कि द्वादशी के श्राद्ध से संतति, बुद्धि, शक्ति, पुष्टि, दीर्घायु व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इस दिन मां मंगलागौरी मंदिर के समीप भीम गया, गो प्रचार व गदालोल तीथि पर श्राद्ध करने का विधान होता है। साथ ही फल्गु नदी में स्नान व तर्पण करने से पहले मां मंगलागौरी की सीढ़ियां के बगल में स्थित भीम गया वेदी पर पिंडदान करना चाहिए। यदि गया में श्राद्ध संभव नहीं तो इसे किसी भी नदी के किनारे किया जा सकता है और इसके बाद देवी मंगलागौरी का दर्शन करना चाहिए।
द्वादशी पर श्राद्ध सन्यासियों और वैरागियों के लिए निर्धारित है, जो गृहस्थ जीवन त्याग देते हैं और वापस कभी अपने घर नहीं लौटते। साथ ही इस दिन ऐसे पितरों का भी श्राद्ध करना चाहिए जो घर से निकल गए और कभी लौट कर नहीं आए और उनकी मृत्यु हो गई हो। गुमनाम साधु-सन्यासी और घर से चले गए जीवित पितृजन, जिनका कोई अता-पता न हो उनका भी इस दिन ही श्राद्ध करने का विधान है। इसलिए इस श्राद्ध को नदका श्राद्ध कहते हैं।
राहु काल में न करें तर्पण
द्वादशी पर पूर्वाहन 10.30 बजे से 12.00 बजे तक राहुकाल रहेगा और इस समय भूल कर भी तर्पण न करें। राहुकाल में तर्पण वर्जित है। पूर्वाहन 12 के बाद ही तर्पण और पिण्डदान करें।
ऐसे करें तर्पण
सारे नियम श्राद्ध के एक ही जैसे होंगे। जैसे कुल, गोत्र और श्राद्धकर्ता के नाम और राशि के उच्चारण करने के बाद पिता, दादा,परदादा और उसके भी आगे की ज्ञात पीढ़ी के दिवंगतों के नाम तर्पण किया जा सकता है। उसके उपरान्त नाना/मामा यदि जीवित नहीं हो तो उनके नाम का तर्पण करें। उसके पश्चात चाचा, ताउ आदि स्वर्गवासी हो तो उनके नाम से तर्पण किया जा सकता है। तर्पण के दौरान गले की जनेउ दाहिने कंधे में हो और तर्पण सामग्री में कुशा, चन्दन, अक्षत, जौ, तिल, दूब, तुलसी के पत्ते और सफेद फूल अवश्य होने चाहिए।
12 ब्राह्मण को कराएं भोज
द्वादशी श्राद्ध में कम से कम 12 ब्राह्मण भोजन अवश्य कराएं। अगर ब्राह्मण चार या पांच ही हो तो दूसरे ब्राहमणों के रूप मे दामाद, नाती अथवा भानजे को भी सम्मिलित किया जा सकता है । भोजन के उपरान्त सभी को यथाशक्ति वस्त्र, दान-दक्षिणा देकर विदा करें। श्राद्ध सम्पन्न होने पर कौवे,गाय,कुत्ते , चींटी और भिखारी को भोजन कराएं।
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