आश्विन कृष्ण पक्ष की दशमी पर दो वेदी पर श्राद्धकर्म करने का विधान है। गया सिर व गया कूप नामक दो वेदियों पर श्राद्ध करने से पितरों बहुत शांति मिलती है। मान्यता है कि इस वेदी पर पिंडदान और श्राद्ध करने से नरक भोग रहे पितरों तक को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि यहां पिंडदान से पितरों को ही नहीं श्राद्धकर्ता को भी बहुत पुण्यलाभ मिलता है। दशमी पर इस स्थाप पर किया गया पिंडदान अश्वमेघ यज्ञ समान पुण्य की प्राप्ति कराता है।
पिडंदान के बाद संकटा देवी का दर्शन पूजन जरूर करना चाहिए। यदि आप गया जा कर श्राद्ध या पिंडदान नहीं कर पा रहे तो आप किसी भी नदी किनारें गया का ध्यान कर पिंडदान करें और फिर देवी का दर्शन कर लें।
गीता के दसवें अध्याय का पाठ करें
इस दिन दान-पुण्य के साथ पितरों के निमित्त भागवत गीता के दसवें अध्याय का पाठ भी जरूर करें। श्राद्धकर्म के बाद दस ब्राह्मणों को इस दिन भोजन खिलाना चाहिए। यदि आप दस ब्राह्मण को भोजन नहीं खिला पा रहे तो कम से कम एक ब्राह्मण का जरूर भोजन कराएं। साथ ही कौवा, गाय, कुत्ता और चींटियों के लिए भी इस दिन भोजन निकालें और अपने हाथों से उन्हें खिलाएं। साथ ही यथा संभव अन्न और धन का दान जरूरतमंदों को करें।
खीर-पूड़ी और हलवा जरूर बनाएं
श्राद्ध के भोजन में खीर-पूड़ी,हलवा सबसे शुभ माना गया है। साथ ही इस दिन पितरों को वह भोजन भी खिलाना चाहिए जो उन्हें पंसद रहा हो। इससे उनकी आत्मा तृप्त होती है और अपना आशीर्वाद देती है।
इन चीजों को श्राद्ध भोज में न करें शामिल
पितृ पक्ष में श्राद्ध भोजन में चना, मसूर, उड़द, काला जीरा, कचनार, कुलथी, सत्तू, मूली, खीरा, काला उड़द, प्याज, लहसुन, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, खराब अन्न, फल और मेवे जैसी चीजें श्राद्ध भोज में शामिल नहीं करनी चाहिए।
क्षमा याचना करना न भूलें
पुराणों के अनुसार जब भी कोई मनुष्य मरता है तो उसकी आत्मा की यात्रा तीन मार्ग में से किस एक पर चलती है। यह उसके कर्म पर निर्भर करता है कि उसे कौन सा मार्ग मिलेगा। ये तीन मार्ग हैं- अर्चि मार्ग,धूम मार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग। ऐसे में आपके पितृ किसी भी मार्ग पर जाएं आपका कर्म है उनकी शांति के लिए प्रयास करना और यह काम आप उनके श्राद्ध करके कर सकते हैं। प्रत्येक आत्मा को भोजन,पानी और मन की शांति की जरूरत होती है और इसकी पूर्ति सिर्फ उसके परिजन ही कर सकते हैं। इसलिए श्राद्ध अपनी यथा शक्ति करें और उसके बाद उनसे क्षमा याचना भी करें। ताकि कोई भूल-चूक हुई हो तो वह आपसे नाराज न हों।
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