गंगा सप्तमी हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर मनाई जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगीरथ ने कठोर तपस्या किया था जिससे खुश होकर मां गंगा इस दिन स्वर्ग लोक से शिव जी की जटाओं में विराजमान हुईं थीं और धरती पर प्रकट हुई थीं। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष गंगा सप्तमी 18 मई को पड़ रही है। गंगा सप्तमी से आधारित ऐसी कई सारी मान्यताएं हैं जिसमें दान-पुण्य को बेहद लाभदायक बताया गया है।
कहा जाता है कि इस शुभ दिन पर गंगा नदी में स्नान करने से सभी पाप हमेशा के लिए मिट जाते हैं। गंगा सप्तमी पर गंगा स्नान, दान-पुण्य, जप और तप से भक्तों को मोक्ष प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस विशेष दिन पर मां गंगा की पूजा करना बेहद लाभदायक माना जाता है। इसके साथ इस दिन कथा का पाठ करना भी मां गंगा के भक्तों के लिए बेहद फायदेमंद साबित होता है।
यहां जानें, गंगा सप्तमी की विशेष, प्रसिद्ध और पौराणिक कथा।
गंगा सप्तमी की व्रत कथा इन हिंंदी
बहुत समय पहले इस धरती पर भागीरथ नाम के एक बेहद प्रतापी राजा निवास करते थे। अपने पूर्वजों को जीने-मरने के दोष से मुक्त करने हेतु गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए वह कठोर तपस्या करना शुरू कर दिए। भागीरथ की भक्ति और कठोर तपस्या को देखकर मां गंगा बेहद प्रसन्न हुईं और फल स्वरुप वह भागीरथ की बात मान लीं। लेकिन एक समस्या आन पड़ी, उन्होंने राजा भागीरथ से बताया कि अगर वह स्वर्ग से सीधा पृथ्वी पर आएंगी तो पृथ्वी को उनकी गति असहनशील हो जाएगी और रसातल में चली जाएगी।
मां गंगा की यह बात सुनकर भागीरथ अचरज में पड़ गए और इस समस्या का समाधान ढूंढने लगे। मां गंगा इस अभिमान में थी कीं उनकी गति किसी के लिए भी सहनशील नहीं है लेकिन भागीरथ शिव जी की आराधना में लीन हो गए। भागीरथ की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। भागीरथ ने उन्हें अपनी समस्या बताई और इसका समाधान शिव जी ने दिया।
जब मां गंगा अभिमान में स्वर्ग से पृथ्वी पर आ रही थीं तब उनका सामना शिवजी से हुआ जिसके बाद उन्होंने गंगा नदी को अपनी जटाओं में कैद कर लिया था। कैद होकर मां गंगा छटपटाने लगीं और अपने किए की क्षमा मांगने लगीं। मां गंगा की छटपटाहट देखकर भगवान शिव ने उन्हें माफ किया और उन्हें छोड़ दिया। शिव जी की जटाओं से छूटते ही वह सात धाराओं में प्रवाहित हुईं और ऐसे भागीरथ मां गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल हुए।
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