वर्ष 2021 के चैत्र नवरात्रि अब समापन की ओर है। इन 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। इन दिनों में भक्तों में उत्साह और श्रद्धा अलग ही दर्जे का होता है। नवरात्रि के यह 9 दिन सकारात्मकता को दर्शाते हैं। कहा जाता है कि इन 9 दिनों में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है। नवरात्रि का समापन कन्या पूजन या कन्या भोग के साथ होता है। कन्या पूजन की प्रथा कई साल पहले से चली आ रही है। कहा जाता है कि जो भक्त नवरात्रि में कन्या भोजन करवाता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उसे माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जानकारों के मुताबिक, इस प्रथा के पीछे एक पौराणिक कथा है।
इस कथा के माध्यम से जानिए क्यों कन्या पूजन की है प्रथा और क्या होता है इससे लाभ?
कन्या पूजन की कहानी हिंंदी में
बहुत समय पहले जम्मू कश्मीर के कटरा जिले के पास एक हंसाली गांव में श्रीधर नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह एक पंडित था जो मां दुर्गा का बहुत बड़ा भक्त था और अक्सर उनकी पूजा में लीन रहा करता था। श्रीधर की एक भी संतान नहीं थी जिसकी वजह से वह काफी दुखी रहा करता था। एक दिन उसने नवरात्रि का व्रत किया और कन्या पूजन के लिए कन्याओं को आमंत्रित किया। इन्हीं कन्याओं में एक प्यारी कन्या का रूप धारण करके मां वैष्णो उसके घर पधारीं।
मां वैष्णो ने दिया था श्रीधर को भंडारा करवाने का आदेश
श्रीधर ने सच्चे दिल से सभी कन्याओं का आदर-सम्मान किया और भोजन करवाया। भोजन ग्रहण करने के बाद सभी कन्या वहां से चली गईं लेकिन माता वैष्णो वहीं श्रीधर के पास रुक गईं। उस छोटी कन्या ने श्रीधर को भंडारा रखावने का और पूरे गांव को आमंत्रित करने का आदेश दिया। कन्या की बात मानकर पंडित श्रीधर ने ठीक वैसा ही किया। श्रीधर द्वारा आयोजित किए गए भंडारे में भैरवनाथ भी आया था। कहा जाता है कि यहीं से भैरवनाथ के अंत का आरंभ हुआ था। यह भंडारा रखवा कर श्रीधर को संतान प्राप्ति हुई। तब से लेकर अब तक नवरात्रि में कन्या पूजन किया जाता है।
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