ऐसा कहा जाता है कि शनिदेव की न दोस्ती भली होती है न बैर। शनि यदि सीधी निगाह से देख लें तो कोई भी चीज भस्म हो सकती हैं। यही कारण है कि शनिदेव की बहुत प्रसन्नता और नाराजगी दोनों ही खतरनाक मानी गई है। शनि की सम दृष्टी बेहतर मानी गई है। हालांकि, यदि शनि रुष्ट हैं अथवा कुंडली में बुरे स्थान पर बैठे हैं तो मनुष्य को शनिदेव की पूजा के साथ बजरंगबली की पूजा करने की सलाह दी जाती है। माना जाता है कि बजरंगबली की पूजा से शनिदेव भी शांत और प्रसन्न होते हैं। इसके पीछे एक कथा है और चलिए आज आपको इस कथा के बारे में बताएं।
कर्मों के मुताबिक फल देते हैं शनि देव
शनि देव व्यक्ति के अच्छे और बुरे कर्मों के आधार पर ही फल देते हैं। माना जाता है कि शनि उन लोगों को दंड अवश्य देते हैं, जो कमजोर लोगों को सताते हैं और उनका शोषण करते हैं। शनि ऐसे लोगों को कभी माफ नहीं करते हैं और शनि की महादशा, शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैय्या भी इसलिए मनुष्य पर आती है। शनि की ढैय्या, साढ़ेसाती और महादशा जब आरंभ होती है तो शनि अशुभ फल देना आरंभ कर देते हैं। शनि की जब अशुभ फल देते हैं तो मनुष्य नरक समान जीवन जीता है। शनि के दंड से धन हानि, रोग, संबंध विच्छेद, विवाद, अपयश, मानिसक तनाव और भटकाव पैदा होता है। मनुष्य इस दौरान कभी सही निर्णय नहीं लेता है और अपना बुरा करता जाता है।
जानें, क्यों की जाती है शनिदेव की शांति के लिए हनुमान जी की पूजा
शनि देव ने हनुमान जी को वचन दिया है कि वे हनुमान भक्तों को कभी परेशान नहीं करेंगे, लेकिन ऐसा उन्होंने खुशी से नहीं बल्कि बजरंगबली के डर से कहा था। इसके पीछे एक पौराणिक कथा बताई जाती है। कथा के अनुसार एक दिन हनुमान जी रामभक्ति में डूबे हुए थे, तभी वहां से शनि देव आए और हनुमान जी की भक्ति में विघ्न डालने लगे। शनिदेव को अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। शनिदेव हनुमान जी को ललकारने लगे।
शनि देव काफी देर तक हनुमान जी का ध्यान भंग करने की कोशिश करते रहे है, लेकिन सफल ही नहीं हुए। शनि फिर भी हनुमान जी की तपस्या में विघ्न डालते रहे। बहुत देर बाद जब हनुमान जी ने अपनी आंख खोली तो बहुत ही विनम्रता से पूछा महाराज! आप कौन हैं? हनुमान जी की इस को बात सुनकर शनि देव को और गुस्सा आ गया। वे बोले अरे मूर्ख बन्दर, मैं तीनों लोकों को भयभीत करने वाला शनि हूं। आज मैं तेरी राशि में प्रवेश करने जा रहा हूं, रोक सकता है तो रोक ले। हनुमान जी ने तब भी विनम्रता को नहीं त्यागा और कहा कि शनिदेव क्रोध न करें कहीं ओर जाएं। हनुमान जी ने जैसे ही ध्यान लगाने के लिए आंखों को बंद किया वैसे ही शनि देव ने आगे बढ़कर हनुमान जी की बांह पकड़ ली और अपनी ओर खींचने लगे। हनुमान जी को लगा, जैसे उनकी बांह किसी ने दहकते अंगारों पर रख दी हो। उन्होंने एक झटके से अपनी बांह शनि देव की पकड़ से छुड़ा ली। इसके बाद शनि ने विकराल रूप धारण उनकी दूसरी बांह पकड़नी चाही तो हनुमान जी को क्रोध आ गया और अपनी पूंछ में शनि देव को लपेट लिया।
इसके बाद भी शनि देव नहीं माने और उन्होंने ने हनुमान जी से कहा तुम तो क्या तुम्हारे श्रीराम भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं। इतना सुनने के बाद तो हनुमान जी का क्रोध चरम पर आ गया और उन्होंने पूंछ लपेट कर शनि देव को पहाड़ों पर वृक्षों पर खूब पटका और रगड़ा। इससे शनि देव का हाल बेहाल हो गया। शनि देव ने मदद के लिए कई देवी देवताओं को पुकारा, लेकिन कोई भी मदद के लिए नहीं आया। अंत में शनि देव ने हनुमान जी से क्षमा मांगी और कहा कि भविष्य में वे आपकी छाया से भी दूर रहेंगे। तब हनुमान ने कहा कि वे मेरी ही छाया से नहीं, बल्कि उनके भक्तों की छाया से भी दूर रहेंगे। उस दिन से शनि देव हनुमान भक्तों को परेशान नहीं करते हैं। इसलिए शनि को शांत करने के लिए हनुमान जी की पूजा करने की सलाह दी जाती है।
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