नवमी के दिन मां का श्राद्ध करने से जातक के सभी कष्ट दूर होते हैं और इस दिन श्राद्ध का पुण्यलाभ सबसे ज्यादा होता है। नवमी के दिन उन विवाहित महिलाओं के श्राद्ध का भी विधान है जिनकी मृत्यु की तिथि मालूम न हो। नवमी को मातृ नवमी श्राद्ध के नाम से भी पुकारा जाता है। कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को सीताकुंड व राम गया तीर्थ में पिंडदान व तर्पण का महत्व माना गया है। यह वही स्थान हैं, जहां भगवान राम, देवी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्धकर्म किए थे। नवमी तिथि को मां के नाम पर नौ ब्राहमणों को भोजन कराना चाहिए। साथ ही कौवे, चींटी, गाय और कुत्ते को भोजन देने चाहिए।
मान्यता है कि जो पूर्वज जिस तिथि को परलोक सिधारता है उसी तिथि पर उसका श्राद्धकर्म किया जाता है, लेकिन स्त्रियों के लिए ऐसा नहीं है। स्त्री का श्राद्ध नवमी तिथि को करना ज्यादा श्रेयस्कर माना गया है। मातृ नवमी के दिन पुत्रवधुएं अपनी स्वर्गवासी सास व माता के सम्मान और मर्यादा के लिए तर्पण देती हैं और उनके लिए श्राद्धकर्म करती हैं। मान्यता है कि मातृ नवमी श्राद्ध के दिन घर की पुत्रवधुएं को उपवास रखना चाहिए, क्योंकि इस श्राद्ध को सौभाग्यवती श्राद्ध भी कहा जाता है।
इस दिन जरूरतमंद गरीबों को या सतपथ ब्राह्मणों को भोजन करने से सभी मातृ शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मातृ नवमी का खास महत्व इसलिए भी है क्योंकि इस दिन परिवार की उन तमाम महिलाओं की पूजा होती हैं जो परलोक सिधार चुकी हैं। उनके नाम से श्राद्ध भोज कराया जता है। मान्यता है कि मातृ नवमी का श्राद्ध कर्म करने वाले मनुष्य को देवता भी अपना आशीर्वाद देते हैं।
ऐसे करें मातृ नवमी का श्राद्ध
स्नान करके घर की दक्षिण दिशा में एक हरा वस्त्र बिछा दें और मां की तस्वीर लगा दें। यदि तस्वीर न हो प्रतिक रूप में एक सुपारी हरे वस्त्र पर स्थापित कर दें। अब मां के निमित्त तिल के तेल का दीपक जलाएं और धूप करें। इसके बाद जल में मिश्री और तिल मिलाकर तर्पण करें। इस दिन आटे से दीया बना कर बड़ा दीपदान करें। इसके बाद पितरों की फोटो पर गोरोचन और तुलसी पत्र समर्पित करें और वहीं कुश के आसन पर बैठ कर भागवत गीता के नवें अध्याय का पाठ करें। इसके बाद गरीबों या ब्राह्मणों को लौकी की खीर,पालक,मूंगदाल, पूड़ी,हरे फल,लौंग-इलायची तथा मिश्री के साथ भोजन प्रदान करें। भोजन के बाद यथाशक्ति वस्त्र,धन-दक्षिणा देकर उनकी विदाई करें।
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