कबीर दास मध्यकालीन युग के प्रसिद्ध धार्मिक कवि थे जिनकी रचनाएं आज भी पढ़ी जाती हैं। उन्हीं की याद में कबीर जयंती मनाई जाती है। ये ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को आती है। माना जाता है कि संवत 1455 की इस पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था। कबीरपंथी इन्हें एक अलौकिक अवतारी पुरुष मानते हैं और इनके संबंध में बहुत सी कहानियां भी कही जाती हैं जिनमें उनके चमत्कार दिखाने का वर्णन है।
कबीर का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन उनकी शिक्षा एक हिन्दू गुरु द्वारा हुई थी। हालांकि उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि उनकी विधिवत शिक्षा नहीं हुई थी। कबीरदास ने अपना सारा जीवन ज्ञान देशाटन और साधु संगति से प्राप्त किया। अपने इस अनुभव को इन्होने मौखिक रूप से कविता में लोगों को सुनाया।
कबीर ने एक ही ईश्वर को माना। वह धर्म व पूजा के नाम पर आडंबरों के विरोधी थे। उन्होंने ब्रह्म के लिए राम, हरि आदि शब्दों का प्रयोग किया परन्तु वे सब ब्रह्म के ही अन्य नाम हैं। उन्होंने ज्ञान का मार्ग दिखाया जिसमें गुरु का महत्त्व सर्वोपरि है। कबीर स्वच्छंद विचारक थे। कबीर ने जिस भाषा में लिखा, वह लोक प्रचलित तथा सरल थी।
कबीदास के देह त्यागने के बाद उनकी रचनाओं उनके पुत्र तथा शिष्यों ने बीजक के नाम से संग्रहित किया। इसके तीन भाग हैं - सबद, साखी और रमैनी। बाद में इनकी रचनाओं को ‘कबीर ग्रंथावली’ के नाम से संग्रहित किया गया। कबीर की भाषा में ब्रज, अवधी, पंजाबी, राजस्थानी और अरबी फ़ारसी के शब्दों का मेल देखा जा सकता है। उनकी शैली उपदेशात्मक है। इस बीजक का प्रभाव गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाओं पर भी दिखता है।
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