सावन में भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से उनके शिवलिंग स्वरूप की होती है। शिवलिंग का अभिषेक सावन मास में करने से मनुष्य को विशेष पुण्यलाभ मिलता है। सावन मास शिव परिवार का विशेष महीना होता है और यही कारण है कि सावन में शिव जी के साथ शिव परिवार की पूजा-अर्चना से मनचाहा वरदान मिलता है। सावन मास में सोमवार के दिन विशेष रूप से शिवलिंग की पूजा का ही विधान है। पुराणों में शिवलिंग तीन प्रकार के बताए गए हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं की आप किस शिवलिंग की पूजा कर रहे हैं?नहीं तो आइए आपको बताएं। साथ ही शिवलिंग पूजा का विधान भी जानें।
भगवान शिव के तीन प्रकार के होते हैं शिवलिंग
उत्तम शिवलिंग : शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग तीन प्रकार के होते हैं। उत्तम, मध्यम और अधम। शिवलिंग के पहले प्रकार को उत्तम शिवलिंग कहते हैं। जिस शिवलिंग के नीचे वेदी बनी होती है। ये वेदी से चार अंगुल ऊंची होती है। इसे ही सबसे अच्छा यानी उत्तम शिवलिंग माना गया है।
मध्यम शिवलिंग : जो शिवलिंग वेदी से चार उंगल नीचे होता है वह मध्यम शिवलिंग कहा गया है।
अधम शिवलिंग : जिस शिवलिंग का निर्माण मध्यम शिवलिंग की वेदी से भी नीचे हो यानी वेदी से काफी नीचे तो वह उधम शिवलिंग की श्रेणी में आता है।
जानें शिवलिंग पूजा का सही विधान
शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग की पूजा हमेशा उत्तर की ओर मुख कर के ही की जानी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि पूर्व दिशा की ओर मुख कर पूजा करने से शिवलिंग का सामने का भाग बाधित होता है और ऐसी पूजा शिवजी को नाराज करती है। वहीं उत्तर की ओर पूजा करने से देवी पार्वती का अपमान होता है, क्योंकि यह शिव का बायां भाग होता है और वह स्थान देवी का होता है। इसलिए दक्षिण दिशा में बैठकर सामने की ओर यानी उत्तर की ओर मुख करके शिवलिंग की पूजन करनी चाहिए।
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