Sharad purnima 2021 vrat katha: हिंदू शास्त्र के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। यानी मां लक्ष्मी समुंद्र मंथन के द्वारा इसी दिन प्रकट हुई थी। पुराणों के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर बैठकर पृथ्वी लोक में भ्रमण करने के लिए आती हैं।
यदि भक्त इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा-आराधना सच्चे मन से करें, तो माता अपने भक्तों पर कृपा बरसाने के साथ-साथ वरदान भी देती हैं। यह पूर्णिमा हर साल शुक्ल पक्ष की तिथि को मनाई जाती है। इस पूर्णिमा के अनेकों पौराणिक कथाएं हैं। ऐसी मान्यता है, कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण राधा और गोपियों के साथ रास रचाएँ थे। यदि आप इस बार शरद पूर्णिमा का व्रत करना चाहते है या पहले से करते हैं, तो यहां इसकी पौराणिक कथा शुद्ध-शुद्ध देखकर पढ़ सकते हैं।
शरद पूर्णिमा व्रत की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक सेठ की दो बेटियां रहा करती थी। दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत किया करती थी। बड़ी बेटी इस व्रत को बड़ी आस्था के साथ करती थी, लेकिन छोटी अक्सर इस व्रत को अधूरा ही छोड़ देती थी। जिसके कारण उसके घर में कन्या जन्म लेती थी और कुथ दिनों बाद वह मर जाती थी। ऐसा बार-बार होने से वह बहुत दुखी रहने लगी।
तब उसने इस पीड़ा के समाधान के लिए पंडितों की सलाह मांगी। तब पंडित ने उसे इस व्रत को आस्था पूर्वक करने को कहा। पंडित के कहे जाने के बाद वह वर्त करने लगी और उसके घर में एक पुत्र जन्म लिया। वह भी कुछ दिनों के बाद मर गया। तब उसने उस लड़के को एक चौकी पर लेटाकर ऊपर से कपड़ा से ढक दिया और अपनी बड़ी बहन को आने को कहा।
जब उसकी बड़ी बहन उसके घर आई, तो उसने उसी चौकी पर उसे बैठने को कहा। जैसे ही उसकी बड़ी बहन उस चौकी पर बैठी उसके स्पर्श होते ही वह बच्चा रोने लगा। उस बच्चे के अंदर जाना गई। यह देखकर उसकी बड़ी बहन चौक गई और वह बहन बोली यह तूने क्या किया।
अभी अगर मैं इस पर बैठ जाती, तो तेरा लाल तो मर ही जाता। यह सारी बात कहने पर छोटी बहन ने अपनी बड़ी बहन से सारी बात कह सुनाई। छोटी बहन ने अपनी बड़ी बहन को गले लगाते हुए कहा बहन तेरे ही भाग और पुण्य कर्मों की वजह से ही मेरा पुत्र जीवित हो उठा हैं। उसके बाद से ही उस नगर में यह व्रत पूरे नगर वासी श्रद्धा के साथ करने लगें।
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