हिंदू कलैंडर के अनुसार, आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाली है। यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। इस व्रत के बारे में श्रीकृष्ण ने खुद युधिष्ठिर को बताया था।
बता दें कि हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हर साल चौबीस एकादशी व्रत आते हैं। उनमें आषाढ़ कृष्ण एकादशी का नाम योगिनी है। एकादशी का हर व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है,योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ पीपल की पूजा का भी विधान है, ऐसा कहा जाता है कि योगिनी एकादशी करने से 88 हजार ब्राह्मणों के दान के बराबर फल मिलता है।
इस बार ये तिथि 17 जून 2020 को पड़ रही है-
भक्त एकादशी के दिन उपवास के नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं तथा अगले दिन सूर्योदय के बाद ही उपवास समापन करते हैं। व्रती को दशमी तिथि की रात्रि से ही तामसिक भोजन का छोड़कर सादा भोजन ग्रहण करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
कुंभ स्थापना कर उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रख उनकी पूजा करें। पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पंचामृत स्नान कराना चाहिए, पुष्प, धूप, दीप आदि से आरती उतारें फिर पंचामृत को घर के सभी सदस्यों के ऊपर छिड़कना चाहिए, पूजा के दौरान विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ का भी विशेष महत्व बचाया गया है।इस एकादशी पर दान का भी बहुत महत्व बताया गया है शास्त्रानुसार किसी भी प्रकार का दान करते समय ब्राह्मण को या योग्य पात्र को दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए।
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