Valmiki Jayanti: राम नाम का उल्‍टा जाप करते हुए की थी रामायण की रचना, जानें डाकू से कैसे बने महर्षि वाल्मीकि

व्रत-त्‍यौहार
Updated Oct 10, 2019 | 08:37 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Valmiki Jayanti: महर्षि वाल्मीकि को कई भाषाओं का ज्ञाता और संस्कृत भाषा का पहला कवि माना जाता है। वाल्मीकि जयंती के दिन महर्षि के उपलब्धियों को याद किया जाता है पवित्र रामायण की पूजा की जाती है।

Valmiki Jayanti 2019
Valmiki Jayanti 2019 
मुख्य बातें
  • इस साल वाल्मीकि जयंती 13 अक्टूबर को है
  • वाल्मीकि जयंती के दिन महर्षि के उपलब्धियों को याद किया जाता है
  • प्रत्येक वर्ष वाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनायी जाती है

हिंदू धर्म में कई प्राचीन ऋषि मुनियों की जयंती आज भी मनायी जाती है। इनमें से एक ऋषि है महर्षि वाल्मीकि, जिन्होंने रामायण की रचना की थी। हर साल अश्विन मास की शरद पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनायी जाती है। इस साल वाल्मीकि जयंती 13 अक्टूबर को है।

महर्षि वाल्मीकि को कई भाषाओं का ज्ञाता और संस्कृत भाषा का पहला कवि माना जाता है। उन्होंने रामायण में चौबीस हजार छंद और 77 कांड लिखा है। वाल्मीकि जयंती के दिन महर्षि के उपलब्धियों को याद किया जाता है पवित्र रामायण की पूजा की जाती है। प्रत्येक वर्ष वाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनायी जाती है।

कौन थे महर्षि वाल्मीकि
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वाल्मीकि महर्षि कश्यप और अदिति के पोते थे। वह महर्षि वरुण और चर्षणी के नौवें पुत्र थे। उन्हें महर्षि भृगु का भाई भी कहा जाता है। पुराणों में उल्लेख है कि वाल्मीकि को बचपन में एक भीलनी ने चुरा लिया था और भील समाज में ही उनका लालन पालन हुआ। बड़े होने पर वाल्मीकि डाकू बन गए।

ऐसे नाम पड़ा वाल्मीकि
महर्षि वाल्मीकि घोर तपस्या में लीन थे तभी उनको दीमकों ने चारों तरफ से घेर लिया। दीमकों ने उनके शरीप पर भी घर बना लिया। अपनी तपस्या पूरी करके वाल्मीकि दीमकों के घर से बाहर निकले। दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता है। तभी से उनका नाम महर्षि वाल्मीकि पड़ गया।

एक डाकू ऐसे बना वाल्मीकि 
पौराणिक कथाओं के अनुसार वाल्मीकि का असली नाम रत्नाकर था। रत्नाकर एक लुटेरा था और उसने नारद मुनि को लूटने की कोशिश की। नारद मुनि ने वाल्मीकि से प्रश्न किया कि क्या परिवार भी तुम्हारे साथ पाप का फल भोगने को तैयार होंगे? जब रत्नाकर ने अपने परिवार से यही प्रश्न पूछा तो उसके परिवार के सदस्य पाप के फल में भागीदार बनने को तैयार नहीं हुए। तब रत्नाकर ने नारद मुनि से माफी मांगी और नारद ने उन्हें राम का नाम जपने की सलाह दी। राम का नाम जपते हुए डाकू रत्नाकर वाल्मीकि बन गए।

यहां स्थित है वाल्मीकि मंदिर
तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के तिरुवन्मियूर में महर्षि वाल्मीकि का एक छोटा सा मंदिर है जो 1300 साल पुराना है। कहा जाता है कि तिरुवन्मियूर का नाम वाल्मीकि के नाम पर ही पड़ा। पुराणों के अनुसार महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना करने के बाद भगवान शिव की आराधना की थी इसलिए इस मंदिर में शिव की भी पूजा की जाती है।

महर्षि वाल्मीकि की उपलब्धियों को याद करने के लिए उत्तर भारत सहित देश के विभिन्न हिस्सों में प्रत्येक वर्ष वाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनायी जाती है और महर्षि को याद किया जाता है।

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