कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली नकर चतुर्दशी, दिवाली से एक दिन पहले होती है। मान्यता है कि इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजाकर लोग अकाल मृत्यु के संकट से बचने के लिए प्रार्थना करते हैं। इस दिन को लोग छोटी दिवाली के रूप में भी मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि बेहतर स्वास्थ्य और निरोगी काया के लिए भी इस दिन पूजा जरूर करनी चाहिए। इस दिन पूजा का विधि सुबह से ही शुरू हो जाती है जो देर रात खत्म होती है।
इसके लिए कुछ नियम और विधि भी है, जिसका पालन करते हुए नकर चतुर्दशी की पूजा की जाती है। तो आइए जानें कि कब है नरक चतुर्दशी ,नरक चतुर्दशी के नियम, इसकी पूजा विधि और नरक चतुर्दशी कथा के बारे में। नरक चतुर्दशी इस बार 26 अक्टूबर को पड़ रही है। इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं। इस दिन रात में यम की पूजा की जाती है ताकि वह घर-परिवार के सदस्यों से दूर रहें और अकाल मृत्यु का भय खत्म हो।
नरक चतुर्दशी के नियम
नकर चतुर्दशी कुछ लोग सूर्योदय से पूर्व और कुछ लोग सूर्योदय के बाद मनाते हैं। यही कारण है कि धनतेरस की रात में ही कुछ लोग यम का दीया निकालते हैं। वहीं कुछ लोग नरक चतुर्दशी की रात इसे निकालते हैं। यदि दोनों दिन चतुर्दशी तिथि अरुणोदय अथवा चंद्र उदय का स्पर्श करती है तो नरक चतुर्दशी पहले दिन ही मनाने का विधान होता है। हालांकि अलग- अलग राज्यों में इसे मनाने का दिन अलग है लेकिन विधि लगभग एक ही है। इस दिन सूर्योदय से पहले शरीर पर तिल के तेल का मालिश करना शुभ माना जाता है।
नरक चतुर्दशी पूजा विधि
1. सुबह उठकर स्नान के बाद तिल का तेल शरीर पर मलें और तुलसी के पौधे को सिर के ऊपर से चारों ओर तीन बार घुमाएं।
2. इस दिन दक्षिण दिशा में हाथ जोड़कर यमराज को प्रणाम करें और उनसे अपनी रक्षा का वचन लें।
3. इस दिन श्रीकृष्ण की भी पूजा करनी चाहिए।
4. इस त्योहार की अर्धरात्रि में घर के बेकार पड़े सामान को फेंक देना चाहिए और यम का दीपक जलाना चाहिए। इसके लिए पुराने दीये में तिल या सरसों का तेल डाल कर उसे घर के बार कूड़े के पास जलाएं ओर जल चढ़ाकर बिना उसे देखे घर वापस आ जाएं। दीया घर से जला कर ले जाएं।
नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा
राक्षस नरकासुर, देवता और साधु संतों को परेशान करता था एक बार उसने देवताओं और संतों की 16 हज़ार स्त्रियों को कैद कर लिया। पेरशान सभी देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण के पास गए और उनसे प्रार्थाना की कि वह नरकासुर के आतंक से उन्हें मुक्ति दिलाकर सभी स्त्रियों को मुक्त कराएं। तब भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को राक्षस नरकासुर का वध किया था। तभी से उन्हें 16 हजार पट रानियां के नाम से जाने जाना लगा।
उसी दिन से कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के नाम से पूजा की जाने लगी और नरक चतुर्दशी के अगले दिन दिवाली मनाई जाने लगी। इससे पहले धनतेरस मनाया जाने लगा। इन तीनों पर्व की कहनी समुद्र मंथन से भी जुड़ा है।
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