हिंदू धर्म में वैकुण्ठ चतुर्दशी का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान शंकर और विष्णु की पूजा की जाती है। देश में विभिन्न स्थानों पर श्रद्धालु इस दिन उपवास रखकर विशेष पूजा अर्चना करते हैं। कहा जाता है कि वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और शिव का जो भी भक्त पूरी निष्ठा से व्रत रखकर भगवान की उपासना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वैकुण्ठ चतुर्दशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती है। इस साल वैकुण्ठ चतुर्दशी 10 नवंबर को मनायी जाएगी। वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन निशित काल यानि मध्य रात्रि में पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार यह काल बहुत शुभ होता है इस काल में भगवान शिव और विष्णु की विधि विधान से पूजा करने पर सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन श्राद्ध और तर्पण भी किया जाता है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी की तिथि और पूजा मुहूर्त
वैकुण्ठ चतुर्दशी 10 नवंबर को है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने काशी में आकर भगवान शिव को एक हजार स्वर्ण कमल पुष्प चढ़ाने का संकल्प लिया। भगवान विष्णु जब काशी आकर भोलेशंकर को पुष्प अर्पित करने लगे तब भगवान शिव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए उनमें से एक स्वर्ण पुष्प को कम कर दिया। तब भगवान विष्णु ने उन्हें कमल के जैसे अपने नयन को समर्पित कर दिया। भगवान विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शंकर प्रसन्न हुए और बोले कि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी वैकुण्ठ चौदस के नाम से जानी जाएगी। इस दिन जो भी भक्त व्रत रखकर हम दोनों की एक साथ पूजा करेगा उसे वैकुण्ठ लोक प्राप्त होगा। तभी से वैकुण्ठ चतुर्दशी का खास महत्व है। पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन ही महाभारत की लड़ाई में मारे गए सैनिकों का श्राद्ध कराया था। इसलिए वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन पूरे विधि विधान से पितरों का श्राद्ध और तर्पण भी किया जाता है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा विधि
इस तरह से पूरे विधि विधान से वैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत रखकर नियमानुसार पूजा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और श्रद्धालुओं को वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।
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