नई दिल्ली : टोक्यो ओलंपिक के बाद भारत ने पैरालिंपिक खेलों में भी शानदार प्रदर्शन किया है। भारत को अब तक 17 पदक हासिल हो चुके हैं, 2016 के रियो गेम्स की तुलना में कहीं अधिक है, जिसमें भारत ने सिर्फ चार पदक जीते थे। बीते पांच साल में भारत में पैरा-स्पोर्ट्स के संबंध में बहुत कुछ बदला है, जिसकी एक प्रमुख वजह यह है कि सरकार एथलीटों के प्रशिक्षण पर अपेक्षाकृत ध्यान दे रही है। इसे देश के पैरा-एथलीट्स ही नहीं, बल्कि विदेशी खिलाड़ी भी स्वीकार करते हैं। वे इसे स्वर्ण पदक (Gold Medal) जीतने से भी अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं।
पैरा-स्पोर्ट्स को लेकर जहां प्राइवेट संस्थानों/पक्षकारों में एक तरह की हिचकिचाहट देखी गई है, वहीं भारत सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किया कि खिलाड़ियों को हर वो मदद मिले, जिसकी उन्हें जरूरत है। टोक्यो पैरालंपिक्स में पदक हासिल करने वाले पैरा-एथलीट्स देवेंद्र झाझरिया, सुमित अंतिल, शरद कुमार और योगेश कथुनिया ने Times now से Exclusive बातचीत की, जिसमें उन्होंने खेलों के लिए अपने प्रशिक्षण, तैयारियों से लेकर हर पहलू पर बात की। ऊंची कूद T63 में कांस्य पदक हासिल करने वाले शरद कुमार ने खास तौर पर इसका जिक्र किया कि सरकार पैरा-एथलीट्स के प्रशिक्षण के लिए क्या कुछ कर रही है और कैसे विदेशी खिलाड़ी भी इस दिशा में सरकार की कोशिशों को सराह रहे हैं।
अपनी प्रतियोगिता के दौरान के ऐसे ही एक अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे एक अमेरिकी एथलीट ने पैरा-स्पोर्ट्स को बढ़ावा देने और एथलीट्स को प्रशिक्षण तथा अन्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए सरकार की तरफ से उठाए जाने वाले कदमों की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह की मान्यता और कोशिशें गोल्ड मेडल जीतने से भी अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, 'टोक्यो 2020 को देखिए। जापान सरकार पैरालंपिक को ओलंपिक से भी बड़ा आयोजन बनाना चाहती थी। भारत में कोई भी प्राइवेट भागीदार हमारी मदद के लिए आगे नहीं आया। तब हमारी सरकार आगे आई और हमें महंगे उपकरण तथा हर वो चीज उपलब्ध कराई, जिसकी हमें जरूरत थी।'
उन्होंने यह भी कहा कि आज दिव्यांगों को सरकार की ओर से अधिक सराहना मिल रही है। शरद कुमार ने कहा, 'देवेंद्र एथेंस गेम्स में अपने खर्च पर गए थे। लेकिन अब प्रधानमंत्री हमें भेज रहे हैं और हमारी उपलब्धियों पर अपने कॉल भी करते हैं। यहां तक कि मेरे इवेंट में गोल्ड मेडल जीतने वाले अमेरिका के एथलीट ने भी कहा कि 'इससे बड़ा कुछ नहीं हो सकता, यहां तक कि गोल्ड मेडल भी नहीं।' उन्होंने कहा कि वैश्विक आबादी में करीब 15 प्रतिशत लोग किसी न किसी तरह की शारीरिक या मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। भारत सरकार ऐसे लोगों को भी समान रूप से आगे लाने और उन्हें बराबरी में खड़ा करने की कोशिश कर रही है। सरकार हमारी जरूरतों का ध्यान रख रही है, चाहे वह उपकरणों की बात हो या अन्य सुविधाओं की। वे एथलीट्स को प्रेरित कर रहते हैं और देखिये चीजें पेशेवर तरीके से बदल भी रही हैं। पैरा-स्पोर्ट्स में बड़ा बदलाव आ रहा है।