वाशिंगटन : इस तरह की चेतावनियां स्पष्ट थी कि अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने पर अफगानिस्तान की सरकार टिक नहीं पाएगी, लेकिन अमेरिकी खुफिया एजेंसियां और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को यह अंदाज़ा नहीं था कि चीजें इतनी तेजी से बदलेंगी और कुछ हफ्तों में ही काबुल हाथ से निकल जाएगा।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने जब जून में बाइडन से मुलाकात की थी तो उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति से आग्रह किया था कि अमेरिकियों को तत्काल वहां से निकालने को टाला जाए क्योंकि इससे तालिबान तेजी से आगे बढ़ेगा, लेकिन उनकी इस बात को अनसुना कर दिया गया।
बाइडन ने बुधवार को देश से भागने और तालिबान के सामने इतनी आसानी से समर्पण करने के लिए अफगान बलों को कसूरवार ठहराया। उन्होंने 'एबीसी न्यूज़' से कहा कि उनका मानना है कि सैनिकों को वापस बुलाने के बाद समस्याओं का उत्पन्न होना लाज़िमी था। अमेरिकी अधिकारियों का अनुमान है कि अफगानिस्तान में करीब 10,000 अमेरिकी हैं और अफगानिस्तान के हजारों ऐसे बाशिंदे हैं जिन्होंने दो दशक की लड़ाई में अमेरिका की मदद की या उनके साथ मिलकर लड़े।
बाइडन ने सोमवार को कहा था कि अफगानिस्तान के कुछ नागरिक अब भी अपने देश के लिए आशावान हैं और देश नहीं छोड़ना चाहते हैं। उनके इस बयान के लिए उनकी व्यापक आलोचना हुई है। विदेश विभाग में उन हजारों लोगों के वीजा आवेदन लंबित हैं जो देश से अमेरिकी बलों की वापसी से पहले अफगानिस्तान छोड़ने की कोशिश में थे। अफगानिस्तान से 31 अगस्त तक सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो जाएगी।
बाइडन ने बुधवार को कहा कि किसी भी अमेरिकी को अफगानिस्तान में नहीं छोड़ा जाएगा। विश्लेषक लंबे अरसे से यह चेतावनी दे रहे थे कि बिना अमेरिकी समर्थन के अफगानिस्तान की सरकार को गंभीर खतरा है, लेकिन उनको इस बात का अंदाजा नहीं था कि अफगानिस्तान सरकार इतनी जल्द हार जाएगी।
एक अधिकारी ने बताया कि करीब दो हफ्ते पहले खुफिया एजेंसियों ने सांसदों को स्थिति से अवगत कराया था लेकिन इसमें बात की कोई चेतावनी नहीं दी गई थी कि अफगानिस्तान की सरकार को गिरने का खतरा है। रक्षा विभाग का अनुमान था कि काबुल की 30 दिन के अंदर घेराबंदी की जा सकती है लेकिन एक हफ्ते के भीतर ही तालिबान ने मुल्क को जीत लिया और बिना लड़ाई के काबुल में घुस गए और गनी तथा उनके शीर्ष सहायकों को भागना पड़ा।
अमेरिका के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ जनरल मार्क मिले ने बुधवार को कहा कि उनके पास इस तरह के कोई संकेत नहीं थे कि अफगानिस्तान की सेना इतनी तेजी से हार जाएगी। प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा था कि खुफिया समुदाय ने व्हाइट हाउस को सूचित किया था कि सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान की सरकार जल्द गिर सकती है क्योंकि तालिबान ने अहम प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा कर लिया है।
असल में यह कब्जा काबुल पर नियंत्रण से कुछ दिन पहले ही हुआ था। एक पूर्व अधिकारी के मुताबिक, एक आकलन में आशंका जताई गई थी कि सैनिकों की वापसी के एक से तीन साल के भीतर अफगानिस्तान में बड़े स्तर पर आतंकी हमलों की योजना बनाई जा सकती है।
बहरहाल, अमेरिका अपने नागरिकों और 20 साल की जंग में उसका साथ देने वाले अफगानिस्तान के लोगों को सुरक्षित रूप से देश छोड़ने का रास्ता देने के लिए तालिबान के साथ मिलकर काम कर रहा है। विदेश विभाग ने कहा है कि वह उन्हें हवाई अड्डे तक सुरक्षित पहुंचाने की गारंटी नहीं दे सकता है।