काबुल : अफगानिस्तान की सत्ता में काबिज तालिबान व हक्कानी नेटवर्क के कुछ समूहों के बीच आपसी संघर्ष में मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के मारे जाने की रिपोर्ट पिछले दिनों आई थी, जिसके बाद यहां नए सिरे से रक्तपात को लेकर अटकलें लगाई जा रही थी। इस बीच एक ऑडियो संदेश में मुल्ला बरादर ने अपने जीवित होने और झड़प में घायल नहीं होने की पुष्टि की थी। तालिबान की नवगठित सरकार में उपप्रधानमंत्री मुल्ला बरादर के काबुल से लंबे समय तक दूर रहने के बीच उसे बंधक बनाने की खबरें भी आईं, लेकिन अब आई एक रिपोर्ट में मुल्ला बरादर के काबुल लौट आने और राष्ट्रपति भवन में रहकर पदभार ग्रहण करने और कामकाज करने की बात कही गई है।
बताया जा रहा है कि मुल्ला बरादर ने अफगानिस्तान की नई सरकार के गृह मंत्रालय के यह कहे जाने के बाद भी उससे सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया कि उपप्रधानमंत्री को सुरक्षा मुहैया कराना उसका काम है। अफगानिस्तान की नई सरकार में गृह मंत्रालय सिराजुद्दीन हक्कानी को मिला है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक आतंकी घोषित हुआ है। अमेरिका ने भी इसे दोहा समझौते के खिलाफ बताया है, जो फरवरी 2020 में अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया को लेकर तालिबान और अमेरिका के बीच हुआ था। अमेरिका ने उस पर 50 लाख डॉलर (लगभग 36 करोड़ रुपये) का इनाम भी रखा है। वैश्विक आतंकी घोषित सिराजुद्दीन हक्कानी का भारत को लेकर रवैया भी शत्रुतापूर्ण रहा है।
मुल्ला बरादर के पिछले दिनों राष्ट्रपति भवन में हक्कानी नेटवर्क के साथ संघर्ष के दौरान घायल होने और फिर कंधार चले जाने की रिपोर्ट आई थी। बाद में बरादर के संघर्ष में मारे जाने का दावा किया गया। तमाम अटकलों पर विराम तब लगा, जब मुल्ला बरादर ने एक ऑडियो संदेश जारी कर अपने जीवित होने और संघर्ष में घायल न होने की बात कही। अब उसके काबुल लौट आने की रिपोर्ट है और कहा जा रहा है कि उसने सिराजुद्दीन हक्कानी के नेतृत्व वाले गृह मंत्रालय से सुरक्षा लेने से भी इनकार दिया है और उसके पास अपना अलग सुरक्षा दस्ता मौजूद है। बदलते घटनाक्रम के बीच अफगानिस्तान में फिर तालिबान समूहों के बीच तनाव बढ़ने का अंदेशा जताया जा रहा है।
मुल्ला बरादर के जहां काबुल लौट आने की जानकारी सामने आई है, वहीं उसके समर्थक व मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब के अब भी कंधार में होने की रिपोर्ट है, जिसे इस सरकार में रक्षा मंत्री बनाया गया है, जबकि सिराजुद्दीन हक्कानी के परिवार के साथ कभी काबुल और कभी इससे बाहर होने की बात कही जा रही है। जानकारों का मानना है कि मुल्ला बरादर के काबुल लौटने के बाद यहां सत्ता के गलियारों में एक बार फिर तनाव व संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है, क्योंकि याकूब गुट, जिसे मुल्ला बरादर का समर्थन प्राप्त है, इस्लामिक स्टेट (IS) से समर्थन प्राप्त हक्कानी नेटवर्क का सशक्त प्रतिद्वंद्वी है।
जानकार इसे अफगानिस्तान की सत्ता में काबिज समूहों और उनके सदस्यों के बीच वर्चस्व की लड़ाई के तौर पर देख रहे हैं, जिनमें से कोई भी किसी के साथ काम नहीं करना चाहता। यहां उल्लेखनीय है कि मुल्ला बरादर के समर्थक जहां अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी का श्रेय मुल्ला बरादर को देते हैं, वहीं पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI समर्थित हक्कानी नेटवर्क का मानना है कि उसकी लड़ाई के दम पर ही तालिबान को अफगानिस्तान में दोबारा सत्ता मिली है। मुल्ला बरादर फरवरी 2020 में अमेरिका के साथ दोहा में हुए अफगान शांति समझौते का प्रमुख चेहरा है। टाइम मैगजीन ने उसे दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में भी रखा था।